World Environment Day: सरकारें चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन अगर लोग अपने स्तर पर पर्यावरण को बचाने के लिए कदम नहीं उठाएंगे तो पर्यावरण संरक्षण नहीं हो पाएगा. पानी की खपत, बिजली का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल, प्लास्टिक का इस्तेमाल, पेड़ों की कटाई और प्रदूषण पर्यावरण को क्षति पहुंचाते हैं. ऐसे में हम सभी का कर्तव्य है कि प्रकृति की देखभाल करें. विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि पटना को हरा-भरा और स्वच्छ बनाएंगे.पेड़ लगाकर और पर्यावरण का ध्यान रखकर, अपने शहर को एक बेहतर कल दें. विश्व पर्यावरण दिवस पेश है शहर के ऐसे ही प्रकृति रक्षकों की कहानी…
हरिलायी बचाने में जुटे शहर के प्रकृति प्रेमी
दीघा की पहचान माने जाने वाले दूधिया मालदह आम के पेड़ अब धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं. एक समय था जब दीघा की गलियों में इस खास किस्म के आम की खुशबू बसी रहती थी, लेकिन अब ये पेड़ गिनती के रह गये हैं. हालात देखकर इलाके के पर्यावरण प्रेमी सुधीर कुमार ने इन पेड़ों को बचाने की मुहिम शुरू कर दी है. 2017 से सुधीर कुमार खाली स्थानों पर पेड़ लगाना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि शुरुआत में लोग आम के पौधों को नष्ट कर देते थे. लोग झगड़ा भी करने लगते थे कि मेरे निजी जमीन पर पौधा क्यों लगा दिये, लेकिन अब धीरे-धीरे सब लोग मुहिम में साथ देने लगे.
सुधीर का कहना है कि दूधिया मालदह सिर्फ एक आम नहीं, हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. इसकी मिठास और स्वाद दीघा की पहचान रही है. उन्होंने अब तक करीब दर्जन भर पुराने पेड़ों की देखभाल शुरू की है और नये पौध लगाने की भी योजना बना रहे हैं. स्थानीय लोग भी सुधीर के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाया गया तो अगली पीढ़ी सिर्फ किताबों में ही दूधिया मालदह के बारे में पढ़ेगी. पर्यावरणविदों का मानना है कि शहरीकरण और उपेक्षा की वजह से यह किस्म संकट में है. सुधीर जैसे लोगों की कोशिशें न सिर्फ एक पेड़ को बचाने की है, बल्कि एक परंपरा को जिंदा रखने की भी है. सुधीर कुमार पुराने पेड़ से कलम तैयार कर रहे हैं और लोगों को बांट भी रहे हैं. सरकारी कार्यालय में भी दूधिया मालदह आम के पौधों को लगाने के लिए सभी विभाग में संपर्क कर रहे हैं.
जीआइ टैग का 80% काम पूरा, अब पौधारोपण पर जोर
सुधीर कुमार ने कहा कि पटना के दीघा क्षेत्र में उगने वाला प्रसिद्ध दूधिया मालदह आम अब जल्द ही भौगोलिक संकेतक (जीआइ) टैग प्राप्त करने वाला है. राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह प्रक्रिया लगभग 80% पूरी हो चुकी है, और 2025 अंत तक इसके पूरा होने की उम्मीद है. दूधिया मालदह को जीआइ टैग मिलने से न केवल इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक लाभ होगा. इस पहल से बिहार के बागवानी क्षेत्र में नवाचार और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलेगा. इस ऐतिहासिक कदम से दीघा का यह खास आम अब वैश्विक पहचान की ओर अग्रसर है, और इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रयासों को नयी दिशा मिलेगी. सुधीर ने कहा कि दूधिया मालदह की विशिष्टता को देखते हुए, कृषि अनुसंधान संस्थान, पटना के वैज्ञानिकों ने इसके मातृ वृक्षों और उत्पादन प्रणाली का सूक्ष्म निरीक्षण किया है. कृषि सचिव संजय कुमार अग्रवाल और पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने भी संस्थान परिसर में इस आम के पौधे का रोपण कर इस पहल को समर्थन दिया.
- पालीगंज के वसंत बिगहा में किसान एग्रो फोरेस्ट्री कर खेती के साथ विकसित कर रहे हरियाली
प्रमोद झा/ पटना. पालीगंज प्रखंड में दहिया पंचायत के बसंत बिगहा गांव के किसान एग्रो फोरेस्ट्री कर खेती के साथ हरियाली विकसित कर रहे हैं. गांव के किसान अपने-अपने खेतों में काष्ट व फलदार पौधा लगा कर हरियाली को बढ़ा रहे हैं. पौधे लगा कर एक तरफ पर्यावरण संरक्षण का काम हो रहा है.साथ ही खेत में लगे पौधे के बीच-बीच में लहसुन, प्याज, आलू आदि की खेती कर अपने खाने का इंतजाम करने के साथ व्यवसाय भी कर रहे हैं.वसंत बिगहा के किसान लाल मोहन यादव, संटू कुमार, उपेंद्र यादव, रंजन कुमार कमलेश प्रसाद, सुरेंद्र यादव, प्रभात कुमार, अखिलेश कुमार, संजय कुमार अपने खेतों में एग्रो फोरेस्ट्री कर रहे हैं. पिछले तीन साल में किसानों ने अपने-अपने खेतों में पौधे लगाये हैं.सभी किसान अपने-अपने खेतों में 200-200 पौधे लगा कर उसकी देखभाल वे स्वयं कर रहे हैं. पौधे की देखभाल करने के लिए उन्हें मासिक 1960 रुपये मिल रहा है. इसके अलावा खेतों में लगे पौधे की लकड़ी व फल को बेच कर आर्थिक कमाई कर रहे हैं.किसानों ने बातचीत में कहा कि एग्रो फोरेस्ट्री से कमाई अच्छी हो रही हे. पौधे की देखभाल में मेहनत है, लेकिन आर्थिक कमाई होने से सब कुछ भूल जाते हैं. पालीगंज प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारी चित्तरंजन कुमार ने बताया कि किसानों से इसे अपनाकर खेती के साथ हरियाली को बढ़ावा दे रहे हैं.किसानों की इस पहल को देखने के लिए मुख्यालय स्तर से ग्रामीण विकास विभाग, पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन के वरीय अधिकारी इसका मुआयना कर चुके हैं. पटना जिले में इस गांव में पौधे लगा कर खेती करने की योजना की तारीफ हो रही है.
