रजनीकांत पांडेय, करगहर. फसल अवशेष से नवीकरणीय उर्जा उत्पादन में करगहर प्रखंड ने भी तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है. एक युवा इंजीनियर की सोच से न केवल पराली प्रबंधन से हरित ईंधन तैयार हो रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के साथ तीन सौ लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है. प्रखंड के बभनी गांव निवासी युवा इंजीनियर दिनेश कुमार अपने गांव के अलावा करूप और बराव गांव में बायोमास ब्रिकेट प्लांट लगा लगभग पचास हजार टन ब्रिकेट और पिलेट का उत्पादन कर हरित ईंधन को बढ़ावा दे रहे हैं. इनके उत्पादन की मांग सुधा डेयरी, मदर डेयरी से लेकर गोदरेज एग्रोवेट और प्लाइवुड उद्योग के लिए राज्य से बाहर तक है. दिनेश कुमार बताते हैं कि ब्रिकेट एक नवीकरणीय उर्जा स्रोत है, जो फसल अवशेष, वन अवशेष जलीय पदार्थ के अवशेष से प्राप्त होता है. यह ताप ईंधन का धुआं रहित विकल्प भी है. इससे वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड या अन्य हानिकारक गैस नहीं फैलती है. इससे हमारा पर्यावरण भी प्रदूषण से मुक्त रहता है. इसका उपयोग ताप ईंधन के रूप में बायलर चलाने के लिए ज्यादा हो रहा है.
चार हजार किसानों से खरीदे जा रहे हैं फसल अवशेष
प्रखंड में बभनी, करूप और बराव के 25-30 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले चार हजार किसानों से फसल अवशेष की खरीद कर वार्षिक रूप से लगभग 10 हजार टन बायोमास ब्रिकेट का उत्पादन किया जा रहा है. इस वर्ष उत्पादन बढ़ाकर 15 हजार टन कर दिया गया है. उत्पादित बायोमास ब्रिकेट को औद्योगिक उपयोग के लिए कोयले के हरित विकल्प के रूप में सुधा डेयरी, मदर डेयरी और गोदरेज एग्रोवेट और प्लाइवुड उद्योगों को बेचा जा रहा है. लगभग इससे तीन सौ लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फसल अवशेष पराली बेचने वाले किसानों को ढाई रुपये प्रतिकिलो और कुट्टी, भूसी, खुदी पहुंचाने पर साढ़े तीन रुपये प्रति किलो की दर से राशि दी जा रही है.
बायोमास ब्रिकेट के लाभ
1- पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण धुआं, कालिख, कार्बन व उत्सर्जन से मुक्ति2– ईंधन और प्राकृतिक गैस जैसे अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में बायोमास ब्रिकेट सस्ते होते हैं.
3- बनाने, उपयोग करने और संग्रह करने में आसान है. छोटे आकार के कारण इनका उपयोग और संग्रहण आसानी से हो जाता है.ऐसे बनता है बायोमास ब्रिकेट
1- बायोमास अपशिष्ट जैसे पराली, भूखे और विभिन्न जैव अपशिष्ट पदार्थों को कृषकों की खेती से एकत्र किया जाता है.2- कृषि अवशेष को एकत्रित सामग्री को ग्राइंडर की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है. यह प्रक्रिया अधिक ठोस बनाने में सहायता करती है.
3- ब्रिकेट बनाने के लिए उच्च दबाव और तापमान पर सामग्री को कंप्रेस किया जाता है. आवश्यकतानुसार मिट्टी स्टार्च या गुड़ का प्रयोग किया जाता है.उपयोग
1- बायोमास ब्रिकेट का औद्योगिक बायलर में उपयोग करने से ऊर्जा लागत में कमी लायी जाती है2- अपर्याप्त बिजली आपूर्ति की समस्या को हल करने के लिए ताप बिजली संयंत्रों में बायोमास ब्रिकेट का उपयोग तेजी से किया जा रहा है.बदल रही गांवों की तस्वीर
प्रखंड के बभनी गांव निवासी किसान अकलू सिंह के पुत्र दिनेश कुमार ने मां दुर्गा बायो फ्यूल्स के नाम से वर्ष 2021 में ब्रिकेट संयंत्र स्थापित किया था. इसके बाद 2023 और 24 में करूप और बराव में संयंत्र स्थापित कर गांवों में पर्यावरण संरक्षण के लिए न केवल किसानों को प्रेरित कर रहे हैं, बल्कि उन्हें खेती के साथ अतिरिक्त आमदनी भी करा रहे हैं.क्या कहते हैं अधिकारी
रोहतास जिले के युवाओं द्वारा पराली प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और लोगों को रोजगार उपलब्ध करने में किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं. इसी कड़ी में युवा इंजीनियर दिनेश कुमार की मां दुर्गा बायो फ्यूल्स संयंत्र ब्रिकेट निर्माण में अग्रणी भूमिका है. इस संयंत्र को उद्योग विभाग आवश्यकतानुसार हर संभव सहायता उपलब्ध करता रहेगा.
आशीष रंजन, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है