विडंबना. छोटी नाव से पार होने पर रहता है दुर्घटना का डर, प्रशासन का नियंत्रण नहीं
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गांव से बाहर जाने का मात्र नाव ही सहारा
विडंबना. छोटी नाव से पार होने पर रहता है दुर्घटना का डर, प्रशासन का नियंत्रण नहीं निरंतर विकास की कहानियों के बीच कोसी के लोगों की अपनी व्यथा-कथा है. इस क्षेत्र में कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी आवागमन के लिए नाव ही सहारा है. सिमरी बख्तियारपुर : कोसी में पानी में जैसे लोग […]
निरंतर विकास की कहानियों के बीच कोसी के लोगों की अपनी व्यथा-कथा है. इस क्षेत्र में कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी आवागमन के लिए नाव ही सहारा है.
सिमरी बख्तियारपुर : कोसी में पानी में जैसे लोग उतरते हैं नाव का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है. क्योंकि घर से बाहर निकलना हो तो आवागमन के लिए नाव ही एक मात्र विकल्प है. लेकिन कोसी नदी में छोटी नावों का परिचालन खतरनाक बनता जा रहा है. छोटी नाव के परिचालन पर रोक के लिए प्रशासन द्वारा बार-बार चेतावनी दी जाती रही है. उसके लिए सरकार द्वारा कानून भी बना है. बावजूद इसके कोसी में छोटी नावों के परिचालन को रोका नहीं जा सका है.
कोसी नदी के डेंगराही, खोनाम, करहरा, अलानी, पचभीरा, राजनपुर, घोघसम, घोरमाहा घाट के रास्ते अभी भी दो दर्जन से अधिक गांव कठडूमर, चानन, घोघसम, बेलवारा, कबीरा, अलानी, धनुपरा, डेंगराही, कामास्थान, रंगीनियां, सहूरिया, काटी, सहूरी, भिरखी सहित करीब 60 हजार की आबादी रोज जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने को मजबूर है. लोग पूर्वी तथा पश्चिमी तटबंध पर जाने-आने के लिए नाव से ही सफर करते हैं. बाढ़ के समय कोसी के पेट में बसे लोग गांव से बाजार तक का सीधा सफर छोटी-छोटी नावों से करते हैं. ऐसे में कई बार नाव दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है. छोटी नावों से नदी पार होने के दौरान अब तक कई लोगों की जानें भी जा चुकी हैं. कई बार तो नाव दुर्घटना को पूरी तरह से दबाने में भी लोग सफल हुए हैं.
कई गांव के लोग करते हैं नाव से सफर
अप्रशिक्षित नाविक चलाते हैं नाव
कोसी नदी में चलने वाली अधिकतर नावों के नाविक अनुभवहीन हुआ करते हैं. इन नाविकों को पानी के उतार-चढ़ाव की कम जानकारी होने से भी कई बार दुर्घटनाएं होती हैं. कोसी के अधिकांश जगहों पर छोटी-छोटी नावों का परिचालन ज्यादा बढ़ गया है. बाढ़ के समय में भी कोसी नदी में छोटी नावों का खुलेआम परिचालन होता है. बाढ़ के समय सरकारी स्तर से बहाल किए जाने वाले अधिकांश नावों की लंबाई, चौड़ाई कम हुआ करती है. नाव मालिक अंचल प्रशासन से मिल कर इन नावों को बहाल करवा लेते हैं. उसमें उन्हें नाविक की मजदूरी और नाव का भाड़ा मिल जाता है. हालांकि किसी प्रकार की घटना होने पर ऐसे नावों को जांच के घेरे से दूर कर दिया जाता है.
कहते हैं कोसी के लोग
कोसी के पेट में बसने वाले उदित यादव, शंभू शर्मा, सुनील सादा, गणपत सादा, रीगन शर्मा, केपी शर्मा सहित अन्य बताते हैं कि उन सबों के आवागमन का नाव ही मुख्य साधन है. सरकार नदी में नावें नहीं देती है. लोग अपनी क्षमता के हिसाब से छोटी-छोटी नावों को बनाकर रखते हैं. कोसी में पानी कम होने पर तो छोटी-छोटी नावों से काम चल जाता है. लेकिन जैसे ही पानी बढ़ता है छोटी नावों से सफर मौत से खेलने समान हो जाता है. कई बार न दुर्घटना में कई लोगों की जानें भी जा चुकी है. घटना के बाद प्रशासन सतर्क होता है. फिर कुछ महीने बाद फिर उसी पुरानी चाल पर नाव परिचालन शुरू हो जाता है. मगर मजबूरी में लोग क्या नहीं करते. सो छोटी नावों से ही सफर करते रहते हैं.
नदी में सिर्फ रजिस्ट्रेशन वाली नावें ही चलेंगी. बिना अनुमति प्राप्त नाव, नाविक व उसके मालिक के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जायेगी.
सुमन प्रसाद साह, एसडीओ, सिमरी बख्तियारपुर
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