राकेश वर्मा, बेरमो, सालाना 10-15 लाख टन कोयला उत्पादन करने वाली सीसीएल की कथारा एरिया अंतर्गत जारंगडीह परियोजना में 700 से ज्यादा कर्मी कार्यरत हैं. सीसीएल की कॉलोनियों में रहने वाले सैकड़ों मजदूरों को हर दिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. कमियों की शिकायत करने पर संवेदक डराते-धमकाते हैं. यूनियनों के दबाव पर वरीय अधिकारी समय-समय पर कॉलोनियों का निरीक्षण करते हैं, लेकिन सुधार नहीं दिख रहा है. किसी क्वार्टर का छज्जा टूटा है, तो किसी की सीढ़ी. किसी क्वार्टर की दीवार में पेड़ उग गया है, तो कहीं टंकी से पानी रिस रहा है. शौचालय की स्थिति जर्जर है.
जारंगडीह माइनस टाइप डबल स्टोरी एमक्यू में करीब 10-11 ब्लॉक हैं. एक ब्लॉक में 16 क्वार्टर हैं. यहां एक सौ से ज्यादा कोयला कामगार रहते हैं और नारकीय जिंदगी जीने को विवश हैं. मजदूरों के अनुसार यहां पानी की समस्या विकराल है. सप्ताह में दो दिन कुछ समय के लिए सीसीएल द्वारा रॉ वाटर की आपूर्ति की जाती है. इसे दो-तीन बार उबाल कर पीना पड़ता है. झारखंड सरकार की तेनुघाट मेघा जलापूर्ति योजना का भी कनेक्शन है, लेकिन प्रेशर ही नहीं रहता है. सीएएमसी के तहत क्वार्टरों में छिटपुट काम कराया जाता है. प्रबंधन को आवेदन देने पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. जारंगडीह 16 नंबर के मजदूर धौड़ा की स्थिति और खराब है. 11 नवंबर को जीएम संजय कुमार ने यूनियन नेताओं के साथ कॉलोनियों का निरीक्षण किया था तथा स्थिति को देख कर असैनिक अधिकारियों को कड़ी फटकार लगायी थी.स्वच्छता काे मुंह चिढ़ा रही आवासीय काॅलोनियां
जारंगडीह परियोजना की टाटा ब्लॉक, माइनस क्वार्टर, डबल स्टोरी, बारह नंबर कॉलोनी की स्थिति स्वच्छता काे मुंह चिढ़ा रही है. जगह-जगह कचरा जमा है. नालियां गंदगी से बजबजा रही हैं. मजदूर नेताओं का कहना है कि क्षेत्र का असैनिक विभाग विफल है. संवेदक असैनिक विभाग के अधिकारियों को अपनी जेब में रखते हैं. यदि कोई शिकायत करे, तो उसे धमकाया जाता है. सीएएमसी के तहत करोड़ों की निविदा होती है, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं होता.क्या कहना है कोल कर्मियों का
सोना मंझियाइन ने कहा कि क्वार्टर में पानी की समस्या गंभीर है. पांच-छह दिनों में एक बार कुछ देर के लिए पानी आता है. बाथरूम जर्जर है. आवेदन देने के बाद भी काम नहीं होता है. विष्णुजना ने कहा कि क्वार्टर की सीढ़ी टूट गयी है. उसकी जगह स्लोप बना दिया गया है, जिसमें उतरने व चढ़ने में काफी परेशानी होती है. एक बार गिर भी गयी थी. क्वार्टर की छत से पानी रिसता है. राकेश सिंह ने कहा कि क्वार्टर के पीछे गंदगी व छाई का जमा है और बाउंड़ी से भी ऊंचा हो गया है. नालियां गंदगी से बजबजा रही है. कई बार आवेदन देने के बाद भी क्वार्टर में तारफ्लेटिंग नहीं की गयी.क्या कहना है सिविल अभियंता का
कॉलोनियों में सीएएमसी के तहत डे टू डे वर्क कराये जाते है. छठ पर्व के समय भी कुछ काम हुआ था. परियोजना में फरवरी-मार्च में सीएएमसी का टेंडर हुआ है. काम के एवज में भी किसी भी संवेदक को पेमेंट का भुगतान नहीं किया गया है.मो फिरदौस, प्रोजेक्ट इंजीनियर (सिविल), जारंगडीह परियोजना
क्या कहते हैं यूनियन नेता
पूरे सीसीएल में सीएएमसी की स्थिति ठीक नहीं है. मजदूर क्वार्टरों की स्थिति पहले जैसी ही है. सीएएमसी के तहत कई कांट्रेक्ट अवार्ड हुए, लेकिन काम धरातल पर दिख नहीं रहा है. छोटी-छोटी निविदा को समाप्त कर सीएएमसी लाने का कोई फल नहीं दिखता. लखनलाल महतो, एटकजाने क्या है सीएएमसी
सीसीएल के हर एरिया में सीएएमसी (कंपरीहेनसिव एनुअल मेटेनेंस कांट्रेक्ट) के तहत सालाना करोड़ों रुपये का काम होता है. अमूमन एक एरिया में सीएएमसी के तहत 15-20 करोड़ का काम होता है. लेकिन मजदूर धौड़ों में रहने वाले मजदूरों को इस योजना का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है. एक तरफ रिहाइसी कॉलोनियों में कई-कई क्वार्टरों पर कब्जा कर कुछ लोग ऐशो आराम की जिंदगी जीते हैं, वहीं कोयला उत्पादन में लगे कोयला मजदूर आज भी नारकीय जीवन जीने को विवश हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

