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Samastipur News:नारी अब अबला, पराश्रिता व सुकोमला नहीं रही : डा. शशि

स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के तत्वधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन प्रधानाचार्य डॉ शशि भूषण कुमार शशि की अध्यक्षता में की गयी.

Samastipur News:समस्तीपुर: हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर समस्तीपुर कॉलेज समस्तीपुर के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के तत्वधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन प्रधानाचार्य डॉ शशि भूषण कुमार शशि की अध्यक्षता में की गयी. संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत के साथ किया गया. संगोष्ठी का विषय था स्त्री चेतना के विकास में हिंदी का योगदान. विषय प्रवेश हिन्दी विभागाध्यक्ष महेश कुमार चौधरी ने कराते हुए कहा कि पंडिता रमाबाई, सावित्रीबाई फुले, ताराबाई शिंदे, रुकैया बेगम आदि स्त्रियों ने भी इस काल में स्त्री-चेतना को अभिव्यक्त किया. इस तरह से आधुनिक युग में नवीन स्त्री-चेतना की शुरुआत हुई. हिंदी साहित्य में भी स्त्री-विमर्श की शुरुआत के साथ स्त्री-अभिव्यक्ति को नया स्वर और नई दिशा मिली. छायावाद की महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर महादेवी वर्मा ने अपने लेखन और चिंतन के माध्यम से इसे नया और ठोस आधार प्रदान किया. प्रधानाचार्य डॉ. शशि भूषण कुमार शशि ने कहा कि भारतीय समाज की परिस्थितियों के हिसाब से 19 वीं सदी का समय स्त्रियों के लिए भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है. स्पष्ट है कि यही नवजागरण का काल था और इस काल में स्त्रियों के मुद्दे पहली बार सशक्त तरीके से उभरे. इस काल में समाज में नई चेतना का उदय हो रहा था और समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों को लेकर नये तरह से चिंतन और संघर्ष प्रारंभ हुआ. नारी अब अबला, पराश्रिता सुकोमला नहीं रही. बड़े-बड़े संघर्षों चुनौतियों और संकटों में उसकी रचनात्मता व शक्ति रूप छवि अब विशेष रूप से उजागर होने लगी है. प्रो. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि हिन्दी सरल, सहज एवं समृद्ध भाषा है. स्त्री चेतना के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान है. डॉ. सोनी सलोनी ने कहा कि हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के बाद स्त्री अस्मिता को पहचान मिली. व्यापक तौर पर स्त्री विमर्श का आरंभ होता है. यही भोगा हुआ यथार्थ और अनुभव की प्रामाणिकता मूल संवेदना बन कर उभरी. स्त्री की ओर से स्त्री संवेदना अभिव्यक्त करने का प्रचलन बढ़ा और कई लेखिका उभरकर सामने आती है. इनमें उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, नासिरा शर्मा, मैत्रेयी पुष्पा, प्रभा खेतान जैसी लेखिका सशक्त तरीके से उभरती है. डॉ. सुनील कुमार सिंह ने कहा कि स्त्री सृष्टि का आधारभूत अंग है. हिन्दी भाषा ने अपनी सरलता व सहजता से उनकी चेतना को विकसित किया है. इस दौरान छात्र-छात्राओं ने अपना आलेख प्रस्तुत किये. मंच संचालन डॉ. अपराजिता राय व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दयानंद मेहता ने दिया.

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