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37 वर्ष बाद भी 400 विस्थापितों का नहीं हुआ पुनर्वास

जिले के बैरगनिया प्रखंड का है यह हाल तैसे-तैसे जीवन बसर कर रहे हैं विस्थापित परिवार बैरगनिया : बागमती नदी के दोनों किनारे तटबंध निर्माण के 37 वर्ष बाद भी तटबंध के बीच बसे प्रखंड के मसहां आलम गांव के करीब 400 परिवारों को अब तक पुनर्वास नहीं कराया जा सका है. पुनर्वास नहीं होने […]

जिले के बैरगनिया प्रखंड का है यह हाल

तैसे-तैसे जीवन बसर कर रहे हैं विस्थापित परिवार
बैरगनिया : बागमती नदी के दोनों किनारे तटबंध निर्माण के 37 वर्ष बाद भी तटबंध के बीच बसे प्रखंड के मसहां आलम गांव के करीब 400 परिवारों को अब तक पुनर्वास नहीं कराया जा सका है. पुनर्वास नहीं होने के कारण मसहां आलम के लोग प्रति वर्ष बागमती के कोप भाजन का शिकार हो रहे हैं.
1978 में बागमती परियोजना के अंतर्गत तटबंध का निर्माण हुआ था. तटबंध निर्माण से पूर्व सरकार द्वारा निर्णय किया गया था कि तटबंध के बीच रहने वाले लोगों का पुनर्वास करा कर बांध के उस पार बसाया जायेगा. इसके लिए प्रखंड के आदमवान, बेंगाही, मसहा नरोत्तम, मसहा आलम, जोरियाही, परसौनी व चकवा आदि गांव को बांध के उस पार पुनर्वासित करने के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया.
100 परिवार हुए पुनर्वासित
इसी दौरान मसहा आलम गांव का पुनर्वास मुसाचक एवं नंदवारा गांव में कराना था. इसके तहत मसहा आलम के मात्र 100 परिवार को ही अधिगृहित जमीन पर पुनर्वास कराया गया. शेष 400 परिवार अब भी बागमती नदी के किनारे, परित्यक्त रेलवे लाइन व बागमती बांध पर जैसे-तैसे जिंदगी गुजार रहे हैं.
इस संबंध में ग्रामीणों द्वारा डीएम से सीएम तक गुहार लगायी जा चुकी है. परंतु अब तक पुनर्वास नहीं हो सका है. बाध व रेलवे पर बसे लोगों का घर बागमती नदी के कटाव से ध्वस्त हो गया. तब से ये लोग फिर से पुराने जमीन पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. आलम यह है कि इन परिवारों के साथ काेई प्राकृतिक आपदा की घटना भी हो जाती है तो सरकारी लाभ नहीं मिल पाता है. चाहे आंधी-तूफान, ओला वृष्टि एवं अगलगी जैसी घटना क्यों न घटित हो. इन्हें न तो मुआवजा मिल पाता है और न ही किसी प्रकार की सहायता ही मिल पाता है.
सीओ कर लेते हैं हाथ खड़ा
प्राकृतिक आपदा के बाद सीओ भी अपनी हाथ खड़ा कर लेते हैं. कहा जाता है कि केंद्र की जमीन और रेलवे पर बसे लोगों को राज्य सरकार द्वारा किसी प्रकार का मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है.
ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे पर बसने के लिए इन लोगों को मजबूर किसने किया. तटबंध निर्माण के समय सरकार ने पॉलिसी बनायी थी कि बागमती परियोजना को बहुउद्देशीय बनाया जायेगा.
इससे पनबिजली, सिंचाई एवं सड़क की सुविधा मिलेगी. लेकिन यह सिर्फ बाढ़ नियंत्रण तक ही सिमित रह गया और उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सैकड़ों परिवार बेघर हो गये.

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