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26 हजार करोड़ के घाटे में पेंशन फंड

कोल इंडिया. बदहाली के दौर में पहुंची कोल कर्मियों की पेंशन फंड स्कीम कोयला पर सेस लेने से ही पेंशन की परेशानी से बचना संभव कोल माइंस वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन के समय लिये जाने वाले शेष का पैसा जुटता था पेंशन फंड में सीएमपीएफ का कोल इंडिया में विलय की मांग कर रहे मजदूर संगठन बेरमो […]

कोल इंडिया. बदहाली के दौर में पहुंची कोल कर्मियों की पेंशन फंड स्कीम

कोयला पर सेस लेने से ही पेंशन की परेशानी से बचना संभव
कोल माइंस वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन के समय लिये जाने वाले शेष का पैसा जुटता था पेंशन फंड में
सीएमपीएफ का कोल इंडिया में विलय की मांग कर रहे मजदूर संगठन
बेरमो : कोल इंडिया लिमिटेड में कोयला मजदूरों का पेंशन फंड काफी नाजुक हालत में है. कोयला कामगारों की कोयला खान भविष्य निधि पेंशन स्कीम 98 पर संकट गहराता जा रहा है. एक आकलन के अनुसार वर्तमान में कोल इंडिया का पेंशन फंड लगभग 26 हजार करोड़ के घाटे में है. श्रमिक नेता कहते हैं कि जब तक भारत सरकार का शेयर पेंशन फंड में नहीं जुटेगा तब तक पेंशन पुनर्जीवित नहीं होगा.
सेस से सुधर सकती है स्थिति : मालूम हो कि दशकों पहले कोल माइंस वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन के दौर में कोयला पर प्रति टन सेस लिया जाता था. यह पैसा पेंशन फंड में जुटता था. साथ ही इसी राशि से ऑर्गेनाइजेशन भी चलता था. अगर वर्तमान में सरकार प्रति टन कोयले पर सेस लेकर उसे पेंशन फंड में डायवर्ट कर दे तो फंड की स्थिति फिर सुधर सकती है, क्योंकि प्रति टन सेस फिक्स करने से सरकारी व निजी मालिक दोनों से पैसा आयेगा. फिलहाल कोयला मजदूरों की भविष्य निधि हर माह 14 फीसदी कटती है. इसमें 12 फीसदी कोल प्रबंधन देता है.
प्रबंधन के पास श्रमिकों का पैसा : फिलहाल कोल इंडिया प्रबंधन के पास कोयला मजदूरों का करीब 65 हजार करोड़ रुपया पड़ा हुआ है. सीएमपीएफ का बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ही इसका कस्टोडियन है. एटक नेता लखनलाल महतो कहते हैं कि अब मजदूरों की इस गाढ़ी कमाई के रखरखाव के लिए सरकार ने टेंडर निकाला है. इसका रखरखाव अब रिलायंस व आइसीआइसीसीआइ जैसी निजी संस्था करेगी. सरकार ने इसके लिए निजी संस्था से इओआइ (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) भी मांगा था. कई कंपनियों ने टेंडर में हिस्सा भी लिया, पर मजदूर संगठनों के भारी विरोध के कारण फिलहाल सरकार ने इसे स्थगित कर दिया है. फिलहाल सरकार की इस पर पैनी नजर है.
क्या है एक्चुअरी की मूल्यांकन रिपोर्ट : एक्चुअरी भूदेव चटर्जी ने गत वर्ष कंपनी को सौंपी गयी मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंशन फंड का घाटा 26,341.79 करोड़ रु दर्शाया था. रिपोर्ट के बाद निकट भविष्य में रिटायर होनेवाले अधिकारियों व कोल इंडिया के कर्मियों में बेचैनी बढ़ गयी. अधिकारियों व कर्मियों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि पेंशन फंड की स्थिति जल्द ही नहीं सुधरी तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलनी मुश्किल होगी. मालूम हो कि वर्तमान में कंपनी में करीब 3.15 लाख कर्मी हैं. हर माह रिटायर होनेवाले कर्मियों की संख्या भी काफी बढ़ रही है. वर्ष 2016 तक कर्मियों की तादाद घटकर दो लाख के करीब होने की संभावना है.
