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Bokaro News : कोयला सेक्टर से झारखंड में आर्थिक विकास को मिली गति

Bokaro News : राज्य सरकार को कोयला खदानों से हर साल लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ रुपया का राजस्व प्राप्त होता है.

राकेश वर्मा, बेरमो, झारखंड में कोल इंडिया की अनुषंगी इकाई सीसीएल की 38, बीसीसीएल की 32 के अलावा इसीएल की नौ कोयला खदानें फिलहाल संचालित हैं. यानि लगभग 80 खदानें संचालित हैं. एक समय लगभग 150 कोयला खदानें संचालित थीं. हाल के कुछ वर्षों में 70 खदानें बंद हुईं. हालांकि कई नयी खदानें खुली भी हैं. इसमें इसीएल में राजमहल और सीसीएल में मगध, संघमित्रा, आम्रपाली, चंद्रगुप्त, केदला, रजरप्पा, उरीमारी आदि.

एक समय झारखंड के सीसीएल, बीसीसीएल व इसीएल के पार्ट में करीब 52 भूमिगत खदानें भी संचालित थीं. उक्त सभी भूमिगत खदानें बंद हो गयीं. झारखंड अलग राज्य गठन के बाद सीसीएल, बीसीसीएल व इसीएल पार्ट में कोयला उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन मजदूरों की संख्या घटी है. कोयला उत्पादन बढ़ने से राज्य सरकार को मिलने वाला राजस्व भी बढ़ा है. राज्य सरकार को सीसीएल, बीसीसीएल व इसीएल के झारखंड पार्ट में संचालित कोयला खदानों से हर साल लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ रुपया का राजस्व प्राप्त होता है. इसके अलावा जिस जिला में कोयला खदानें संचालित हैं, उसका एक हिस्सा जिला को डीएमएफटी फंड के रूप में जाता है. इससे जिला में विकास कार्य कराये जाते हैं. कोयला सेक्टर से मिलने वाले राजस्व से झारखंड राज्य में आर्थिक विकास को गति मिली है.

कोयले की मांग कम होना है बड़ी चुनौती

फिलहाल कोयला सेक्टर में सबसे बड़ी चुनौती कोयले की मांग का घटना है. कोयला का खपत सबसे ज्यादा पावर प्लांट में होता है. कोयला सेक्टर में कॉमर्शियल माइनिंग, रेवन्यू शेयरिंग और एमडीओ आने के बाद बिजली के क्षेत्र में कोयले की मांग घटी है, क्योंकि निजी मालिक खदान लेने के बाद कोयला आपूर्ति कर रहे हैं. बिजली उत्पादन करने वाली कई बड़ी कंपनियाें ने भी कोयले के ब्लॉक ले लिये है. जैसे एनटीपीएस कोल इंडिया का सबसे बड़ा कंज्यूमर था, लेकिन अब उसने भी कोल ब्लॉक ले लिया है. कोयले की मांग घटने से कोल इंडिया का लिक्वीड कैश घट गया है. सूत्रों की माने तो अभी हाल में ही सीसीएल ने 600 करोड़ रुपया का कर्ज लेकर अपने कर्मियों का वेतन भुगतान किया. जानकारी के अनुसार सीसीएल के पास अभी नौ मिलियन टन का कोल स्टॉक है. कोयले का अवैध खनन भी एक बड़ी चुनौती है. इससे ऑक्शन से आने वाला पैसा कम हो गया है.

क्या हैं ट्रेड यूनियन के नेता

एटक नेता व जेबीसीसीआइ सदस्य लखनलाल महतो ने कहा कि कोल सेक्टर अब निजी खानगी मालिकों के अधीन जा रहा है. स्थायी कर्मी घट रहे हैं और ठेका मजदूर बढ़ रहे हैं. कॉमर्शियल माइनिंग, रेवन्यू शेयरिंग और एमडीओ कोल सेक्टर के लिए बड़ी चुनौती है.

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