कुव्यवस्था . रखरखाव के अभाव में मठ बदहाल
Advertisement
गड़ेरिया मठ में कभी पढ़े जाते थे कबीर के दोहे
कुव्यवस्था . रखरखाव के अभाव में मठ बदहाल महनार : प्रखंड और महनार नगर की सीमा पर स्थित गड़ेरिया मठ अपने अस्तित्व को बचाने में लगा है. लावापुर-महनार और महनार बाजार के बीच मुख्य सड़क के किनारे गड़ेरिया मठ स्थित है. स्थानीय लोग भी इसे भूलने लगे हैं. करीब दो सौ सालों की आध्यात्मिक संपदाओं […]
महनार : प्रखंड और महनार नगर की सीमा पर स्थित गड़ेरिया मठ अपने अस्तित्व को बचाने में लगा है. लावापुर-महनार और महनार बाजार के बीच मुख्य सड़क के किनारे गड़ेरिया मठ स्थित है. स्थानीय लोग भी इसे भूलने लगे हैं. करीब दो सौ सालों की आध्यात्मिक संपदाओं और सामाजिक अवधारणाओं का यह मठ साक्षी रहा है. बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में यह क्षेत्र आबाद हुआ माना जाता है. हरियाणा क्षेत्र की आबादी ने अपना विस्तार इस क्षेत्र में किया था. प्रायः हरियाणा और उसके बाद के पश्चिमी ठंडे प्रांतों से कुछ भेड़ पालकों के परिवार इधर आये थे. ये परिवार जातीय अवधारणा से गड़ेरी कहलाते हैं. कालांतर में चारागाहों की कमी होती गयी, तो इन परिवारों ने भेड़ पालन ही नहीं छोड़ा बल्कि परिवारों ने पलायन भी कर लिया. अब महज दस-बारह परिवार ही हैं.
इन्ही परिवारों ने आपसी सहयोग से जमीन देकर मठ की स्थापना कोई दो सौ वर्ष पूर्व की थी. मठ में कबीरदास के ग्रंथों की पूजा होती थी. मठ के संस्थापक महंत प्रभु दास के बाद मनोहर दास, रामविलास दास ने गद्दी संभाली. अब मठ में कोई साधु नहीं है. मठ का भवन ध्वस्त हो चुका है. स्थानीय बुजुर्ग जलधारी राउत मठ में पूजा -पाठ की औपचारिकता निभाते हैं. मठ धार्मिक न्यास पर्षद से निबंधित भी नहीं है. वहीं मठ की जमीन भी विवादित बतायी गयी है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement