बंदगांव.
पश्चिम सिंहभूम जिले की सीमा पर बसे टोकाद गांव में शहीद लाल सिंह मुंडा की समाधि है. वे 1978 के जंगल आंदोलन के अगुवा थे. झारखंड आंदोलनकारी लाल सिंह मुंडा की हत्या प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के एक दिन बाद एक नवंबर 1984 को बंदगांव के बाजारटांड में हुई थी. लाल सिंह मुंडा ने सासनदिरी की जमीन पर मंदिर निर्माण कार्य का विरोध किया था. उनका कहना था कि सासनदिरी की जमीन में गड़ा पत्थर इसका सबूत है कि यहां आदिवासियों के पूर्वजों को दफनाया गया है.गुवा गोलीकांड के बाद हुई थी घर की कुर्की
लाल सिंह मुंडा का जन्म 28 मई, 1946 को हुआ था. बंदगांव का टिमड़ा पैतृक गांव है, जहां पत्नी जोसफीन बारला के साथ रहते थे. संत जेवियर लुपुंगगुटु चाईबासा से उन्होंने मैट्रिक पास किया. स्नातक रांची स्थित जेवियर कॉलेज से किया. 8 सितंबर, 1980 को गुवा गोलीकांड के बाद पुलिस ने लाल सिंह मुंडा की गिरफ्तारी के लिए कई बार छापेमारी की. पुलिस ने उनके घर की कुर्की की. परिवार को घर छोड़ना पड़ा. पतरस मुंडा ने उनके परिवार को शरण दी.
बीच सड़क पर अपराधियों ने मार दी थी गोली
लाल सिंह मुंडा आदिवासियों को लेकर चिंतित रहते थे. झारखंड आंदोलनकारी मेरा मुंडा और जॉन ने लालसिंह मुंडा को झारखंड पार्टी में शामिल करााया. पत्नी जोसफीन ने काफी विरोध किया था. एक नवंबर, 1984 की सुबह छह बजे लाल सिंह मुंडा घर से अपनी बीमार दीदी से मिलने साइकिल से गये थे. वहां से लौटने के दौरान रास्ते में हत्यारों ने लाल सिंह को रोक साइकिल छिनी और गोली मारकर हत्या कर दी.
आदिवासियों को बेदखल करने का विरोध किया
लाल सिंह मुंडा ने मचुवा गागराई के साथ खुंटकट्टी की जमीन सोनगरा वन क्षेत्र, बांझीकुसुम व नकटी रंजा क्षेत्र से वन अधिकारियों द्वारा आदिवासियों को बेदखल करने की कोशिश का पुरजोर विरोध किया.
जेल में 48 घंटे की भूख हड़ताल की
पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर चाईबासा जेल में रखा. उन्होंने जेल की कुव्यवस्था के खिलाफ मछुवा गागराई , गुरुचरण हांसदा, बहादुर उरांव, मोरा मुंडा , भुवनेश्वर महतो, सुखदेव हेम्ब्रम, ललित हेंब्रम, लखन बोदरा तथा सुला पूर्ती आदि के साथ मिल कर 84 घंटे की भूख हड़ताल की. लाल सिंह मुंडा तथा मछुवा गागराई की हालत गंभीर हो गयी थी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

