उदय गिरि, फुसरो नगर, एक-डेढ़ दशक से बोकारो जिले के नावाडीह, कसमार, गोमिया व पेटरवार प्रखंड के गांवों में हाथियों का उत्पात बढ़ गया है. भोजन-पानी की तलाश में हाथी जंगल छोड़ कर कई-कई दिनों तक गांवों के आसपास बसेरा डाल देते हैं. हाथियों व ग्रामीणों का अक्सर आमना-सामना होता रहता है. गांवों में हाथियों का कहर एक विपदा जैसी ही होती है. पिछले कुछ सालों में हाथियों ने गांवों में भारी तबाही मचायी है. प्रत्येक साल औसतन तीन सौ से अधिक कच्चे मकानों को हाथी तोड़ देते हैं और आठ-10 लोगों की जान भी जा रही है.
ऊपरघाट इलाके में अक्सर गिरिडीह जिले के पारसनाथ के घने जंगलों से हाथियों का झुंड माकन-तेतरिया तथा टुंडी-तोपचांची होते डुमरी के जंगल क्षेत्रों से नावाडीह में प्रवेश कर जाता है. इसके बाद नावाडीह ऊपरघाट के नौ पंचायत कंजकिरो, पेक, मुंगो,गोनियाटो,पोखरिया, बरई, पलामू पंचायत के घने जंगलों को ठिकाना बनाता है. लगातार ऊपरघाट के गांवों में भी हाथियों का आतंक बना रहता है. यहां जंगली हाथी लंबे समय तक रुके रहते हैं.लुगु पहाड़ बना रहता है स्थायी बसेरा
लुगु पहाड़ क्षेत्र हाथियों के लिए स्थायी बसेरा बना रहता है. बंगाल-छत्तीसगढ़ कॉरिडोर से गुजरने के समय इस क्षेत्र में हाथी लंबे समय तक रुके रहते हैं. लुगु पहाड़ के तलहटी पर बसे ललपनिया का दनिया, तिलैया, चोरगांवां, मुरपा, खखंडा, डाकासाड़म हाथियों का आने-जाने का कॉरिडोर है. ललपनिया-जगेश्वर मुख्य सड़क के दूसरे ओर स्थित कुंदा, बारीडारी, टीकाहारा, खीराबेड़ा व ललपनिया तक में हाथी हर वर्ष कहर बरपाते हैं. जानकारी के अनुसार, लुगु व झुमरा जंगल में हाथियों के पसंदीदा आहार बांस है. जहां से गोमिया, झूमरा, पेटरवार, कसमार प्रखंड के गांवों में अक्सर शाम ढलते ही हाथी चारे-पानी की तलाश में गांवों की और रूख कर जाते हैं. सुबह सीमावर्ती जंगलों में डेरा डाल लेते हैं.धनकटनी के समय बढ़ जाता है आतंक
अगहन-पूस माह में धनकटनी के समय हाथियों का आतंक बढ़ जाता है. सावन-भादो माह में भी मकई व बाजरा की फसल खाने के लिए हाथियों का झुंड गांवों की ओर रुख करता है. हाथियों के उत्पात से किसान भी चिंतित रहते हैं. किसानों का कहना है कि अगर किसी तरह फसल बचा कर घर भी ले जाते हैं, तो हाथी कच्चे मकानों को तोड़ कर खाद्यान्न चट कर जाते हैं. इसके बाद मुआवजे के लिए चक्कर काटते रहते है.वन विभाग के पास नहीं कारगर उपाय
हाथियों के आतंक को रोकने और उसे घनी आबादी वाले इलाके से खदेड़ने के लिए वन विभाग के पास कोई कारगर व्यवस्था नहीं है. पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से हाथी भगाने वाले दल के आने में कई दिनों का समय लग जाता है. तब तक हाथी आतंक मचाते रहते हैं. गांवों में भी ग्रामीणों को कोई ऐसी सुविधाएं नहीं मुहै या करायी जाती है, जिससे तत्काल हाथियों को खदेड़ा जा सके. टार्च, किरोसीन, पटाखे तक नहीं होते हैं.हाथियों के हमले से मारे गये हैं कई लोग
पिछले कुछ वर्षों में हाथी के हमले से कई लोगों की जान गयी है. बीते एक सप्ताह में एक महिला समेत दो पुरुषों की जान जा चुकी है. मानकी महतो (गोपो-धवैया) , बुधन महतो (घोषको), कैलाश महतो (लहिया), मोहन महतो (मुंगो-रांगामाटी), दोरबा मांझी (इटवाबेड़ा), कार्तिक मांझी, पुरन मांझी (इटवाबेडा), लालजी महतो (गोमिया, खखंडा), दिव्यांग गुड़िया कुमारी (पचमो), जीतराम मांझी (केरी, गोमिया) शामिल हैं. इसके अलावे दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

