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सलखुआ प्रखंड मुख्यालय में सरकारी आवास का अभाव बना प्रशासनिक बाधा

सलखुआ प्रखंड मुख्यालय में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए सरकारी आवास की अनुपलब्धता एक गंभीर प्रशासनिक समस्या बनती जा रही है.

10 से 30 किलोमीटर दूर रहने को विवश अधिकारी, विकास कार्य और जनता दोनों प्रभावित

सलखुआ. ग्रामीण प्रशासन की रीढ़ माने जाने वाले सलखुआ प्रखंड मुख्यालय में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए सरकारी आवास की अनुपलब्धता एक गंभीर प्रशासनिक समस्या बनती जा रही है. आवासीय सुविधा नहीं होने के कारण अधिकांश अधिकारी एवं कर्मचारी मुख्यालय से 10 से 30 किलोमीटर दूर रहने को विवश हैं. जिसका सीधा असर प्रशासनिक कार्यप्रणाली, विकास योजनाओं एवं जनसेवाओं पर पड़ रहा है एवं सरकारी राशि का दुरुपयोग हो रहा है. स्थानीय स्तर पर यह स्थिति वर्षों से बनी हुई है. समय पर कार्यालय नहीं पहुंच पाना, आकस्मिक बैठकों में अनुपस्थिति एवं फील्ड कार्यों में विलंब अब आम बात हो चुकी है. इससे ना केवल विकास योजनाओं की गति प्रभावित हो रही है. बल्कि आवागमन मद में सरकारी राशि के दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ रही है.

जर्जर है सरकारी आवास

सलखुआ प्रखंड मुख्यालय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जहां से विकास की दिशा तय होनी चाहिए, वहीं प्रशासनिक व्यवस्था खुद बदहाली की शिकार है. वर्षों से उपेक्षित सरकारी आवास आज जर्जर होकर भूतबंगला का रूप ले चुका है. नतीजतन अधिकारी एवं कर्मचारी प्रखंड मुख्यालय से 10 से 30 किलोमीटर दूर रहने को मजबूर हैं. इस दूरी का असर केवल उनकी सुविधा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा दुष्प्रभाव आम जनता पर पड़ रहा है. समय पर कार्यालय नहीं खुलना, अधिकारियों का देर से पहुंचना एवं आकस्मिक स्थितियों में केवल मोबाइल फोन के भरोसे प्रशासन चलना-यह सब प्रशासनिक शिथिलता का स्पष्ट प्रमाण है. विकास योजनाएं कागजों में समय पर पूरी दिखाई जाती है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि समय के अभाव में कार्य अवरुद्ध रहते हैं. दूर-दराज से आने वाली जनता को एक छोटे से काम के लिए कई दिनों तक प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. कई बार अधिकारी-कर्मी समय से नहीं मिलने पर लोग निराश होकर बिना काम कराए लौट जाते हैं. सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि जिन कार्यालयों एवं आवासों का निर्माण सरकारी धन से हुआ, उनकी देखरेख पर वर्षों से ध्यान नहीं दिया गया. यह स्थिति ना केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का भी संकेत देती है. अब प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन केवल भवन निर्माण तक ही सीमित रहेगा, या उनके रखरखाव की जिम्मेदारी भी निभाएगा. सरकार एवं जिला प्रशासन समय रहते जर्जर आवासों की मरम्मत या नये आवासों के निर्माण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है तो प्रखंड स्तर पर सुशासन की परिकल्पना अधूरी ही रहेगी.

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