दुखद स्थिति . अतिक्रमण की वजह से बढ़ने लगी है परेशानी, प्रशासन भी दिख रहा लाचार
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जमीन सरकार की, दबंग लेता है किराया
दुखद स्थिति . अतिक्रमण की वजह से बढ़ने लगी है परेशानी, प्रशासन भी दिख रहा लाचार शहर के चौराहे और बाजार को अतिक्रमण मुक्त करने की लाख कवायद प्रशासन कर ले, लेकिन इस कार्य में सफलता मिलना आसान नहीं है. वजह यह है कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है. सहरसा : एक तरफ शहर […]
शहर के चौराहे और बाजार को अतिक्रमण मुक्त करने की लाख कवायद प्रशासन कर ले, लेकिन इस कार्य में सफलता मिलना आसान नहीं है. वजह यह है कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है.
सहरसा : एक तरफ शहर में पार्किंग को लेकर नगर परिषद व प्रशासन जमीन की जुगत में हैं, वहीं दूसरी तरफ सड़क किनारे सरकारी जमीनों पर दबंग कब्जा कर भाड़ा वसूल रहे हैं. यह सब कुछ प्रशासन के नाक के नीचे चल रहा है. स्थिति यह है कि इस खेल में कई वैसे लोग भी शामिल हैं, जिनका स्वयं का नहीं किराये का कारोबार चल रहा है. हालांकि अवैध कब्जे और भाड़े की वसूली के इस खेल से परदा उठने लगा है.
तीन हजार रुपये प्रतिमाह तय है भाड़ा
अनुमानित आंकड़े के अनुसार वीर कुवंर सिंह चौक, थाना चौक, कचहरी बाजार, पुरानी जेल, रेलवे लाइन एवं एनएच के दोनों तरफ तकरीबन 300 दुकानें सरकारी जमीन पर कब्जा कर भाड़े पर लगायी गयी हैं. झोंपड़ीनुमा बनी 12×12 की दुकान प्रतिमाह तीन हजार के किराये पर उपलब्ध हैं. इन झोंपड़ियों में दुकान सजाने वाले दुकानदार ससमय भाड़ा भी चुकाते रहे हैं. क्योंकि जरा सा विलंब होने पर तथाकथित मालिक दुकान खाली कराने में भी विलंब नहीं करते हैं.
नप से लेकर प्रशासन तक को है पता
विडंबना तो यह है कि इस प्रकार की दबंगई की जानकारी प्रशासन से लेकर नप के अधिकारियों को भी है. उनलोगों को सरकारी नियम के अनुसार बिजली का कनेक्शन सहित अन्य सुविधा भी दी जा रही है. इस वजह से अतिक्रमण करने वालों की तादाद कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है.
सरकारी जमीन से होती है उगाही
अतिक्रमण को लेकर बीच-बीच में प्रशासन थोड़ी-बहुत पहल करता रहा है. लेकिन इन अवैध कब्जाधारियों के सेहत पर कभी खास असर देखने को नहीं मिला है. शहर के सार्वजनिक जगहों, बाजार व चौराहे के आसपास सैकड़ों स्थायी झोंपड़ी वर्षों से सरकारी जमीन पर अवस्थित है. यह दायरा धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है. इस कार्य में लगे लोग सुनियोजित तरीके से पहले कब्जा करते हैं और फिर उसे भाड़े पर लगा कर मोटी रकम बतौर किराया वसूल करते हैं. जानकारों की मानें तो प्रतिमाह इस खेल में लाखों की उगाही होती है. वहीं स्थानीय पुलिस को भी इस मद की राशि बतौर हिस्सा पहुंचती है.
प्रशासनिक चुप्पी ने कब्जाधारियों को बनाया दबंग
इस अवैध कब्जे और भाड़े की वसूली के कार्य में सहरसा से लेकर सोनवर्षाराज तक सैकड़ों ऐसे लोग शामिल हैं, जिन्हें किसी न किसी राजनेता या स्थानीय प्रशासन का वरदहस्त हासिल है या फिर वे स्वयं राजनीति में हैं. इनके द्वारा कब्जा की जाने वाली जमीन पर प्रशासन ने हमेशा चुप्पी साधे रखी है. इसी चुप्पी की वजह से अवैध कब्जाधारी दबंग बने हुए हैं. इस कार्य में लगे लोग अवैध कब्जा की गयी जमीन को वर्ग सेंटीमीटर में बांट कर किरायेदार बहाल करते हैं और फिर उससे भाड़ा वसूली का काम आरंभ हो जाता है.
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