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सात दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का हुआ समापन

स्वामीजी ने सप्त दिवसीय कथा से प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन व चरित्र में उतारने की अपील की

कथा वाचक ने श्रद्धालुओं से की कथा से प्राप्त ज्ञान को जीवन व चरित्र में उतारने की अपील छातापुर. मुख्यालय स्थित संतमत योगाश्रम के समीप आयोजित सप्त दिवसीय संतमत सत्संग (माध्यम श्रीमद्भागवत महापुराण कथा) समापन के दिन शुक्रवार को जन सैलाब उमड़ पड़ा. समापन सत्र में संध्याकाल हजारों की संख्या में सत्संग प्रेमी महिला व पुरुषों ने विनम्र भाव से स्वामी गुरूनंदन जी महाराज को नमन कर उन्हें विदाई दी. समापन सत्र में कथा संपन्न होने के बाद मंगल व समदन गीत का गायन हुआ और आरती पश्चात श्रद्धालुजनों ने प्रसाद ग्रहण किया. इस दौरान स्वामीजी ने सप्त दिवसीय कथा से प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन व चरित्र में उतारने की अपील की. वहीं आयोजन को शांति पूर्वक संपन्न कराने के लिए कमेटी के सदस्यों एवं स्थानीय लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया. स्थानीय अशोक भगत, सुशील कर्ण, नागेश्वर मंगरदैता आदि ने क्षमा याचना कर स्वामीजी से आयोजन में किसी भी प्रकार की त्रुटि एवं भूल के लिए क्षमा मांगी. साथ ही जीव व जगत कल्याण के लिए फिर से छातापुर आने तथा कथा के माध्यम से जन-जन में ज्ञान की ज्योति जलाने की विनती की. इस दौरान मंच से हुई उद्घोषणा के मुताबिक आगामी 11, 12 एवं 13 मार्च को सुपौल के बगही में तीन दिवसीय संतमत सत्संग सह प्रवचन कार्यक्रम में भाग लेने का अनुरोध किया गया. आयोजन संपन्न होने के बाद सैकडों की संख्या में लोगों ने भंडारा प्रसाद ग्रहण किया. संतमत सत्संग कमेटी के अध्यक्ष बिंदेश्वरी भगत के नेतृत्व में मुकेश कुमार, अरविंद भगत, रमेश भगत, रमेश साह, राजो साह, उपेंद्र सिंह, रामस्वरूप सिंह, सुरेश यादव, वीरेंद्र साह, सुरेश भगत, सुधीर साह सहित स्थानीय सत्संग प्रेमियों ने आयोजन को सफल संचालन में अपना योगदान दिया. कर्म का फल भगवान को भी भोगना पड़ा तो फिर इंसान क्या चीज है… स्वामी गुरूनंदन जी महाराज ने कहा कि जो जीव भक्ति रूपी रस्सी से अपने मन को भगवान के चरणों में बांध देता हैं, ईश्वर अपने लोक को छोड़कर उस भक्त के हृदय में प्रगट हो जाते हैं, ऐसी कोई जगह नहीं ऐसा कोई हृदय नहीं, जहां ईश्वर का वास नहीं हो. लेकिन उस घट की बलिहारी है, जिस घट में ईश्वर प्रगट होते हैं. कहा कि कर्म का फल भगवान को भी भोगना पड़ा है तो फिर इंसान क्या चीज है. शरीर किसी का भी हो जिसका जन्म होता है, वह छुटता जरूर है. भगवान का भी शरीर छूट गया और वे बैकुंठ चले गए. जिस समय भगवान अपने लोक गये उसी समय धरती पर कलयुग आ गया. चारों तरफ अधर्म का बोलबाला हो गया. गुरूदेव सुकदेव जी महाराज ने परीक्षित जी को कलयुग का वर्णन सुनाया. पूछा कि अब क्या सुनना चाहते हो, तब परीक्षित जी ने कहा कि गुरूदेव आपकी कृपा से तक्षण की कौन कहे अब उन्हे मृत्यु का भी भय नहीं है. आपने जो सात दिन की कथा सुनाई है, उस कथा से उन्होंने जो सुना जो समझा और उसका अभ्यास किया उसके प्रताप से मैं ब्रह्म में प्रविष्ट कर गया हूं. उन्हें अब किसी का भी भय नहीं है, आपकी कृपा से मेरा अज्ञान समाप्त हो गया, अब वे ज्ञान विज्ञान में अवस्थित हो गये. फिर सुकदेव जी अपना कमंडल लिए और कहा कि तुझे मृत्यु से मुक्ति देनी थी सो मिल गई अब मै चला.

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