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भगवान भरोसे होता है प्रसूताओं का प्रसव

अनदेखी. प्रसूता को हर शिफ्ट में दो एएनएम व चार ममता के भरोसे छोड़ देते हैं प्रति दिन 20 से अधिक प्रसव के लिए नहीं हैं एक भी चिकित्सक की व्यवस्था शेखपुरा : संस्थागत प्रसव जैसी स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधा की बदहाल व्यवस्था आज जानलेबा साबित हो रहा है. यहां आने वाली प्रसूता का दर्द […]

अनदेखी. प्रसूता को हर शिफ्ट में दो एएनएम व चार ममता के भरोसे छोड़ देते हैं

प्रति दिन 20 से अधिक प्रसव के लिए नहीं हैं एक भी चिकित्सक की व्यवस्था
शेखपुरा : संस्थागत प्रसव जैसी स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधा की बदहाल व्यवस्था आज जानलेबा साबित हो रहा है. यहां आने वाली प्रसूता का दर्द धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर नहीं बांटते .ऐसे हालातों में प्रसूता भगवान का नाम लेकर मां बनने की तमन्ना पूरी करने को विवस है. जिले में संस्थागत प्रसव की व्यवथा पर अगर नजर डालें तब सदर अस्पताल मुख्य केंद्र बिंदु बना है .ऐसे में जिले के विभिन्न गांव के अलावे पड़ोसी जिले के सीमावर्ती गांव की प्रसूता भी यहां संस्थागत प्रसव का लाभ लेने आते है. मगर यहां सुविधा और चिकित्सा के नाम पर भगवान ही एक मात्र सहारा होता है.
प्रसव पीड़ा के दौरान चिकित्सा लाभ के लिए सदर अस्पताल में ज्यादातर गरीब तबके की महिलाएं आती है. इन गर्भवती महिलाओं में ज्यादातर एनेमिक और जटिल स्थिति में होते हैं. संस्थागत प्रसव में भरती होने के प्रारंभिक दौर से लेकर प्रसव वाद तक भी कोइ डॉक्टर प्रसूता को देखना मुनासिब नहीं समझते. संस्थागत प्रसव के लिए के लिए इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर को ही प्रसव कक्ष का भी जिम्मेवारी दी जाती है. मगर आम तौर पर जव तक कोई अनहोनी की घटना नहीं घट जाती तबतक डॉक्टर प्रसूताओं को झांकना मुनासिब नहीं समझते हैं.
क्या है आंकड़ा
सदर अस्पताल में संस्थागत प्रसव के लिए सरकारी आंकड़ों पर अगर नजर डालें, तब यहां जनवरी माह से जुलाई तक के आंकड़ों पर अगर नजर डाले तब कुल दो हजार चार सौ अनठानवे प्रसव हुए. प्रसव में 489 कमजोर बच्चे ने जन्म लिया और 12 नवजात ने दम तोड़ दिया .संस्थागत प्रसव के दौरान 51 मृत नवजात का जन्म हुआ ,166जटिल प्रसव हुए ,01 प्रसूता की मौत हुई, जबकि 166 जटिल स्थिति में गर्भवती महिला को रेफर कर दिया गया.
सदर अस्पताल में जनवरी से अबतक लगभग 750 असामान्य प्रसव बिना डॉक्टर का किया जाना गंभीर सवाल है. अकेले सदर अस्पताल का यह आकड़ा तो परिणाम को सामने ला रहा है लेकिन सबसे बड़ी वात यह है कि एएनएम और ममता के कंधों पर संस्थागत प्रसव का एक बोझ तो है ही .साथ ही गर्भवती महिलाओं का व्यवस्था के प्रति बढ़ते अविश्वास की पुरानी परंपरा से कब निजाद मिल सकेगा, यह आज भी एक बड़ा सवाल है.
सिर्फ डॉक्टर की फीस बचाने को आते हैं गरीब
