रांची: झारखंड चुनावों में भाजपा-आजसू गठबंधन को 81 सदस्यीय विधानसभा में 42 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद अब भाजपा में मुख्यमंत्री पद पाने की होड शुरु हो गयी है. इसमें सबसे आगे पूर्व उपमुख्यमंत्री रघुवर दास माने जा रहे हैं.
झारखंड विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित होते ही कल भाजपा और उसके सहयोगी आजसू के कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त उत्साह है क्योंकि 14 वर्ष के राजनीतिक इतिहास में झारखंड राज्य में पहली बार स्पष्ट बहुमत की सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया. चुनावों में भाजपा ने 37 सीटें और आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन ने पांच सीटें जीती हैं.
भाजपा ने झारखंड में मुख्यमंत्री के चयन के लिए पार्टी महासचिव जेपी नड्डा और विनय सहस्रबुद्धे को केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किया है, जिसे देखते हुए राज्य में मुख्यमंत्री पद पाने की शीर्ष नेताओं में होड लग गयी है.पर्यवेक्षकों के अनुसार इस दौड में सबसे आगे पांचवीं बार जमशेदपुर पूर्व में विधायक चुने गये पूर्व उपमुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम है.
रघुवर दास दो बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.हालांकि सूत्रों के अनुसार दास का नाम राज्य में करोडों रुपये के कथित ‘मेनहर्ट घोटाले’ में भी उछला था जिसके चलते भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को उन्हें स्वीकार करने में कठिनाई हो सकती है.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत और झारखंड विकास मोर्चा के विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने कहा कि इसकी जांच के लिए बनी विधानसभा की समिति की अनुशंसाओं के कार्यान्वयन समिति के वह सदस्य थे और यह पाया था कि रांची में सीवरेज और ड्रेनेज प्रणाली विकसित करने के लिए 2005 में तत्कालीन भाजपा सरकार के नगर विकास मंत्री के तौर पर रघुवर दास ने सिंगापुर कंपनी ‘मेनहर्ट’ को परामर्शी नियुक्त किया था जिसमें निविदा की शर्तों और चयन की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ था.
इस मामले में परामर्शी कंपनी को लगभग 21 करोड, चालीस लाख रुपये का भुगतान किया गया था और इसे लेकर विधानसभा में कई दिनों तक हंगामा भी होता रहा था. इस परियोजना की अनुमानित लागत छह सौ करोड रुपये थी. यह मामला राज्य निगरानी विभाग को जांच के लिए भेजा गया था और इस पर आज तक कोई कार्रवाई ही नहीं हुई.मुख्यमंत्री पद की दौड में दूसरा बडा नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता और जमशेदपुर पश्चिम से कांग्रेस के राज्य के मंत्री बन्ना गुप्ता को पराजित कर जीत दर्ज करने वाले सरयू राय का है.
सरयू राय संयुक्त बिहार के समय से ही भाजपा के झारखंड क्षेत्र के वरिष्ठ नेता रहे हैं और उन्हें अनेक सामाजिक कार्यों और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए विशेष रुप से जाना जाता है लेकिन भाजपा का एक वर्ग उन्हें मूलत: बिहार का मानता है.
दूसरी ओर, भाजपा में एक बडा वर्ग पहले से ही इस बार इस बात की तैयारी कर रहा है कि राज्य को पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री होना चाहिए क्योंकि यहां सिर्फ 26 से 28 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या होने के कारण आदिवासी को ही मुख्यमंत्री बनाने का नियम नहीं होना चाहिए.
इस पक्ष के समर्थक स्वयं झारखंड के पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह और वरिष्ठ नेता सरयू राय भी हैं जिनका मानना है कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद जाति और धर्म देखकर नहीं तय होना चाहिए. अलबत्ता इस पद के लिए उम्मीदवार सिर्फ योग्यता और अनुभव के आधार पर तय होना चाहिए.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत और झारखंड विकास मोर्चा के विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने कहा कि गैर आदिवासी के राज्य का मुख्यमंत्री बनने पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरे प्रमुख दावेदार रांची की प्रतिष्ठापरक सीट से लगातार पांचवीं बार 58 हजार से अधिक मतों से भारी जीत दर्ज करने वाले पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह हैं. अपनी सरलता और सर्वसुलभता के लिए प्रदेश में जाने जाने वाले सीपी सिंह किसी गुट में विश्वास नहीं करते हैं.
इन तीनों के अलावा आदिवासी चेहरों में इस बार राज्य के अनेक बार मंत्री रह चुके नीलकंठ सिंह मुंडा और दुमका में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हराने वाली आदिवासी नेता लुईस मरांडी का नाम भी चर्चा में है.
केंद्र सरकार में राज्य के प्रतिनिधि आदिवासी कल्याण राज्य मंत्री सुदर्शन भगत और हाल में वित्त राज्य मंत्री बने जयंत सिन्हा का नाम भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गिना जा रहा है.