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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बदहाली का शिकार, एक डॉक्टर के सहारे चल रहा 30 बेड का अस्पताल

जर्जर भवन और स्वच्छता की बदहाली

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बलुआ बाजार. छातापुर प्रखंड के बलुआ बाजार स्थित 30 बेड वाला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पूरी तरह बदहाली का शिकार है. जहां कम से कम चार डॉक्टरों की आवश्यकता है, वहां एक भी स्थायी डॉक्टर पदस्थापित नहीं है. वर्तमान में अस्पताल केवल एक ट्रेनिंग पर आए डॉक्टर के सहारे चल रहा है. प्रसव सेवा के लिए बनाए गए ए वन फैसेलिटी वार्ड में एक भी महिला चिकित्सक नहीं है. नतीजतन कभी नर्स तो कभी बाहरी व्यक्ति प्रसव वार्ड में निगरानी करता है, जिससे प्रसूताओं को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. पोषाहार वितरण में भी महज खानापूर्ति की जाती है. स्थानीय आवाजें और मांगें हुईं अनसुनी स्थानीय मंचों से बलुआ अस्पताल की स्थिति सुधारने की मांग कई बार उठ चुकी है. 03 जनवरी को ललित बाबू के बलिदान दिवस पर मंच संचालक प्रभात मिश्र ने खुले मंच से जिलाधिकारी कौशल कुमार से दो स्थायी डॉक्टरों की नियुक्ति की मांग की थी. वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय की जनसभा में भी बलुआ अस्पताल की दुर्दशा को उठाया गया. बावजूद इसके, अब तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. एंबुलेंस व जांच सुविधा ठप अस्पताल में उपलब्ध एकमात्र एम्बुलेंस वर्षों से खराब पड़ी है. वहीं, किसी भी तरह की मेडिकल जांच सुविधा नहीं है, जिससे ओपीडी सेवा देने वाले अस्थायी डॉक्टरों को इलाज में भारी कठिनाई होती है. ट्रेनिंग पर आए डॉक्टरों ने भी इस मुद्दे को लेकर अपनी असमर्थता जाहिर की है. जर्जर भवन और स्वच्छता की बदहाली लाखों की लागत से बने इस अस्पताल की इमारत अब जर्जर होती जा रही है. बारिश में छत से पानी टपकता है और चारों ओर गंदगी का आलम है. शौचालय से लेकर पेयजल व्यवस्था तक सभी कुछ बदहाल है, जो सरकार के स्वच्छता मिशन की पोल खोलता है. अस्पताल कर्मियों की उपस्थिति पर भी सवाल उठ रहे हैं. कई कर्मी केवल कागजों पर उपस्थित दिखाए जाते हैं और वेतन उठा रहे हैं, जबकि अस्पताल परिसर में उनकी मौजूदगी नजर नहीं आती. 30 किलोमीटर के दायरे में एकमात्र अस्पताल बलुआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लगभग दर्जनों पंचायतों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने वाला अकेला अस्पताल है. इसके बावजूद यहां न तो आपातकालीन सेवा उपलब्ध है और न ही न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाएं. सर्पदंश और सड़क दुर्घटनाओं जैसे मामलों में समय पर इलाज न मिलने से कई लोगों की जान जा चुकी है. राजनीतिक रूप से सक्रिय क्षेत्र होने के बावजूद बलुआ की धरती आज भी विकास के नाम पर उपेक्षा की शिकार है. जहां एक ओर देश तरक्की की राह पर अग्रसर है, वहीं बलुआ के लोग आज भी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधा के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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