चार लेबर कोड लागू किये जाने के विरोध में देश की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के मंच ने 26 नवंबर को आंदोलन करने की घोषणा की है. इसके तहत धरना, प्रदर्शन होगा और रैली निकाली जायेगी. 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में भारतीय मजदूर संघ को छोड़ कर इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एक्टू, टीयूसीसी, सेवा, एआइयूटीयूसी, एलपीएफ, यूटीयूसी शामिल है. 26 नवंबर के आंदोलन की रुपरेखा तय करने के लिए बेरमो के करगली में भी 24 नवंबर को ट्रेड यूनियनों की बैठक होगी. सभी यूनियनों की तरफ से पत्र जारी किया गया है.
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड को ले यूनियनों में खलबली
चार लेबर कोड लागू किये जाने के विरोध में देश की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के मंच ने 26 नवंबर को आंदोलन करने की घोषणा कर दी है. चार लेबर में से एक इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020 (आइआर 2020) से कोल इंडिया में कई यूनियनों में खलबली मची हुई है. यूनियनों के नेताओं ने कहा कि पहले यह कानून था कि कोई भी सात वर्कर अपनी यूनियन का निबंधन कराने के लिए आवेदन दे सकता था. अब किसी इकाई में वर्कर का 10 फीसदी यूनियन का मेंबर होना चाहिए या एक सौ, तभी यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन दे सकते है. इसके बाद रजिस्ट्रार इसका वेरीफिकेशन करेंगे. इसके अलावा मजदूरों की बार्गेनिक क्षमता भी कम कर दी गयी है. जिन औद्योगिक प्रतिष्ठानों में पंजीकृत ट्रेड यूनियन मौजूद है, वहां नियोक्ता से बातचीत के लिए वार्ता यूनियन या वार्ता परिषद का गठन अनिवार्य होगा. यदि प्रतिष्ठान में केवल एक ट्रेड यूनियन कार्यरत है, तो उसे श्रमिकों की एकमात्र वार्ता यूनियन के रूप में मान्यता दी जायेगी. यदि कई ट्रेड यूनियन कार्यरत हों, तो जिस यूनियन के पास 51% या उससे अधिक श्रमिकों का समर्थन होगा, उसे एकमात्र वार्ता यूनियन के रूप में मान्यता मिलेगी. यदि किसी यूनियन के पास 51% समर्थन नहीं है, तो नियोक्ता द्वारा वार्ता परिषद का गठन किया जायेगा. वार्ता परिषद ऐसे ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों से बनेगा, जिन्हें मस्टर रोल में दर्ज कर्मियों का कम से कम 20% समर्थन प्राप्त हो. वार्ता परिषद और नियोक्ता के बीच हुए निर्णय को वैध माना जायेगा, अब कमेटी की जगह काउंसिल रहेगा.
लेबर डिपार्टमेंट व ट्रिब्यूनल नहीं रहेगा. लेबर कोर्ट में एक जज तथा एक प्रशासनिक अधिकारी रहेंगे. अगर कोई फैक्ट्री बंद हो गया और वहां 100 मजदूर कार्यरत हैं, तो वार्ता करने के लिए सरकार की अनुमति जरूरी नहीं है. 300 वर्कर रहेंगे तो सरकार से अनुमति लेना होगा. मजदूर संगठनों के अनुसार श्रम कानून में इस तरह के बदलावों का मकसद है विभिन्न श्रम कानून से मजदूरों को प्राप्त लाभ व अधिकारों से वंचित करना. फिक्स्ड टर्म इम्प्लाइमेंट जैसी नयी प्रणाली लाकर नियमित स्थाई मजदूर की प्रणाली को धीरे-धीरे खत्म करना, मजदूरों की छंटनी, ले ऑफ, क्लोज़र को आसान बना कर नियोक्ताओं को हायर एंड फायर की पूरी छूट देना, श्रम कानून पालन के संबंध में निरीक्षण की व्यवस्था को कमजोर करना. जेबीसीसीआइ की जगह रहेगा काउंसिल : मजदूर संगठनों के अनुसार कोयला उद्योग में जेबीसीसीआइ की जगह अब काउंसिल होगा. इसमें प्रबंधन व यूनियन के पांच-पांच लोग रहेंगे. कोल सेक्टर में जब जेबीसीसीआइ-12 होगा, तो उसका स्वरूप भी बदल जायेगा. मालूम हो कि जेबीसीसीआइ-11 में बीएमएस, एचएमएस, इंटक के चार-चार, एटक, सीटू के तीन-तीन सदस्य थे. लेकिन आइआर 2020 लागू हो जाने के बाद बहुत बदलाव दिखेगा. कई यूनियनों की सदस्य संख्या घटेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

