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झारखंड का एक ऐसा गांव जहां धनकटनी के लिए नहीं देनी पड़ती है मजदूरी, क्या है ‘देंगा देपेंगा’ परंपरा?

पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक ऐसा गांव है कुंदुबेड़ा. जहां धान कटनी के बाद नकद मजदूरी नहीं देनी पड़ती है. लोग आपस में मिल-जुलकर धान के फसल को काटते हैं. इसके लिए कोई मजदूरी नहीं लेता है. यह परंपरा सदियों से चली या रही है. कुंदुबेड़ा के किसानों ने इस परंपरा को अब भी बचाकर रखा है.

West Singhbhum News: पश्चिमी सिंहभूम जिले के कई गांवों में आज भी धान कटनी के बाद नकद मजदूरी देने की परंपरा नहीं है. ग्रामीणों में आपसी सहयोग से कार्य निपटाने की परंपरा है. इसे ‘देंगा देपेंगा’ कहा जाता है. इसके तहत ग्रामीण एक-दूसरे की फसल काटकर मदद करते हैं. कोई मजदूरी नहीं लेता है. इससे कृषि कार्य आसानी से निपट जाते हैं. ऐसा ही एक गांव है कुंदुबेड़ा. यह जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर है.

आदिवासी समाज में सदियों पुरानी है परंपरा

बुजुर्गों के अनुसार, आदिवासी समाज में सदियों से परंपरा है. जिले के अधिकांश गांवों में अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है. पुरती टाइटल बहुल कुंदुबेड़ा के किसानों ने परंपरा को अब भी बचाकर रखा है. इसका कड़ाई से पालन करते हैं. खेत में 150-200 ग्रामीण एकबार में उतरते हैं.

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150 से 200 लोग उतरते हैं धान काटने

ग्रामीणों के अनुसार, एक खेत में एक बार में 150 से 200 लोग धान काटने उतरते हैं. बीच में टिफिन होती है. किसी पेड़ के नीचे सामूहिक भोजन करते हैं. फिर हाथों में हंसिया थामे खेतों में उतर जाते हैं. इससे गरीब किसानों के बड़े से बड़े खेतों की फसल जल्दी कट जाती है.

बागवानी भी करते हैं

कुंदूबेड़ा गांव के किसान धान के साथ बागवानी भी खूब करते हैं. इस कार्य में बड़े बुजुर्ग से लेकर छोटे बच्चे भी उत्साहपूर्वक हाथ बंटाते हैं.

मजदूरों की समस्या देख पूर्वजों ने बनायी परंपरा

बुजुर्ग बताते हैं कि धान कटाई के लिए गांवों में मजदूरों का नहीं मिलना बड़ी समस्या है. इसी समस्या से निजात के लिए हमारे पूर्वजों ने यह परंपरा बनायी थी. इससे न केवल कृषि कार्य आसानी से निपट जाते है, बल्कि गांव में आपसी सहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है. इससे गरीब किसानों को बहुत लाभ होता है.

हो समाज की पुरानी परंपरा

कृषि कार्य के लिए आजकल गांवों में मजदूर नहीं मिलते हैं. ऐसे में ‘देंगा देपेंगा’ परंपरा के कारण काम आसानी से कर लेते हैं. हमें इससे बहुत लाभ होता है.

– प्रकाश पुरती, किसान

धान कटनी में हाथ बंटाने की परंपरा हो समाज में सदियों से प्रचलित है. कुंदुबेड़ा में इस परंपरा का निर्वहन उत्साहपूर्वक आज भी होता है. इससे भाईचारा बनती है.

– मंगल सिंह चातर, किसान

रिपोर्ट : संतोष कुमार गुप्ता, जगन्नाथपुर

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