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शक्कर के शौकीनों के लिए सजने लगा शहर का बाजार

उत्पादकों सहित गन्ना किसानों को नहीं मिला सरकार की ओर से प्रोत्साहन कभी दूसरे प्रदेशों तक पहुंचता था बेंगहा का गुड़ सहरसा : आगरा की रेवड़ी खा लो या फिर हैदराबादी अंडा, बेंगहा की शक्कर से ज्यादा नहीं है किसी में गरमी… सरदी के दिनों में शहर के दहलान चौक स्थित गुड़ मंडी में इस […]

उत्पादकों सहित गन्ना किसानों को नहीं मिला सरकार की ओर से प्रोत्साहन

कभी दूसरे प्रदेशों तक पहुंचता था बेंगहा का गुड़
सहरसा : आगरा की रेवड़ी खा लो या फिर हैदराबादी अंडा, बेंगहा की शक्कर से ज्यादा नहीं है किसी में गरमी… सरदी के दिनों में शहर के दहलान चौक स्थित गुड़ मंडी में इस प्रकार के लोकोक्ति को बुदबुदाते लोग व विक्रेता जरूर मिल जायेंगे. दशकों पूर्व की बात करें तो कोसी के इलाके में यातायात की सुविधा कम होने के बावजूद जिले के बेंगहा, रहुआमणी, परसाहा, ढ़ोली, मोहनपुर व धमसेना में निर्मित शक्कर (गुड़) का निर्यात प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में किया जाता था.
उन दिनों किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती भी की जाती थी.
उत्पादकों द्वारा गन्ने का प्रयोग जहां शक्कर बनाने के लिए किया जाता था, वहीं उसकी सूखी लकड़ी को शक्कर निर्माण के दौरान जलावन के रूप में उपयोग में लाया जाता था.
सरकारी प्रोत्साहन मिलता, ताे बढ़ता व्यापार: गन्ने उत्पादक किसानों व शक्कर के निर्माताओं को सरकार व प्रशासन के द्वारा प्रोत्साहन नहीं दिये जाने की वजह से लोगों का रूझान इस व्यवसाय की ओर कम होता गया. वहीं कुछ पुराने व पारंपरिक व्यवसाय करने वाले लोगों ने इसे अपने तक ही सीमित रखा. विक्रेता व उत्पादक संतोष कुमार व कामेश साह कहते हैं कि सरकार द्वारा प्रोत्साहन नहीं मिलने से यह मुनाफे का रोजगार नहीं रह गया है. आने वाली पीढ़ी इस ओर आकर्षित नहीं हो पा रही है. व्यवसायी अनिल गुप्ता बताते हैं कि बैंक व उद्योग विभाग द्वारा इस व्यवसाय को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है.
गन्ने की खेती से किसानों का अलगाव
गुड़ उत्पादन को लेकर छोटे उद्यमी के दूरी बनाने से गन्ने की खेती पर इसका व्यापक असर हुआ है. किसान राजन सिंह बताते हैं कि पूर्व में गन्ने की फसल कटने से पूर्व ही खेतों में उत्पादक द्वारा खरीद लिया जाता था. लेकिन इन दिनों गन्ने की खरीदारी के लिए इंतजार करना होता है. किसान बताते हैं कि फिलवक्त समस्तीपुर से उद्यमी द्वारा स्थानीय स्तर पर गन्ने की खरीद की जाती है. इस वजह से अधिकाधिक संख्या में गन्ने के किसान दूसरी फसल की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
मुनाफे में कमी से बाजार हलकान
गुड़ के व्यवसाय पर भी महंगाई की मार पड़ी है. इसका असर उत्पादन से लेकर व्यवसाय तक नजर आता है. व्यवसायी पन्ना लाल साह बताते हैं कि पूर्व में लागत कम होने की वजह से मुनाफा अधिक होता था, लेकिन इन दिनों यह फासला काफी कम हो चुका है. फिलवक्त बाजार में राव शक्कर 35 से 40 रुपये तक में उपलब्ध है. वहीं सामान्य चेकी शक्कर 60 से 70 रुपये प्रति किलो की दर में उपलब्ध है.

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