हाजीपुर : बगैर लाइसेंस और निबंधन के अवैध रूप से संचालित सैकड़ों निजी अस्पताल और क्लिनिक मुर्दे से कफन छीनने की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. लालच और पैसे की भूख ने सोख ली है इनकी सारी संवेदनाएं और टूट रहा है वह भरोसा और विश्वास, जो लोगों के अंदर चिकित्सा सेवा के प्रति […]
हाजीपुर : बगैर लाइसेंस और निबंधन के अवैध रूप से संचालित सैकड़ों निजी अस्पताल और क्लिनिक मुर्दे से कफन छीनने की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. लालच और पैसे की भूख ने सोख ली है इनकी सारी संवेदनाएं और टूट रहा है वह भरोसा और विश्वास, जो लोगों के अंदर चिकित्सा सेवा के प्रति अभी तक कायम था.
इन चिकित्लयों में इलाज के नाम पर धोखाधड़ी और मरीजों व उनके परिजनों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार को देखने सुनने वाला कोई नहीं. हालांकि, तसवीर का दूसरा पहलू भी है. वह यह कि नगर में या जिले के अन्य हिस्सों में भी कुछ ऐसे चिकित्सक हैं, जो अपनी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा की बदौलत इस सेवा की लाज बचाये हुए हैं. निजी क्लिनिकों व अस्पतालों में यदि क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को लागू कराने के प्रति जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग गंभीर होता,
तो स्थिति बदल सकती थी. चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह राज्य सरकार के क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को जिले के सभी क्लिनिकों में लागू कराये. चिकित्सा विभाग के लोगों का मानना है कि यदि डॉक्टर ईमानदारी पूर्वक अपने यहां इस एक्ट का पालन करें तो उनके क्लिनिक में इलाज की बेहतर व्यवस्था देखने को मिल सकती है. मरीजों का इलाज भी उचित तरीके से हो सकेगा. जानकारों का कहना है कि हाजीपुर समेत जिले के जिस प्राइवेट क्लिनिक या नर्सिंग होम में एक्ट का पालन नहीं हो रहा है, उसे फौरन बंद कराया जाना चाहिए, ताकि गलत इलाज के कारण लोगों को मरने से बचाया जा सके.
ऐसे चलते हैं निजी क्लिनिक और नर्सिंग होम : डॉक्टर साहब की फीस पांच सौ रुपये, लेकिन उनके यहां आने वाले तकलीफ से कराहते मरीज के बैठने की जगह नहीं. मरीज की मजबूरी कि वह जितना कष्ट में हो, घंटों खड़े रह कर अपना नंबर आने का इंतजार करे. यह दृश्य आपको शहर में अनेक ऐसे प्राइवेट क्लिनिकों में दिखेंगे, जहां प्रतिदिन मरीजों की भीड़ लगी रहती है. शहर में मरीजों से तीन से पांच सौ रुपये तक परामर्श शुल्क लेने वाले डॉक्टर तो मौजूद हैं,
लेकिन उनके यहां रोगियों के बैठने तक की सुविधा नहीं है. इन क्लिनिकों का हाल देखेंगे तो ऐसा लगेगा मानो ये क्लिनिक के बजाय दरबे में दुकान चला रहे हों. कुछ को छोड़ कर ज्यादातर प्राइवेट क्लिनिकों में रोगियों के लिए न्यूनतम सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं. ये क्लिनिक कहीं से स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं हैं. जहां-तहां खोले गये नर्सिंग होम्स का भी यही हाल है. दो-चार चौकियां रख दी, हरे रंग का परदा टांग दिया, किसी तरह एक ओटी और एक चिकित्सक कक्ष बना दिया और खुल गया नर्सिंग होम. ऐसे नर्सिंग होम्स ही मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं.
इलाज और ऑपरेशन की कोई फीस निर्धारित नहीं : लोगों का कहना है कि डॉक्टर की फीस, जांच की दर और ऑपरेशन की फीस निर्धारित नहीं होने के कारण भी रोगियों को शोषण-दोहन का शिकार होना पड़ता है. प्रशासनिक स्तर पर इन सभी चीजों की दर निर्धारित होनी चाहिए और उसकी सूची सभी क्लिनिकों और नर्सिंग होम्स में लगायी जानी चाहिए. इससे मनमानी और नाजायज वसूली पर रोक लगेगी और मरीजों को राहत मिलेगी.
क्या कहते हैं अधिकारी
अवैध रूप से चलाये जा रहे जांच घरों के विरुद्ध फिलहाल कार्रवाई की जा रही है. प्राइवेट क्लिनिक और अस्पतालों की भी जांच की जायेगी. क्लिनिक इस्टेबलिशमेंट एक्ट का पालन सुनिश्चित कराया जायेगा.