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पूर्णिया : जब चार साल पूर्णिया लोकसभा सीट रही सांसद विहीन, इस सीट को छोड़ पूरे देश में हुई थी मतगणना, जानें वजह
अरुण कुमार पूर्णिया : जादी के बाद से अब तक पूर्णिया लोकसभा सीट से 17 सांसद चुने गये लेकिन एक दौर ऐसा था, जब चार साल न केवल पूर्णिया सांसद विहीन रहा, बल्कि संसद में इस क्षेत्र का कोई प्रतिनिधि नहीं था. बात दसवीं लोकसभा की है. 1991 में पूर्णिया सीट पर हुए मतदान को […]
अरुण कुमार
पूर्णिया : जादी के बाद से अब तक पूर्णिया लोकसभा सीट से 17 सांसद चुने गये लेकिन एक दौर ऐसा था, जब चार साल न केवल पूर्णिया सांसद विहीन रहा, बल्कि संसद में इस क्षेत्र का कोई प्रतिनिधि नहीं था. बात दसवीं लोकसभा की है.
1991 में पूर्णिया सीट पर हुए मतदान को चुनाव आयोग ने (काउंटरमांड) रद्द कर दिया था. आयोग का यह फैसला उस दौर में काफी चर्चित रहा था. बाद में आयोग के इस फैसले को दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी. करीब चार साल तक लंबी लड़ाई के बाद हाइकोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने लोकसभा सीट के पुनर्मतदान का आदेश दिया. यह पुनर्मतदान 1995 में हुआ और करीब एक साल से भी कम दिनों के लिए राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सांसद बने. यह बात 27 साल पुरानी है.
इस बात पर अब नयी पीढ़ी में चर्चा भी नहीं हो पाती. पुराने लोग इस घटना को पूर्णिया के राजनीतिक बड़ी घटनाओं में से एक को मानते रहे हैं. दरअसल, 1991 में दसवीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था. चुनावी अखाड़े में चार प्रमुख दलों के प्रत्याशी मैदान में थे. इनमें कांग्रेस से उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह, भाजपा से जनार्दन प्रसाद यादव, माकपा से अजित सरकार शामिल थे.
इस सीट को छोड़ पूरे देश में हुई थी मतगणना
करीब एक माह तक धुंआधार चुनाव प्रचार के बाद मतदान का दिन आया. सुबह से सभी बूथों पर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थीं. अचानक दिन के 12 बजे चुनाव मैदान में खड़े सभी चारो प्रमुख राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी जिला निर्वाची पदाधिकारी के कार्यालय पहुंचे और संयुक्त रूप से पूर्णिया लोकसभा सीट के तकरीबन तीन सौ बूथों को लूट लेने और बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत की. उस वक्त के तात्कालीन जिला निर्वाची पदाधिकारी सह पूर्णिया के डीएम एसएस वर्मा ने इस मामले को चुनाव आयोग को सौंप दिया. दोपहर बाद से पूर्णिया में खलबली मच गयी.
उस दौर के भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषण ने उसी दिन देर शाम तक मतदान रद्द कर देने का आदेश दे दिया. नतीजा यह हुआ कि पूर्णिया सीट को छोड़ पूरे देश में मतगणना हुई. इस सीट के सारे मतपेटी सील कर दिये गये. उस दौर में राजेश रंजन के चुनाव अभिकर्ता रहे सरोज कुमार भारती कहते हैं कि निर्वाचन आयोग के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी थी.
…चार साल तक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट का फैसला उस समय आया, जब दसवीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने में मुश्किल से एक साल बच गया था. कोर्ट ने इस सीट पर सभी बूथों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया, लेकिन शर्त यह थी कि प्रत्याशी वही होंगे जो उस समय चुनाव मैदान में खड़े थे. फिर से मतदान हुआ और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव विजयी हुए.
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