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वंदे मातरम का विरोध देशद्रोही मानसिकता का परिचायक: नन्हें

वंदे मातरम का विरोध देशद्रोही मानसिकता का परिचायक: नन्हें

सहरसा . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धर्म जागरण जिला संयोजक सह छात्र संघ अध्यक्ष सागर कुमार नन्हें ने कहा कि मजहब की आड़ में वंदे मातरम का विरोध करने वाले लोगों को अपनी इस देशद्रोही मानसिकता से बाहर आना चाहिए. इसी अलगाववादी मानसिकता ने भारत के सांप्रदायिक विभाजन की नींव रखी थी. अब इसे कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी को संपूर्ण राष्ट्र कृतज्ञता ज्ञापित करता है. गत डेढ़ सौ वर्षों से यह गीत लगातार राष्ट्रीय चेतना का केंद्र रहा है. वंदे मातरम का यह उद्घोष ही आबाल, वृद्ध सभी व्यक्तियों में प्रेरणा देने का काम आज तक निरंतर कर रहा है. बंग भंग आंदोलन में केवल बंगाल ही नहीं, संपूर्ण देश इस उदघोष के साथ एकजुट हो गया था. हिंदू, मुसलमान मिलकर लड़ रहे थे. लेकिन इस आंदोलन का केंद्र बिंदु वंदे मातरम् ही था. जिसे 1907 तक सब मिलकर गाते रहे. उन्होंने ने कहा कि अंग्रेज बंग भंग आंदोलन की सफलता से परेशान थे. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम आज भी संपूर्ण भारत की प्रेरणा का केंद्र है. आज भी वही लोग विरोध कर रहे हैं जो अंग्रेजों की औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित हैं. वही लोग उनका साथ दे रहे हैं जो तुष्टीकरण की राजनीति के तहत ये सोचते हैं कि वंदे मातरम का विरोध करके उनको मुस्लिम वोट बैंक प्राप्त होगा. हम सब मिलकर ब्रिटिश औपनिवेशिक गुलामी से बाहर निकल कर राष्ट्र की चेतना व एकात्मकता के इस मंत्र वंदे मातरम के उदघोष एवं गीत का गायन कर एक नये सबल भारत के निर्माण में अपना अपना योगदान दें.

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