Samastipur News:समस्तीपुर :
जिले के सरकारी विद्यालयों में अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी को लेकर अपर मुख्य सचिव ने निर्देश दिया है. सभी विद्यालयों में अर्द्धवार्षिक परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम की समीक्षा होगी. सभी कक्षाओं में अर्द्धवार्षिक परीक्षा से पहले कोर्स खत्म करना जरूरी है. अर्द्धवार्षिक परीक्षा 11 से 20 सितंबर तक आयोजित होगी. 31 अगस्त तक सिलेबस को पूरा करना अनिवार्य है. कक्षा 1 से 8 तक की सभी पुस्तकों में सिलेबस से सम्बन्धित माहवार लक्ष्य निर्धारित किया गया है. विद्यालय प्रधान द्वारा पांच सितंबर तक जिला कार्यक्रम पदाधिकारी कार्यालय में जमा करना जरूरी है. जिस स्कूल में पाठ्यक्रम पूरा नहीं हुआ है. वैसे विद्यालयों के द्वारा विशेष कक्षाएं चला कर पाठ्यक्रम पूरा किया जायेगा. इस विभागीय फरमान के बाद से शिक्षकों में काफी आक्रोश है. शिक्षकों का कहना है कि विभाग बच्चों के भविष्य के साथ खेल रही है. शैक्षणिक सत्र के दो माह से अधिक समय बीतने के बाद भी शिक्षा विभाग सभी छात्र-छात्राओं को किताब उपलब्ध नहीं करा पाई. जिस कारण जिला के सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों की नये सत्र की शुरूआत बिना किताबों के हो गई. सच यह है कि जून माह में सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले क्लास 1 से 6 वर्ग के बच्चों के बीच किताब सरकारी तौर पर अभी तक कुछ ही बच्चों को उपलब्ध करायी गई है. क्लास 6 के बच्चों को अभी तक सरकार के तरफ से एक भी किताबें नहीं उपलब्ध कराई गई है.– सत्र शुरू होने के दो माह बाद मिली पाठ्य-पुस्तकें
बाकी 1 से 5 क्लास के बच्चे को किताबें मिली भी हैं तो वो भी आधे अधूरी ही बच्चें को मिली है. ऐसे स्थिति में बच्चों के शिक्षा पर ग्रहण लग चुका है. शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने की बजाय अब बीएलओ की भूमिका में अपनी ड्यूटी दे रहे हैं. ये मतदाता गणना प्रपत्र प्रारूप से जुड़े काम में लगे हैं. इससे स्कूलों में पठन-पाठन का माहौल बिगड़े तो बिगड़े. इधर, शिक्षक संगठनों ने बताया कि शिक्षा की गुणवत्ता संवर्धन संबंधी विभिन्न सर्वे रिर्पोटों और अध्ययनों में शिक्षकों पर गैर अकादमिक कार्यों के बढते बोझ को शिक्षा की गुणवत्ता सुधार में सबसे बड़ी बाधा बताया गया है.– आधे से अधिक शिक्षक बीएलओ सुपरवाइजर व बीएलओ ड्यूटी पर
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिट्रेशन (नीपा) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्कूलों के शिक्षकों का काफी समय गैर अकादमिक कार्यों में लग जाता है, जो कि शैक्षिक गुणवत्ता में बड़ी बाधा है. निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 27 के अनुसार शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने पर रोक है. प्रख्यात शिक्षाविद डा. दशरथ तिवारी ने भी इस संदर्भ में कहा है कि शिक्षकों पर काफी सारी जिम्मेदारी डाल दी गई है. यह मान कर चला जा रहा है कि उन्हें कहीं भी लगा दो, यह ठीक नहीं है. अकादमिक कार्यों पर ध्यान देना जरूरी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

