जैंतगढ़. जैंतगढ़ और चंपुआ के आसपास के सीमावर्ती क्षेत्रों में हर साल की तरह इस वर्ष भी हाथियों का उत्पात जारी है. सितंबर से फरवरी तक का समय स्थानीय लोगों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण होता है, जब हाथियों के झुंड दर्जनों ठिकानों पर लगातार मंडराते रहते हैं. बदलते मौसम और धान की फसल पकने के साथ ही उनका विचरण और उत्पात दोनों बढ़ जाता है. स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि हल्के धान पकने के समय से लेकर नवंबर तक खेतों में खड़ी फसलें हाथियों का प्रमुख शिकार बनती हैं. इसके बाद दिसंबर में हाथियों का रुख खलियान की ओर हो जाता है, जहां भारी मात्रा में रखा धान और आसपास के सब्जी बागान उनकी मार झेलते हैं. जनवरी-फरवरी में तो स्थिति और गंभीर हो जाती है, जब हाथी घरों में रखे धान-चावल तक सेंध लगाकर खा जाते हैं. सब्जियों के बागान भी उनके निशाने पर रहते हैं. हालांकि जनवरी के बाद कुछ झुंड धीरे-धीरे जंगल की ओर लौटने लगते हैं.ग्रामीणों के अनुसार, कुछ झुंड तो इस क्षेत्र के लिए “पेटेंट” जैसे बन गये हैं. वे इलाके के हर कोने-कोने, रास्ते, नदी और तालाब से भली-भांति परिचित हैं. कभी नदी पार करते नजर आते हैं तो कभी अपने पसंदीदा तालाबों में लोटपोट कर स्नान करते हुए दिखते हैं. आमतौर पर दो-तीन समूहों में बंटकर चलते हैं, लेकिन समय-समय पर किसी निर्धारित स्थान पर इकट्ठा भी हो जाते हैं.
सिमटता जंगल, अनियंत्रित पेड़ों की कटाई, औद्योगिक विस्तार के कारण गांवों में घुस रहे हाथी
विशेषज्ञों के अनुसार, सिमटता जंगल, अनियंत्रित पेड़ों की कटाई, औद्योगिक विस्तार और खनन क्षेत्रों में होने वाली ब्लास्टिंग के कारण हाथियों का प्राकृतिक आवास तेजी से नष्ट हुआ है. इसी वजह से वे अब जंगल छोड़ आबादी से जुड़े इलाकों तक पहुंचने को विविश हैं. धान की खुशबू, हंडिया का स्वाद और कटहल, महुआ तथा आम के मौसम में मिलने वाले फल उन्हें गांवों की ओर आकर्षित करते हैं.
जगन्नाथपुर प्रखंड में तीन समूहों में बंटे हैं 45 हाथी
फिलहाल जगन्नाथपुर प्रखंड के कई गांवों में लगभग 45 हाथियों का झुंड तीन समूहों में बंटकर उत्पात मचा रहा है, वहीं चंपुआ वन क्षेत्र में करीब 25 हाथी दो समूहों में सक्रिय हैं. लगातार हो रहे नुकसान और बढ़ते खौफ से ग्रामीण रातभर जागकर पहरा देने को विवश हैं. प्रशासन और वन विभाग हाथियों को नियंत्रित करने के लिए प्रयासरत है, लेकिन हालात अभी भी चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं.
ये हैं प्रभावित गांव
हाथी प्रभावित गांवों में लखीपाई, मसाबिला, कुआपड़ा, गुमुरिया, मंडल, बासुदेवपुर, कोंदरकोड़ा,मानिकपुर, जुगीनंदा, दावबेड़ा, जामपानी, दीपाशाही, बेलपोसी, सोसोपी, कूदाहातु, टेंटूडीपोसी, तोड़ांगहातु, कुंद्रीझोर, कॉलमसही, जोड़ापोखर, बसेरा, कसेरा, महालीमुरुम, जल्डीहा,नरसिंह पुर, सिलाई सही, पट्टाजैंत आदि. वहीं चंपुआ क्षेत्र के भंडा, टुनटुन, करंजिया, कंजिया शाला, इच्छिंड़ा ,फागू, पन पटरियां, बूढ़ामारा, गागरबेड़ा, चिमला, जामढोलक, रजिया, पांचपोखरिया, पतला, महेश्वरपुर, कंचनपुर, बालीबंद, कपिलेशपुर व मोरसुनवा आदि.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

