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Chaibasa News : चक्रधरपुर में टीएलसी का काम लिपिकों से लिये जाने पर मेंस यूनियन का विरोध

टीएलसी पद पर लिपिकों की तैनाती असुरक्षित, चार्जशीट मुद्दे पर भी यूनियन को मिला भरोसा

चक्रधरपुर. चक्रधरपुर रेल मंडल में ट्रैक्शन लोको कंट्रोलर (टीएलसी) का कार्य लिपिकों से लिये जाने के निर्णय का दक्षिण पूर्व रेलवे मेंस यूनियन ने कड़ा विरोध किया है. यूनियन के मंडल संयोजक एमके सिंह के नेतृत्व में पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने दक्षिण पूर्व रेलवे के प्रधान मुख्य विद्युत अभियंता (पीसीइइ) से मुलाकात कर मांगपत्र सौंपा और टीएलसी का कार्य लोको पायलटों से ही कराने की अपील की. एमके सिंह ने बताया कि चक्रधरपुर रेल मंडल में टीएलसी का काम वर्तमान में गैर-रनिंग विभाग के लिपिकों से कराया जा रहा है, जिन्हें ट्रेन संचालन, रनिंग स्टाफ की ड्यूटी और सुरक्षा नियमों की पर्याप्त जानकारी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि इतने महत्वपूर्ण और तकनीकी पद पर लिपिकों से काम लेना सुरक्षा व संरक्षा मानकों के खिलाफ है और यह रेलवे बोर्ड के नियमों का उल्लंघन है. यूनियन ने मांग की है कि जब तक टीएलसी पदों पर नयी नियुक्ति नहीं होती, तब तक यह कार्य लोको पायलटों से ही लिया जाए. इस पर पीसीइइ ने यूनियन प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि रेलवे बोर्ड के सभी नियमों और निर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से किया जायेगा और किसी भी प्रकार की नियमावली की अवहेलना नहीं होगी.

पीसीइइ ने लोको पायलटों की चार्जशीट निरस्त करने का दिया आश्वासन:

यूनियन ने पीसीइइ से मुलाकात के दौरान लोको पायलटों को जारी चार्जशीटों का मुद्दा भी उठाया. जानकारी के अनुसार, ट्रेन समय पर चालू नहीं करने के आरोप में पूरे मंडल में सैकड़ों रेल कर्मचारियों को चार्जशीट जारी की गयी थी. मेंस यूनियन ने बताया कि स्टेशन पर जीप डिटेंशन, क्रू बदलने में लगने वाला समय और यार्ड में पाथ-वे की अनुपलब्धता जैसी व्यावहारिक दिक्कतों के कारण लोको पायलटों को क्रू लॉबी से इंजन तक पहुंचने में पांच मिनट तक का समय लगता है. कई बार पायलट के इंजन तक पहुंचने से पहले ही ट्रेन को सिग्नल मिल जाता है, जिससे ट्रेन कुछ मिनट देर से प्रस्थान करती है. यूनियन ने कहा कि यह देरी लोको पायलटों की गलती नहीं, बल्कि सुविधाओं की कमी का परिणाम है.

क्या है नियम:

ट्रैक्शन लोको कंट्रोलर (टीएलसी) का पद अस्थायी होता है और इसकी अवधि तीन वर्ष निर्धारित है. नियमों के अनुसार, यह जिम्मेदारी केवल उन लोको पायलटों को दी जा सकती है जिन्होंने कम से कम 75,000 किलोमीटर ट्रैक पर ट्रेन संचालन किया हो और जिनकी मेडिकल श्रेणी A-3 हो. पहले यही व्यवस्था लागू थी, लेकिन हाल के दिनों में यह कार्य गैर-रनिंग विभाग के लिपिकों से लिया जा रहा है, जो रनिंग से जुड़े तकनीकी कार्यों और सुरक्षा नियमों की पूरी जानकारी नहीं रखते.

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