चाईबासा.
चाईबासा का जीइएल चर्च काफी पुराना है. इसे छोटानागपुर और असम कलीसिया तथा एलिजाबेद ख्रीस्त गिरजाघर के नाम से भी जाना जाता है. 2 नवंबर, 1845 झारखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण तारीख है. स्वास्थ्य व शिक्षा के उद्देश्य इस दिन जर्मनी से चार मिशनरी रांची पहुंचे थे. पादरी गोस्नर ने चारों मिशनरियों को म्यांमार (बर्मा) में धर्म प्रचार के लिए भेजा था. चारों मिशनरियां पहले कोलकाता पहुंचे. यहां मिशनरियों की मुलाकात छोटानागपुर के कुछ लोगों से हुई, जो कुली का काम करते थे. उन्हें लगा कि वे आदिवासी हैं. उन्होंने पता लगाया और छोटानागपुर के लिए चल पड़े. उस जमाने में मिशनरी बैलगाड़ी से कई दिनों के सफर के बाद रांची पहुंचे. उन्होंने जिस जगह पर पड़ाव डाला, उसे बेथेसदा यानी (दया का घर) नाम दिया. उसी स्थान पर रहकर आदिवासी समुदाय के बीच धर्म प्रचार करते रहे. इसके बाद खूंटी, सिमडेगा व बंदगांव होते हुए 1864 में चाईबासा पहुंचे.वर्ष 1868 में लुथेरन नाम से स्कूल शुरू किया
वर्ष 1868 में लुथेरन के नाम से झोपड़ी में स्कूल शुरू किया. इसके साथ गिरजाघर का निर्माण किया गया. वर्ष 1870 में जीइएल चर्च का निर्माण कर स्थानीय लोगों को समर्पित कर दिया गया. इसे जिले का पहला चर्च होने का गौरव प्राप्त है. यह चर्च मसीही समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है.चर्च के पहले पादरी थे नथालियन तियू
जीइएल चर्च के पहले पादरी नथालियन तियू बने. चाईबासा के करकट्टा गांव के चार लोगों ने दीक्षा लेकर इसाई धर्म स्वीकार किया. आज चर्च में 215 परिवार है. छोटानागपुर और असम धर्मप्रांत के अंचल पादरी जॉरांग सुरीन ने बताया कि फिलहाल चर्च में एक पुरुष पादरी प्रभु सहाय चांपिया और एक महिला पादरी गोलोरिया बागे कार्यरत हैं. चर्च में करीब 400 लोगों की बैठने की जगह है.चर्च में 1995 से महिला पादरी की शुरुआत हुई
वर्ष 1995 से जीइएल चर्च चाईबासा में महिलाओं को पुरोहित (पादरी) का पद दिया गया. अब तक में चार महिला पादरी बनी हैं. वर्तमान में गोलोरिया बागे महिला पादरी हैं, जो लुथेरन छात्रावास की वार्डन भी हैं.जर्मनी से लाये गये दो घंटे लगे हैं चर्च में
जीइएल चर्च में जर्मनी का घंटा बजता है. यहां दो घंटे हैं. अदम नामक घंटा का वजन 125 किलोग्राम तथा दूसरा हवा नामक घंटा है. घंटे की आवाज काफी दूर तक जाती है. पादरी श्री सुरीन ने बताया कि हवा नामक घंटा को फिलहाल बंद कर दिया गया है. दोनों घंटा को संयोकर रखा गया है.चर्च में है जर्मनी की लकड़ी के कठघरे
जीइएल चर्च में जर्मनी की लकड़ी से बने पुलपीट (कठघरे) है. उस कठघरे पर चढ़कर पादरी शांति का उपदेश देते हैं. यह कठघरे जर्मन के समय से है. हर साल उसका रंग-रोगन किया जाता है.
जीइएल चर्च में क्रिसमस गैदरिंग 14 को
क्रिसमस पर्व को लेकर मसीही समुदाय के लोग तैयारी में जुटे हैं. गिरजाघरों के रंग-रोगन, सफाई और अपने घरों की साफ-सफाई की जा रही है. जीइएल चर्च में 14 दिसंबर को क्रिसमस मिलन समारोह का आयोजन किया जायेगा.
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