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राजमिस्त्री की बेटी बनीं बिहार के लिए ‘दीवार’, फुटबॉल टूर्नामेंट में बतौर गोलकीपर कर रहीं बेहतर प्रदर्शन

II प्रभात किरण हिमांशु II छपरा(नगर) : ‘‘मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है,’’ इन पंक्तियों को चरितार्थ किया है एक राजमिस्त्री की बेटी ने. आर्थिक तंगी और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी उसने फुटबाॅल जैसे कठिन खेल को न […]

II प्रभात किरण हिमांशु II
छपरा(नगर) : ‘‘मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है,’’ इन पंक्तियों को चरितार्थ किया है एक राजमिस्त्री की बेटी ने. आर्थिक तंगी और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी उसने फुटबाॅल जैसे कठिन खेल को न सिर्फ कैरियर चुना है, बल्कि उसे एक मुकाम तक भी पहुंचाया है. बेटी के हौसले से उत्साहित पिता कहते हैं, ‘‘हमार बेटी हमार शान बिया, केहू कुछहू कहे ऊ बड़का फुटबालर बन के रही.’’ बात हो रही है छपरा में साढ़ा मुहल्ला निवासी संध्या कुमारी की, जो इन दिनों कटक में 28 जनवरी से चल रहे राष्ट्रीय महिला फुटबाॅल टूर्नामेंट में बतौर गोलकीपर बिहार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
इस टूर्नामेंट में संध्या ने सभी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. दो दिन पूर्व चंडीगढ़ से हुए मुकाबले में बिहार की टीम ने सात गोलों से जीत हासिल की थी. इसमें संध्या का प्रदर्शन शानदार रहा था. मैच के बाद विपक्षी टीम ने भी संध्या के बेजोड़ रक्षण की तारीफ की है. फोन पर प्रभात खबर से बातचीत में संध्या ने बताया, मैं चार भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं.
जब मैंने स्नातक करने के लिए जेपी विवि में एडमिशन लिया तो पड़ोसियों ने पिताजी से मेरी शादी कर देने की सलाह दी. इसके लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन पिता इन बातों को नजरअंदाज कर सिर्फ यही कहते रहे कि ‘‘संध्या, जौन अच्छा लागे, उहे कर.’’ संध्या बताती हैं कि पिता का यही संकल्प उनके फुटबॉल खेलने के इरादों को मजबूत बनाता है.
बुधवार को बिहार की जीत पर परिजनों ने मनाया जश्न
छपरा : कटक में चल रहे राष्ट्रीय सीनियर महिला फुटबॉल टूर्नामेंट में अब तक हुए मुकाबलों में बिहार की टीम के साथ-साथ संध्या का प्रदर्शन भी काफी बढ़िया रहा है. बुधवार को पश्चिम बंगाल से हुए मुकाबले में बिहार की टीम को 3-2 से सफलता मिली. संध्या ने मैच के दौरान कई मौकों पर अपनी टीम के खिलाफ गोल होने से बचाया. टीम की जीत की जानकारी मिलते ही परिजनों व आसपास के क्षेत्रों में खुशी की लहर दौड़ गयी. घरवालों ने आपस में मिठाइयां बांटकर टीम की जीत का जश्न मनाया.
पिता की सोच ने बेटी को बनाया खिलाड़ी
संध्या अाज जिस मुकाम तक पहुंची हैं, वहां तक जाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. पिता ललन मांझी एक राजमिस्त्री हैं. दो वक्त की रोटी, अच्छे कपड़े और शिक्षा जैसी जरूरतों के बीच सफलता जैसे शब्द परिवार से कोसों दूर थे. लोगों के घरों की ईंट जोड़ने वाले संध्या के पिता ने कभी अपने और परिवार के बुनियाद को मजबूत करने के बारे में सोचा ही नहीं. हालांकि राजमिस्त्री का काम करते हुए भी अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की कोशिश करते रहे.
समाज में लड़कियां आज भी उपेक्षित हैं, पर इस मामले में ललन की सोच काफी सकारात्मक है. सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद जब संध्या कॉलेज जाने लगीं, तब फुटबाॅल के प्रति उनका रुझान बढ़ा और इसमें एक सहेली ने उन्हें प्रेरित किया, छोटे शहर में जहां बेटियों के फुटबॉल जैसे खेल को कैरियर बनाने के बारे में सोचना ही गुनाह है, वहां संध्या ने संघर्ष के बदौलत एक सफल मुकाम हासिल किया. कुछ सहेलियों व स्थानीय कोच एचआर अंसारी के प्रेरित करने पर इंटर स्टेट की कई प्रतियोगिताओं में सारण का प्रतिनिधित्व किया.
मां सुनैना देवी को एक तरफ जहां संध्या की शादी की चिंता रहती है, वहीं पिता ललन मांझी खुलकर फुटबॉल खेलने के लिए सपोर्ट करते हैं. एक साधारण से घर में रहने वाली संध्या अपनी प्रतिभा के दम पर लड़कियों के लिए प्रेरणा बन रही हैं.
एक निर्णय ने बदल दी संध्या की किस्मत
वैसे तो तमाम कठिनाइयों के बाद भी संध्या छोटी-छोटी प्रतियोगिताओं में शामिल होते रहीं और अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित करते रहीं. इसी बीच 14 जनवरी से मुजफ्फरपुर खुदीराम बोस फुटबॉल मैदान में सीनियर महिला टीम का प्रशिक्षण आयोजित किया गया. पहले तो संध्या इस कैंप में जाने को लेकर तैयार नहीं थीं, पर परिवार वालों के कहने पर वह इसमें शामिल हुईं. वहां संध्या के साथ बिहार के विभिन्न जिलों से 50 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 20 का चयन कटक में आयोजित 23वें राष्ट्रीय सीनियर महिला फुटबॉल टूर्नामेंट के लिए किया गया. बिहार की इस चयनित टीम में संध्या बतौर गोलकीपर चुनी गयी हैं. संध्या के प्रशिक्षण शिविर में जाने का निर्णय उनके प्रगति का आधार बना

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