कसमार, चंदनकियारी प्रखंड के लंका गांव में सोहराय पर्व पर आयोजित दो दिवसीय बुढ़ी बांदना मेला शनिवार की रात संपन्न हो गया. गांव के ऐतिहासिक मैदान में हुए इस आयोजन में परंपरा, खेल और लोक संस्कृति का संगम देखने को मिला. शुक्रवार को पारंपरिक काड़ा खूंटा अनुष्ठान से कार्यक्रमों की शुरुआत हुई. इसके बाद जामबाइद मिलन आखड़ा में आयोजित महिला पाता नाच में 35 से अधिक युवतियों ने पारंपरिक वेशभूषा में मनमोहक लोकनृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीत लिया. 11 बजे से मुर्गा लड़ाई और ‘दो लाख दस हजार रुपये का फुटबॉल धमाका’ टूर्नामेंट की शुरुआत हुई. देर रात तक चली रोमांचक भिड़ंतों में खिलाड़ियों की जुझारू खेल भावना देखने लायक रही. साथ ही, पद्मश्री स्वर्गीय गंभीर सिंह मुंडा एवं स्वर्गीय रासु सहिस की टीम द्वारा प्रस्तुत छऊ नृत्य ने पूरे मैदान में उत्सव का वातावरण बना दिया. शनिवार को मेले के दूसरे दिनमुर्गा लड़ाई और फुटबॉल टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला खेला गया, जिसमें मागुडिया (पुरुलिया) की टीम ने सीधाबाड़ी को 5-4 गोल से हराकर खिताब अपने नाम किया. मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब पगलू मुर्मू को मिला, जिन्होंने पूरे टूर्नामेंट में 11 गोल दागे. दोपहर बाद प्रसिद्ध छऊ नृत्य कलाकार उस्ताद गीता रानी शबर और उस्ताद नेहारी सहिस की टीम ने पारंपरिक महिला छऊ नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. रात में सतीश दास म्यूजिकल नाइट के दौरान हजारों लोगों ने संगीत की धुनों पर झूमकर सोहराय पर्व के इस ऐतिहासिक आयोजन को यादगार बना दिया. गांव के युवाओं और बुजुर्गों की संयुक्त पहल पर आयोजित इस मेले में सोलह आना कमेटी के सदस्य और आयोजन समिति के पदाधिकारी सक्रिय रहे. उन्होंने बताया कि लंका में सोहराय केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि हमारी आदिवासी अस्मिता, लोकजीवन और एकता का प्रतीक है. यह त्योहार पूरे गांव को एक सूत्र में जोड़ता है. हमारी कोशिश है कि आने वाली पीढ़ियां इस परंपरा को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं. लंका गांव का यह बुढ़ी बांदना मेला अब सिर्फ स्थानीय आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह आसपास के जिलों में भी प्रसिद्ध हो चुका है. इस बार भी हजारों की संख्या में ग्रामीण, कलाकार और दर्शक शामिल हुए. पूरे दो दिनों तक ढोल-मांदर की थाप, लोकगीतों की गूंज और उल्लास के बीच लंका गांव सोहराय पर्व के रंगों में पूरी तरह रंगा नजर आया.
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