दिनारा. नगर पंचायत क्षेत्र में बलदेव हाइस्कूल तलाब के पास बना संस्कृत विद्यालय सरकारी उपेक्षा की मार क्षेल रहा है. सन् 1960 में बना विद्यालय कभी संस्कृत शिक्षा का कभी केंद्र हुआ करता था. लेकिन, सरकार के उपेक्षा के कारण आज बदहाली का दंश झेल रहा है. विद्यालय के संस्थापक स्व बलदेव पांडेय देव भाषा संस्कृत व भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से बलदेव उच्च विद्यालय के साथ संस्कृत उच्च विद्यालय की स्थापना की थी. उस समय इस विद्यालय में शिक्षक भी रहते थे और पढ़ाई भी होता था, लेकिन आज इस विद्यालय के चारों तरफ झाड़ियों का अंबार लगा हुआ है. यहीं नहीं लोग यह भी कहते हैं कि सरकार के नितियों व उपेक्षा के कारण यह विद्यालय अब बंद होने की स्थिति में खड़ा है. विद्यालय के पूर्व प्रधानाध्यापक जितेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि पहले इस विद्यालय में नामांकन कराने वाले बच्चों की लाइन लगी रहती थी और भारी संख्या में छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करते थे. सरकार के गलत नीतियों के कारण छात्रों की दिन प्रतिदिन संख्या घटती चली गयी. वर्ष 2005-06 में इस विद्यालय में लगभग दो सौ से अधिक छात्र छात्राएं नियमित पढ़ाई करने आते थे. वहीं, वर्ष प्रतिवर्ष 70 से 80 छात्र-छात्राएं बोर्ड की परीक्षा में बैठते थे. बता दें कि इस विद्यालय में सात शिक्षक, एक लिपिक, एक आदेशपाल तथा दो राज्य संपोषित शिक्षक हुआ करते थे. लेकिन, छात्रों के अभाव में ये सभी शिक्षक विद्यालय प्रतिदिन आकर अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. फिर भी रख-रखाव के अभाव में विद्यालय खंडहर जैसा लगता है. विद्यालय कै चारों तरफ घास, सूखे वृक्ष और झाड़ियों का अंबार लगा रहता है. इसका देखभाल नहीं किया गया, तो बहुत जल्द हीं ये विद्यालय खंडहर में तब्दील हो जायेगा. क्या कहते हैं प्रधानाचार्य शशि भूषण प्रसाद ने बताया कि संस्कृत विद्यालय के प्रति सरकार के उदासीनता रवैये ने विद्यालय को इस स्थिति तक पहुंचा दिया है. शंसाधनो के अभाव व छात्रों की प्रोत्साहन राशि बंद होने के कारण यह विद्यालय धीरे-धीरे छात्रविहीन हो गया है. आर्थिक सहायता के अभाव में विद्यालय का भवन जर्जर हो चुका है. शिक्षकों द्वारा आपस में चंदा कर किसी तरह छत की मरम्मत करायी गयी है, ताकि आये दिन बरसात में परेशानी से बचा जा सके. क्या कहते हैं ग्रामीण प्रदीप पांडेय सरकार के शिक्षा नीतियों में आये बदलाव और संस्कृत के प्रति उदासीन रवैया एक समृद्ध विद्यालय को बादल स्थिति तक पहुंचा दिया है. संस्कृत शिक्षा से मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण और सरकारी नौकरियों में लाभ को समाप्त कर सरकार ने संस्कृत भाषा की नींव हीं खोद डाली अन्य विद्यालयों की तरह संस्कृत विद्यालय में पढ़ने वाले छत्र-छात्राओं की प्रोत्साहन राशि बंद कर दी गयी है. इससे और स्थिति बदहाल हो गयी है.
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