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पद्मभूषण : शारदा सिन्हा के पैतृक गांव हुलास में फैली खुशी की लहर, कहा- हमारी बेटी ने बढ़ाया बिहार का मान

– बचपन से ही संगीत कला में निपुण थी शारदा– पंडित रघु झा से मिली थी प्रारंभिक संगीत शिक्षा– मिठाई बांट कर किया खुशी का इजहार आशुतोष झा राघोपुर (सुपौल) : मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण दिये जाने की सूचना मिलते ही उनके पैतृक गांव हुलास में खुशी का माहौल […]

– बचपन से ही संगीत कला में निपुण थी शारदा
– पंडित रघु झा से मिली थी प्रारंभिक संगीत शिक्षा
– मिठाई बांट कर किया खुशी का इजहार

आशुतोष झा

राघोपुर (सुपौल) : मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण दिये जाने की सूचना मिलते ही उनके पैतृक गांव हुलास में खुशी का माहौल व्याप्त हो गया. लोगों ने मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया. साथ ही श्रीमती सिन्हा के दीर्घायु होने के साथ-साथ ऊंचे मुकाम हासिल करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना की. मालूम हो कि श्रीमती सिन्हा का जन्म 01 नवंबर 1952 को राघोपुर प्रखंड के हुलास गांव में हुआ था. स्व. सुकदेव ठाकुर की इस प्रतिभावान पुत्री में बचपन से ही संगीत कला की प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई थी.

श्रीमती सिन्हा कुछ दिनों तक सुपौल स्थित विलियम्स स्कूल में अध्ययन किया. जहां उनके पिता श्री ठाकुर शिक्षा विभाग से अधिकारी के रूप में सेवानिवृत होने के उपरांत कुछ दिनों तक प्राचार्य के रूप में कार्यरत थे. यहां संगीत शिक्षक सह प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित रघु झा से भी श्रीमती सिन्हा को गायन के गुर सीखने का अवसर मिला. उम्र के साथ निखरती संगीत कला ने श्रीमती सिन्हा को राज्य के साथ ही देश एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी ख्याति मिली. श्रीमती सिन्हा की सांस्कृतिक जगत में बढ़ रही लोकप्रियता के कारण भारत सरकार के शीर्ष सम्मानों में एक सम्मान से सम्मानित किया गया.

लोगों ने बताया कि श्रीमती सिन्हा की मधुर संगीत को बिहार ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों एवं देश विदेश में भी खासा पसंद किया जाता रहा है. उन्होंने अपने गायन से बिहार के लोकगीतों को ना सिर्फ नया मुकाम दिया है बल्कि इसे संरक्षित भी किया है. मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन जैसी चर्चित हिंदी फिल्मों में वे अपनी आवाज दे चुकी हैं.

परिवार का मिलता रहा सहयोग
शारदा सिंहा के भाई सह जानेमाने होमियो चिकित्सक डॉ पद्मनाभ शर्मा ने बताया कि गायन के इस यात्रा में पिता स्व शुकदेव ठाकुर व माता स्व सावित्री देवी के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिला. बताया कि शादी के बाद पति डॉ ब्रज किशोर सिन्हा का भी उन्हें कदम दर कदम साथ मिलता रहा. बताया कि शारदा सिन्हा को गायन के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 में पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया. इसके साथ ही इन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड समेत दर्जनों अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

1988 में शारदा सिन्हा ने किया था विदेश में पहला शो
डॉ शर्मा ने बताया कि शारदा सिन्हा ने वर्ष 1988 में विदेश में पहला शो किया था. जहां अपने गायन से देश की सीमाओं से पार जाकर मॉरीशस में भी खूब लोकप्रियता पायी. इनके गायन को पूरे मॉरीशस के लोगों ने सराहना किया. बताया कि पिता के रिटायर मेंट के बाद शारदा सिन्हा ने बचपन में राधानगर मिडिल स्कूल में लगभग साल भर पढ़ाई की. उन्हें बचपन से ही संगीत में बेहद रूचि थी. जिसे देख पिता ने उस जमाने में संसाधन के अभाव के बावजूद पंडित रामचंद्र झा एवं पंडित रघु झा से कुछ समय तक संगीत की शिक्षा दिलवाया. उस समय दोनों संगीत शिक्षकों ने शारदा सिन्हा के भविष्य के बारे में बताया था कि इस लड़की में साक्षात मां सरस्वती का वास है. इसे स्वर के रूप में भगवान का एक अनुपम भेंट प्राप्त होगा. इसे संगीत में अगर आगे की शिक्षा दीक्षा सही तरीके से दिलाई गई तो ये एक दिन देश विदेश में अपना परचम लहरायेगी. डॉ शर्मा ने यह भी बताया कि श्रीमती सिन्हा शुरू से ही मिलनसार स्वभाव की रही है.

