सीवान. मौसम की बेरुखी के चलते रबी फसल की बुआई की रफ्तार धीमी है.अक्तूबर में हुई असमय बारिश ने किसानों की कमर को तोड़ दिया है.जलजमाव के चलते धान की तैयार फसल बर्बाद हो गयी.वही रबी की बुआई भी प्रभावित हुई है. आम तौर पर गेहूं , तिलहन और दलहन फसलों की खेती नबम्बर माह में हो जाती है.इस बार हालात अच्छी नही है.जिला कृषि विभाग के मुताबिक इस वर्ष 1.33 लाख हेक्टेयर में रबी फसल के आच्छादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.जबकि अभी तक मात्र 25 हजार 838 हेक्टेयर में ही रबी की बोआई हुई है.यह लक्ष्य के विरुद्ध मात्र 19.39 फीसदी है.कृषि विभाग के अनुसार एक लाख ग्यारह हजार हेक्टेयर भूमि में गेहूं की खेती की जाएगी.12 दिसम्बर तक मात्र 21 हजार 145 हेक्टेयर में ही गेहूं की बुआई हुई है.यही हाल तिलहन व दलहन फसल की भी है. इसके अलावा जौ ,मक्का,गन्ना तथा अन्य सीजनली फसल लगाने की रफ्तार भी काफी धीमी है.ऐसे में कृषि विभाग जहां लक्ष्य प्राप्ति नही होने की आशंका से चिंतित है,वही किसान पैदावार कम होने की आशंका से ग्रसित है.हालांकि इन फसलों की अच्छी उपज के लिए कृषि विभाग द्वारा उन्नत बीज के साथ-साथ किसानों को अन्य तरह की सुविधा उपलब्ध कराई गई है.बावजूद इसके रबी फसल की बुआई की रफ्तार ने कृषि विभाग व किसानों को चिंतित कर दिया है. 20 दिसंबर तक बोआई का बेहतर समय रबी फसलों की बुआई व तापमान और शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती हैं.रबी फसलें अक्सर नवम्बर के महीनों में बोई जाती है. 15 दिसंबर तक इसकी बोआई का आदर्श समय माना जाता है.जानकारों के अनुसार रबी फसल की सिंचाई के लिए भूमिगत जल संसाधनों पर आश्रित रहना पड़ता है. इसे देखते हुए किसानों को अपनी खेती की कार्य योजना सोच समझ के बनानी चाहिए. फसल के अच्छे उत्पादन के लिए गेहूं की बुआई उस जगह करें जहां सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों.अन्य स्थानों पर मसूर, सरसों, चना, मटर आदि फसल लगाएं. बीज उपचार और प्रभेद के अनुसार समय पर फसलों की बुवाई करने से अच्छी उपज होगी. चना और मसूर की फसल की बुवाई में अब विलंब नहीं करें. गेहूं की बुवाई भी 15 दिसंबर के अंदर कर ले. उन्नत व प्रतिरोधी किस्मों के बीजों की बोआई करें किसान जिला कृषि पदाधिकारी डॉ. आलोक कुमार ने बताया कि रबी फसलों में भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि किसान उन्नत एवं प्रतिरोधी किस्मों के स्वच्छ स्वस्थ एवं पुष्ट बीजों की बोआई करें. फसल को प्रारंभ से ही रोग एवं कीटमुक्त रखने के लिए बीज का अनुशंसित बीज शोधक से उपचार अति आवश्यक है बीजों के अंदर और बाहरी सतह पर बीज जनित रोगाणु एवं कीट मिट्टी में मृदा जनित रोगाणु एवं कीट तथा हवा में वायु जनित रोगाणु एवं कीट सुषुप्त अवस्था में मौजूद रहते हैं. अनुकूल वातावरण मिलने पर ये अंकुरित पौधों में रोग के लक्षण उत्पन्न करते हैं. फफूंद जनित रोग होने पर फफूंदनाशी दवा से बीजोपचार करें.
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