- एक कट्ठे में स्कूलों में उगा रहे सात तरह की सब्जियां
जिले के स्कूली बच्चों को बागबानी के गुर सिखाने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से स्कूलों में पोषण वाटिका तैयार की गयी है. जिले के स्कूलों में तैयार की गयी पोषण वाटिका में सबसे बेहतर प्रदर्शन धनरूआ और पालीगंज प्रखंड के स्कूलों का रहा है. पिछले एक वर्षों में इन दो प्रखंडों के स्कूलों में तैयार पोषण वाटिका में विभिन्न तरह की सब्जियां और फूलों को उगाया जा रहा है. धनरूआ प्रखंड के मध्य विद्यालय साई में करीब एक कट्ठे में बने पोषण वाटिका में सात तरह की सब्जियां उगायी जा रही है. इसके साथ ही बच्चों को बागबानी के गुर सिखाने के साथ ही विभिन्न मौसमी सब्जियों के उत्पादन की बारीकियों से अवगत कराया जा रहा है. मध्य विद्यालय साई में साग, नेनुआ, भिंड, कद्दू, टमाटर, नीबूं, धनिया आदि उगाने के साथ ही उसके पैदावार को मध्याह्न भोजन में बच्चों को परोसा भी जा रहा है. स्कूल के शिक्षक शरनेंदु मिश्रा ने बताया कि स्कूल के पोषण वाटिका में अलग-अलग मौसम के अनुसार सब्जियां उगायी जा रही है. इसमें प्रतिदिन सुबह स्कूली बच्चों को पौधे के बीज लगाने और खाद-पानी देने के तरीकों से अवगत कराया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पोषण वाटिका में जितनी भी सब्जियों का पैदावार होती है उसे बच्चों को मिलने वाले मध्याह्न भोजन में शामिल किया जाता है.
पटना के प्रत्येक स्कूलों को पौधे लगाने और उपकरण खरीद के लिये मिलेंगे पांच हजार रुपये
पटना के सरकारी स्कूलों को हरा-भरा बनाने की तैयारी शुरू कर दी गयी है. बरसात के मौसम में जिले के स्कूलों में दो लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें जिन स्कूलों में अधिक जगह होगी वहां पर बड़ी संख्या में पौध रोपण किया जायेगा. वहीं जिन स्कूलों में जगह की कमी होगी वहां गमले में पौधे लगाये जायेंगे. इसके साथ ही स्कूलों में बने पोषण वाटिका में भी बच्चों को बागबानी के गुर सिखाये जायेंगे. पोषण वाटिका की देख-भाल बच्चे और शिक्षक के सहयोग से किया जायेगा. स्कूल प्रांगण को हरा-भरा बनाने और पोषण वाटिका के निर्माण के लिये प्रत्येक स्कूलों पांच-पांच हजार रुपये आवंटित किया गया है. जिला शिक्षा कार्यालय की ओर से आवंटित राशि स्कूलों को भेजा जा रहा है. स्कूलों को पांच हजार रुपये में बागवानी के लिये विभिन्न उपकरण खरीदना है. स्कूलों को दी गयी राशि से फेंसिंग वायर, खुरपी, कुदाल, पौधे में पानी देने के लिये पाइप व अन्य उपकरण खरीदे जायेंगे. जिले के स्कूलों में गर्मी छुट्टी के बाद दो लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है.
- छत पर ही बना डाला बगीचा
राजधानी में कई ऐसे भी है जो जगह के अभाव में घर की छत पर ही बगीचा बना लिये हैं. ऐसे में एतवारपुर के रहने वाले राकेश भारती ने अपने घर की छत पर ही बगीचे का निर्माण कर रखा है. उन्होंने बताया कि छत पर उड़हुल, कनैल के पौधे के साथ ही गोभी, पालक , करैला आदि उगा रहे हैं. उन्होंने बताया कि जब वे बाल अवस्था में थे तो अपने गांव के बगीचे में तरह-तरह के पेड़ लगाया करते थे. ताकि घर में प्रदूषित हवा से राहत मिल सकें और सुबह में मार्निंग वॉक के लिए बगीचे में घूम सकें. लेकिन राजधानी में जगह की कमी के कारण बगीचा का अभाव महसूस होने लगा. तभी उनके मन में छत पर बगीचा बनाने का ख्याल आया. वहीं मीठापुर के रहने वाले पीयूष जैन ने अपने घर की छत पर तरह-तरह के पौधे उगा कर बागबानी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे अपने बगीचे में तरह-तरह के फल व सब्जियों भी उगाते हैं, जिनमें चीकू, नींबू, करेला, लौकी आदि हैं.