पुरस्कार मिलने से हर्षित हैं हुलास वासी

– हुलास गांव के निवासी प्रो विलास प्रसाद यादव ने कहा कि शारदा सिन्हा बचपन से ही प्रतिभावान थी. उनके पिता स्व शुकदेव ठाकुर ने उनकी शिक्षा को लेकर संगीत के क्षेत्र में आगे बढाने के लिए विभिन्न तरह के योग्य शिक्षकों से संगीत की शिक्षा दिलायी. जिस कारण आज उन्हें इस क्षेत्र में मिलने वाले सबसे बड़े सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया. बताया कि शारदा सिन्हा को मिले इस सम्मान से स्थानीय समाज ही नहीं बल्कि जिले सहित पूरे देश के लिए गर्व की बात है.

– विद्यानंद झा ने कहा कि विद्यालयी शिक्षा के दौरान वे श्रीमती सिन्हा की सहपाठी रहे थे. बताते हैं कि वे शुरू से ही प्रतिभावान थी. उन्हें पढ़ाई से ज्यादा संगीत में रूचि थी, उनको मिले इस सम्मान से गांव व समाज के लोगों को उनपर गर्व है.

– श्रीकर झा ने बताया कि हुलास के दुर्गा मंदिर में जब श्रीमती सिन्हा ने बचपन में अपना गायन पेश किया था. उस समय किसी को ये पता नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब समाज ही नहीं पूरे देश के लिए शान बन जाएगी. बताते हैं कि समाज के लोग उस समय कहते थे कि शुकदेव बाबू शिक्षित होते हुए भी अपने बच्ची की गायकी के क्षेत्र में क्यों भेज रहे हैं. लोग उस समय इसका विरोध भी करते थे. लेकिन आज उनको मिले इस सम्मान से पूरा समाज हर्षित है.

– कैलास प्रसाद यादव ने बताया कि शारदा सिन्हा को पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजे जाने से लोगों में काफी खुशी है. कहा कि गर्व हैं कि हमारे समाज की बहन आज देश का सम्मान बढाया है. कहा कि यह पल हुलास के लोगों के अद्वितीय क्षण है. जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कहा कि जन प्रतिनिधि होने के नाते वे समाज की बेटियों से अपील किया कि श्रीमती सिन्हा को अपना रोल मॉडल मानते हुए गायकी के क्षेत्र में आगे बढ़कर अपने क्षेत्र का नाम रौशन करे.

– शारदा सिन्हा के शिक्षक कृत्यानंद झा ने बताया कि 1966-67 में उन्होंने लगभग दो साल तक विज्ञान विषय की शिक्षा दिया था. कहा कि उस समय भी शारदा सिन्हा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी. बताया कि भारत सरकार द्वारा दिया गया पद्मभूषण पुरस्कार ने इस क्षेत्र के लोगों का मान बढाया है.

– शारदा सिन्हा को अपना रॉल मॉडल मानते हुए हुलास की बेटी नंदिनी झा ने गायकी के क्षेत्र में प्रवेश कर अपना एवं अपने क्षेत्र का नाम रौशन की है. उन्होंने कहा कि वे उन्हें ही अपना गुरु मानकर संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रही है. उनको मिले इस सम्मान से उन्हें बहुत कुछ कर दिखाने का हौसला मिला है. छठ के पारंपरिक गीत हों या विवाह के मौके पर अक्सर सुनाई देने वाले मधुर मैथिली गीत. जिसे सुनते ही जुबां पर सिर्फ एक ही नाम आता है शारदा सिन्हा.

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