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रमजान : तीसरे जुमे को मस्जिदों में उमड़ी रोजेदारों की भीड़

कम उम्र के बच्चों ने भी मस्जिदों में खुदा की इबादत में अपना सिर झुकाया

– 12 माह में रमजान शरीफ होता है सबसे खास महीना सुपौल. पाक माह के तीसरे जुमे पर मस्जिदों में रोजेदारों की भीड़ उमड़ पड़ी. नमाज के दौरान मस्जिदें खचाखच भरी रही और अल्लाह की रजा में रमजान का तीसरा जुमे बीता. पूरा दिन इबादत ए इलाही में गुजरा. कम उम्र के बच्चों ने भी मस्जिदों में खुदा की इबादत में अपना सिर झुकाया. जुमे की अजान शुरू होते ही मस्जिदें नमाजियों से भरने लगी. इसके बाद नमाजियों ने सुन्नतें अदा की. इमाम ने तकरीर पेश की. इसमें रोजे के फजाइल बयां किए. जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती अकबर काशमी ने कहा कि साल के 12 माह में रमजान शरीफ सबसे खास महीना होता है. पूरे महीने लोग रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं और अन्य पुनीत कार्य करते हैं. इस माह में नेकी करने वालों को सवाब बहुत अधिक मिलता है. रोजेदार अपनी दिनचर्या में अधिक से अधिक अल्लाह का जिक्र करें और जकात समेत अन्य दान करें. लोगों को इस माह अपने अंदर का गुस्सा को निकाल देना चाहिए. यह माह एक तरह से ट्रेनिंग का माह होता है. रोजा रखकर दूसरे की भूख का अहसास होता है. रोजा सिर्फ इंसान ही की इबादत है. फरिश्ते और दीगर मखलूक इसमें शामिल नहीं और रोजा रखने की सबसे बड़ी हिकमत यह है कि इससे परेहजगारी मिलती है जैसा कि अल्लाह का फरमान है. रमजानुलकरीम के तीसरे जुमे की नमाज में सभी मस्जिदों में हजारों रोजेदारों ने रब की बारगाह में सजदा किया. जामा मस्जिद, बड़ी मस्जिद, गोदाम मस्जिद सहित सभी मस्जिदों में नमाज अदा की गई. हजारों हाथ दुआ के लिए उठे तथा इबादतों की कबूलियत, आपसी भाईचारा, मुल्क में अमनो-अमान की दुआ की गई. बाजार में रही चहल पहल तीसरे जुम्मा के दिन बाजारों में रमजान को लेकर चहल पहल रही. तीसरे जुमे की नमाज अदा करने के बाद रोजेदारों ने अपनी जरूरत के सामानों की जमकर खरीदारी की. जुमे की नमाज के दौरान रोजेदारों ने खुदा की रहमत पाने के लिए दोनों हाथ उठाकर दुआ करते हुए खुदा की इबादत में सिर झुकाया. रोजा से मेहरबानी का जज्बा पैदा होता है रोजा रखने में बहुत सी हिकमतें हैं. रोजा रखने से भूख और प्यास की तकलीफ का पता चलता है. इससे भोजन और पानी की कद्र मालूम होती है और इंसान अल्लाह का शुक्र अदा करता है. जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती अकबर काशमी ने कहा कि रोजा से भूखों और प्यासों पर मेहरबानी का जज्बा पैदा होता है. मालदार अपनी भूख याद करके गरीब मोहताज की भूख का पता लगाता है. रोजा से भूख के बर्दाश्त करने की आदत पड़ती है. डॉक्टर व हकीम बताते है कि फाका बहुत सी बीमारियों का इलाज है, इससे कुव्वते हाजमा की इस्लाह होती है. रोजा ब्लड प्रेशर, कैंसर, फालिज, मोटापा की बीमारियों और भी बहुत सारी बीमारियों में फायदा बख्श है. 30 दिन बाद मनायी जाती ””ईद-उल-फितर”” अगर हम रमजान के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो रमजान अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है ””जलाने के”” यानि इस महीने में लोगों के तमाम गुनाह जल जाते है. इसलिए रमजान के पूरे महीने तमाम मुस्लिम लोग रोज़ा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं. रमजान के महीने के आखिर में ””ईद-उल-फितर”” मनाई जाती है, जो पूरे 30 दिन रोजे रखने के बाद आती है. इसलिए यह मुसलमानों का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है. बता दें कि ईद के दिन लोग नमाज पढ़कर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और आपस में प्यार बांटते हैं.

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