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कम मजदूरी मिलने से हो रहा मोह भंग

मनरेगा. 4.76 लाख जॉब कार्डधारी, पर महज 92 हजार ने मांगा रोजगार छपरा (सदर) : मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कार्यों में तेजी लाने तथा मजदूरों को न्यूनतम 100 दिन काम देने का प्रयास जिला प्रशासन कर रहा है. हालांकि सारण जिला मानव दिवस सृजन के मामले में पूरे बिहार में अव्वल […]

मनरेगा. 4.76 लाख जॉब कार्डधारी, पर महज 92 हजार ने मांगा रोजगार

छपरा (सदर) : मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कार्यों में तेजी लाने तथा मजदूरों को न्यूनतम 100 दिन काम देने का प्रयास जिला प्रशासन कर रहा है. हालांकि सारण जिला मानव दिवस सृजन के मामले में पूरे बिहार में अव्वल है. बावजूद जिले में पंजीकृत जॉब कार्डधारी परिवारों में से महज 20 फीसदी मजदूर ही काम मांगते हैं. इसके पीछे विभाग के पदाधिकारियों का तर्क होता है कि बाजार में अकुशल या अर्ध कुशल मजदूरों के लिए निर्धारित मजदूरी दर से काफी कम मजदूरी होने के कारण मजदूर मनरेगा के तहत काम करने में रुचि नहीं दिखाते हैं
. जिले में चार लाख 76 हजार 401 मजदूरों को जॉब कार्ड दिया है, जिनमें दो लाख 31 हजार 577 अनुसूचित जाति के, 1240 एसटी के तथा शेष अन्य जातियों के हैं. इनमें से महज 91777 ने काम मांगा. जबकि प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार अबतक 63 हजार 599 मजदूर परिवार को काम दिया जा चुका है. सूचना के अनुसार एक साल में 100 दिन काम करने वाले मजदूरों एवं विभिन्न योजनाओं पर 91 करोड़ 62 लाख खर्च हो चुके हैं.
अबतक मनरेगा की 2120 योजनाएं पूरी, 13900 पर चल रहा काम : मनरेगा के तहत जिले में 91 करोड़ 62 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, जिसमें अब तक 2120 योजनाएं पूरी हो गयी हैं. वहीं 13900 योजनाएं प्रगति पर हैं. अब तक 10 करोड़ 41 लाख रुपये खर्च हुए हैं, जबकि शेष राशि विभिन्न योजनाओं पर खर्च हो रही है. उपविकास आयुक्त सह अपर जिला कार्यक्रम समन्वयक सुनिल कुमार के अनुसार योजनाओं को गुणवत्तापूर्ण पूरा करने के लिए सभी आवश्यक निर्देश दिये गये हैं.
मजदूरी बाजार से कम होना नरेगा में मजदूरी के प्रति उदासीनता की मुख्य वजह : सरकार ने मनरेगा के मजदूरों की दैनिक मजदूरी महज 177 रुपये निर्धारित की है. जबकि बाजार में अकुशल मजदूरों की दैनिक मजदूरी 200 से 300 रुपये तक है. जबकि अर्ध कुशल की मजदूरी पांच सौ रुपये तक भी है. ऐसी स्थिति में मनरेगा के मजदूर कृषि के मुख्य सीजन में या अन्य जगह काम नहीं मिलने के बाद ही मनरेगा का काम करना पसंद करते हैं.
डीडीसी की मानें तो बरसात या ऑफ सीजन में जब मजदूरों को कहीं काम नहीं मिलता है, तभी वे मजदूरी की मांग करते हैं. निश्चित तौर पर कम मजदूरी इसकी मुख्य वजह है. वहीं प्रशासन चाह कर भी मानव सृजन दिवस नहीं बढ़ा पाता. हालांकि जनवरी माह तक प्रशासन ने 26 लाख 50 हजार मानव दिवस सृजन करने में सफलता पायी है, जिनमें महिला मजदूरों का मानव दिवस छह लाख पांच हजार है.

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