कसमार, कसमार प्रखंड के कृषक परिवारों ने बुधवार को रहइन परब विधि-विधान से मनाया. खासकर कुड़मी समेत अन्य जनजातीय कृषक परिवारों में इस परब को लेकर उत्साह देखा गया. जेठ महीने के 13वें दिन को विशेषकर कुड़मी समुदाय द्वारा रहइन परब मनाया जाता है. यह पूर्ण रूप से कृषि कर्म व वंदन बांदन से जुड़ा पर्व है. रहइन के मौके पर अहले सुबह प्रत्येक घर की महिला सदस्यों ने अपने घर की बाहरी दीवारों में अपने हाथ से गोबर का चिन्ह (एक प्रकार की लकीर) चारों ओर लगाया. यह कार्य एक योग के माध्यम से किया गया. क्योंकि इसमें किसी का टोकना या बातचीत करना मना रहता है. ऐसी मान्यता है कि यदि यह कार्य पूरे मनोयोग से करने पर उस घर में साल भर किसी प्रकार का कोई सांप-बिच्छू आदि प्रवेश नहीं करता है. गोबर का चिन्ह लगाने के बाद घर-आंगन की लीपापोती कर पुरुष सदस्य कृषि कार्य में संलग्न हुए. इसके तहत एक ढुभा में बिहन बीज लाया गया. भूत पीढ़ा और ग्राम थान में देने के पश्चात उसे गमछा या धोती में ढक कर अपने खेत में ले गये. खेत के उत्तर-पूर्व कोना में उस बीज को विधिविधान से बोया. इसे ‘बीज पुन्यहा’ भी कहते हैं. इधर, घर में महिलाएं नहा-धोकर गोबर से पोताई की. फिर अपने मापक की वस्तुओं (पेछिया, पेइला, पुवा, टोकी आदि) को धोने के बाद गुड़ी देकर सिंदूर का टीका लगाया गया. इसके बाद अच्छी फसल की कामना के लिए पूजा-अर्चना की गयी. पूजा में कबूतर, बत्तख, बकरी आदि की बलि भी दी गयी. शाम को घर की कुंवारी लड़कियां अपने खेत को छोड़कर दूसरे के खेतों से रहइन मिट्टी लायी. इसे लाने के क्रम में भी किसी से बातचीत नहीं करने का रिवाज है. इस मिट्टी को पहले भूत पीढ़ा में और फिर प्रत्येक घर के तीन कोना में रखा गया. शेष बची मिट्टी को यत्नपूर्वक रखा गया. बगदा के जानकी महतो, चांदमुख महतो, सुखदेव राम, धर्मनाथ महतो आदि ने बताया कि खेतों में बीज डालने के समय बीच में यह मिट्टी मिलायी जाती है. पूजा अर्चना में भी इस मिट्टी का तिलक लिया जाता है. छुआइत होने पर भी इसका उपयोग होता है. इस अवसर पर ग्रामीणों ने आषाड़ी फल का सेवन भी किया.
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