फंड में योगदान नहीं होने से स्थिति नाजुक : एक्चुअरी भूदेव चटर्जी ने अपनी रिपोर्ट में पेंशन फंड के घाटे के कारणों का खुलासा कि़या है. रिपोर्ट में जिक्र था कि पेंशन का मॉडल कोलकर्मियों के लाभ के लिए बनाया गया था. इसमें तय राशि वेतन मद में काटने और निर्धारित पेंशन ही देने की बात है. पेंशन स्कीम फंड की मजबूती और वेतन के बढ़ने पर निर्भर करता है. वर्ष 2007 में कोल इंडिया के अधिकारियों का वेतन काफी बढ़ा. हालांकि पेंशन फंड में योगदान उस अनुपात में नहीं बढ़ा. अधिक वेतन पाने वाले कई अधिकारी जल्द रिटायर हो गये. उनकी पेंशन बेहतर फिक्स हुई. इससे पेंशन फंड पर अधिक बोझ बढ़ा.
पहले रिटायर्ड कर्मियों को काफी कम पेंशन : पहले रिटायर हुए कर्मियों को वर्तमान के अपेक्षाकृत काफी कम पेंशन मिलती थी. इसमें 500 से लेकर एक हजार रुपये तक की बढ़ोतरी की वकालत संयुक्त आयुक्त (पेंशन) ने की थी. यह भी बता दें कि पेंशन फंड में कोलकर्मियों का बेसिक, वीडीए व एसडीए का 1.16 फीसदी, दो फीसदी नोशनल सैलरी, सेंट्रल गवर्मेंट मैचिंग ग्रांट 1.67 फीसदी ऑफ बेसिक और अधिकतम 27 रुपये का योगदान रहता है. कर्मियों के वेतन का 1.16 फीसदी कंपनी देती है. जुलाई 1995 में तय बेसिक की एक वृद्धि भी देती है. वर्ष 1995 के बाद बहाल होनेवाले कर्मियों के लिए कंपनी की ओर से योगदान नहीं दिया जाता है. उन्हें स्वत: अपना शेयर देना होता है. प्रति टन कोयला पर सेस लेने से ही दूर हो सकती है पेंशन की परेशानी.
नेताओं ने किया पेंशन कटौती के प्रस्ताव को खारिज
गत 15 मई को कोल इंडिया मुख्यालय में आयोजित सीएमपीएफ ट्रस्टी बोर्ड की सब कमेटी की बैठक में यूनियन नेताओं ने पेंशन कटौती के प्रस्ताव को एक सिरे से खारिज कर दिया था. इन्होंने यूनियन नेताओं ने पेंशन फंड के लिए केंद्र सरकार से कोल इंडिया प्रबंधन को 25 हजार करोड़ रु देने की मांग की. यह बैठक पेंशन कटौती को लेकर थी, लेकिन यूनियन नेताओं का रुख देखते हुए बैठक में पेंशन फंड पर चर्चा हुई. पेंशन कटौती के मुद्दे पर हंगामे के साथ संपन्न बैठक में पेंशन कटौती को लेकर प्रबंधन के प्रस्ताव को यूनियन प्रतिनिधियों ने एक सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने दो टूक कहा कि पेंशन कटौती से संबंधित किसी भी तरह की नियमावली को स्वीकार नहीं किया जायेगा. यूनियन नेताओं ने सीएमपीएफ के कोल इंडिया में विलय का प्रस्ताव भी रखा.
सीएमपीएफ बोर्ड ऑफ ट्रस्टी का कहना है
सीएमपीएफ का मानना है कि पेंशन फंड स्कीम बदहाली के दौर में है. इसे सुधारने के लिए 25 हजार करोड़ और 18 प्रतिशत अंशदान की जरूरत है. कामगारों की सर्विस पीरियड के अंत में 10 माह के वेतन के औसत पर 25 प्रतिशत पेंशन देने का प्रावधान है. बोर्ड कामगारों के सेवाकाल के अंत में 60 माह के औसत पर पेंशन फिक्स करना चाहता है. इसके लिए वेतन की सीलिंग भी 65 हजार रु करना चाहता है. यूनियन प्रतिनिधियों ने कहा कि सीएमपीएफ का कोल इंडिया में विलय होना चाहिए. इससे कोल इंडिया द्वारा सीएमपीएफ को प्रशासनिक मद में हर माह भुगतान की जाने वाली तीन प्रतिशत रकम बचेगी. सीएमपीएफ के कोल इंडिया में विलय के मामले में प्रबंधन ने कहा कि सीएमपीएफ संसद के कानून से बना है. सब कमेटी को यह अनुशंसा करने का अधिकार नहीं है.

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