सदर अस्पताल में संस्थागत प्रसव की एक पहलू यह भी है की यहां मरीज के परिजन प्रसव के दौरान ग्लप्स और सिरीच भी बाहरी दुकानों से ही खरीद कर लाते हैं. ऐसे में परिजन साफ शब्दों में कहते हैं की सदर अस्पताल में की फीस तो बच जाती है, लेकिन प्रसूता और गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर देखने भी नहीं आते. यहां प्रसव के नाम पर मात्र जोखिम है बाकी कुछ नहीं .
महिला डॉक्टर की कमी का रोना कब तक
सदर अस्पताल में संस्थागत प्रसव के लिए जो व्यवस्था है उसमे अधिकारी महिला चिकित्सक की कमी का रोना रो रहे .ये वर्तमान की वात हो सकती है .लेकिन मरीज कहते है की जब महिला डॉक्टरों की यहाँ डयूटी होती भी तब रात्रि ड्यूटी में दायित्वों का निर्वाहन नहीं करती थी .ऐसे में सदर अस्पताल में महिला डॉक्टर की कमी बताकर गर्भवती को भगवान भरोसे नहीं छोड़ा जा
सकता .दरअसल हाल में ही जिले में चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति तोड़ दी गयी. इसके बाद सदर अस्पताल में एक मात्र महिला चिकित्सक ही रह गयी .प्रसव के लिए सुबह सात बजे सदर अस्पताल पहुंची .प्रसव पीड़ा के कारण काफी परेशान थी .प्रसव कक्ष में डॉक्टर से दिखाना चाह रही थी.
लेकिन वहां कोइ डॉक्टर नहीं मिले .सिस्टर ने कुछ दवाइयां लिखी जिसे बाहर दूकान से लाया गया .डॉक्टर नहीं रहने से काफी घबरायी थी.आखिर कार ममता और एएनएम ने प्रसव का बीड़ा उठाया .लेकिन कोइ डॉक्टर झांकने तक नहीं आ सके .
अस्पताल का हाल
रविवार की शनिवार को 11 बजे दिन में गर्भवती भतीजी गुडिया कुमारी को सदर अस्पताल में भरती कराया गया .मरीज के शरीर में ब्लड की कमी थी. प्रसव के दौरान काफी ब्लीडिंग के कारण स्थिति गंभीर हो गयी .डॉक्टर के अभाव में स्थिति भयावह हो गयी .लेकिन जोखिम के साथ सिस्टर ने ही प्रसव कराया. प्रसव के दौरान प्रसूता बेहोश भी हो गयी .बेहोशी के बाद अफरा-तफरी की स्थिति हो गयी. इसके वाद भी डॉक्टर नहीं पहुंचे, आखिर कार सिस्टर ने ही स्थिति को संभाला
सुनीता देवी,परिजन
शनिवार की रात ग्यारह बजे सदर अस्पताल पहुंची स्थिति काफी गंभीर थी.गर्भाशय से लगातार पानी का निकलता जा रहा, लेकिन रविवार की दोपहर तक कोइ डॉक्टर मरीज की जांच करने नहीं आये . सदर अस्पताल की स्थिति ने जान संकट में डाल दिया है. इलाज के नाम पर सिस्टर ने दो इंजेक्शन दिया. बाकी सब भगवान भरोसे है.
जुली देवी, ग्राम चितौरा
रविवार की सुबह छह बजे सदर अस्पताल पहुंची .पैर में काफी सूजन और कमजोरी के कारण खून की कमी से स्थिति गंभीर था. कोई डॉक्टर नहीं देखने आये .प्रसव में काफी घबराहट हो रही है. उचित उपचार नहीं मिलने के कारण दोपहर निजी अस्पताल जाने पर परिवार के लोग विचार कर रहे हैं.
आरती कुमारी, चितौरा
संस्थागत प्रसव में महिला चिकित्सक की कमी के कारण कठिनाईयों का सामना करना पर रहा है.जिले के विभिन्न अस्पतालों से महिला चिकित्सक की प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है.इसके बावजूद तत्काल सुधार के लिए भी जल्द ही ठोस कदम उठाये जायेंगे .
डॉ मृगेंद्र प्रसाद सिंह, सिविल सर्जन शेखपुरा

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