पूसा . डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित संचार केंद्र के पंचतंत्र सभागार में चल रहे मशरूम उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ. अध्यक्षता करते हुए निदेशक अनुसंधान डा अनिल कुमार सिंह ने कहा कि मशरूम की खेती घर के अन्दर करने योग्य एक लघु उद्योग है. इसे अन्य फसलों के समान खेत की आवश्यकता नहीं होती. अतः यह छोटे एवं भूमिहीन किसानों के लिये उपयुक्त व्यवसाय है. मशरूम उत्पादन के उपरान्त शेष बचे व्यर्थ को खेतों में कम्पोष्ट खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. मशरूम को दुनिया भर में बहुत ज़्यादा आर्थिक महत्व वाला माना जाता है क्योंकि इसमें पोषण संबंधी गुण, औषधीय गुण और व्यावसायिक अनुप्रयोग होते हैं. भारत में, मशरूम की विभिन्न प्रजातियां उगाई जाती हैं, काटी जाती हैं और उनका व्यापार किया जाता है. जिससे अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका में योगदान मिलता है. संचालन करते हुए मशरूम विशेषज्ञ डा दयाराम ने कहा कि एंटी-ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, विटामिन डी, सेलेनियम और जिंक से भरपूर मशरूम का इस्तेमाल कई दवा बनाने के लिए किया जाता है. इसमें मौजूद पोषक तत्व आपके शरीर को कई खतरनाक बीमारियों से बचा कर रखते हैं. इसके अलावा इसका सेवन इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है. मशरूम या टॉडस्टूल एक कवक का मांसल, बीजाणु असर वाला फल शरीर है, जो आमतौर पर जमीन के ऊपर, मिट्टी पर या उसके भोजन स्रोत पर पैदा होता है. मौके पर आईएआरआई झारखंड के वैज्ञानिक डा गुप्ता सहित विभागीय कर्मी मौजूद थे.
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