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द्वितीय वाहिनी का इतिहास शौर्य व उपलब्धियों से रहा है परिपूर्ण : लिपि सिंह

Sasaram news. यह बताते हुए मुझे अत्यंत गर्व की अनुभूति हो रही है कि बिहार की सबसे पुरानी द्वितीय वाहिनी का इतिहास शौर्य एवं उपलब्धियों से परिपूर्ण रहा है.

डेहरी नगर. यह बताते हुए मुझे अत्यंत गर्व की अनुभूति हो रही है कि बिहार की सबसे पुरानी द्वितीय वाहिनी का इतिहास शौर्य एवं उपलब्धियों से परिपूर्ण रहा है. वाहिनी की स्थापना एक मार्च 1945 को बिहार सैन्य पुलिस द्वितीय वाहिनी के नाम से डेहरी के प्रांगण में हुई थी. इस वाहिनी के प्रथम समादेष्टा जेइजी चर्चर हुए थे और प्रथम भारतीय समादेष्टा विभूतिभूषण बनर्जी थे. ये बातें शनिवार को डेहरी स्थित बी-सैप दो के 83वें स्थापना दिवस पर समादेष्टा लिपि सिंह ने कहीं. उन्होंने कहा कि वाहिनी में उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार, इस वाहिनी का गठन भागलपुर मिलिट्री पुलिस के नाम से 18 मई 1898 में हुआ था. एक मार्च 1945 को वाहिनी स्थायी रूप से डेहरी ऑन सोन में आवासित की गयी. कालांतर में बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस अधिनियम 2021 के अनुसूची-01 में वर्णित निर्देश के अनुसार बिहार सैन्य पुलिस-दो, डेहरी को 24 मार्च 2021 से बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस-दो डेहरी (बी-सैप दो) कहा जाने लगा. इस वाहिनी का अतीत गौरवशाली उपलब्धियों से भरा हुआ है.

स्थापना दिवस के कार्यक्रम के प्रारंभ में अमर शहीद वेदी पर फूल चढा कर शहीदों को नमन किया गया. इसके बाद नवनिर्मित ग्राउंड का पूजा पाठ व नारियल फोड़ कर उद्घाटन किया गया. फिर परेड का निरीक्षण कर समादेष्टा ने सलामी ली. कबूतर व बैलून को उड़ाकर शांति का संदेश दिया और पौधारोपण किया. उन्होंने स्थापना दिवस पर आशा व्यक्त की कि वाहिनी के जवान अपने गौरवशाली अतीत के अनुरूप इस वाहिनी की प्रतिष्ठा और कार्य कुशलता को बनाये रखेंगे. अपने राज्य और राष्ट्र की सेवा में निरंतर तत्परतापूर्वक मुस्तैद रहेंगे. उन्होंने सभी को स्थापना दिवस की बधाई दी. मौके पर डीएपी नरेंद्र शर्मा, कल्याण आंनद, सेवानिवृत्त डीएसपी अरुण सिंह, जेपी चौधरी, रीडर अनिल सिंह, एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज यादव, रवि रंजन कुमार, महेंद्र कुमार सिंह, शांतिपूर्ण तिवारी, असलम अंसारी आदि उपस्थित थे. मंच संचालन हवलदार मनोज कुमार तिवारी ने किया.

राज्य के बाहर भी वाहिनी ने आमजनाें को दी है निर्भीकता

अपने इतिहास को समेटे हुए यह वाहिनी अपने भविष्य एवं सुरक्षा सेवा की ओर उन्मुख है. वाहिनी के जांबाजों ने अपने अदम्य साहस एवं वीरतापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन राज्य के अंदर ही नहीं, बल्कि राज्य से बाहर जाकर किया है. आम जनता को निर्भीकता प्रदान की है. यह वाहिनी आपातकालीन स्थितियों में कोलकाता (बंगाल), जम्मू कश्मीर, दिल्ली, त्रिपुरा में पाकिस्तान बॉर्डर, नामकुम रांची में पाकिस्तानी युद्ध बंदी ड्यूटी का सफलतापूर्वक निष्पादन किया है. वाहिनी ने पांच मार्च 1962 से चार अक्तूबर 1966 तक प्रतिनियुक्त रहकर सर्वोत्तम प्रतिष्ठा प्राप्त की. इसके लिए त्रिपुरा के मुख्य सचिव और विधानसभा के अध्यक्ष महोदय ने इस वाहिनी की सेवा की उत्कृष्ट प्रशंसा की है. वहीं, रोहतास व गया जिलों में चले ऑपरेशन ””””””””कालदूत”””””””” में जवानों की बहादुरी व प्रशंसनीय कार्यों के लिए मुख्यमंत्री से पुरस्कार भी मिला है. गत 2019-22 में वाहिनी परिसर में 20वीं अखिल भारतीय पुलिस शूटिंग प्रतियोगिता 2019 और सच्चिदानंद अखौरी बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस शूटिंग प्रतियोगिता 2022 का सफल आयोजन कराया गया था. इसमें इस वाहिनी को विजेता होने का गौरव प्राप्त हुआ था.

बुनियादी सहित नारकोटिक्स का दिया जाता है प्रशिक्षण

इस वाहिनी में कई वर्षों से बुनियादी, पूरक, व्यkवहारिक, पीटीसी, नारकोटिक्स कस्टम डिपार्टमेंट आदि का सफल प्रशिक्षण दिया जाता रहा है. यह वाहिनी प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी अपना नाम और अलग पहचान रखती है. इस वाहिनी में देश स्तर के फायरिंग रेंज है.

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