Woman of the Week: बचपन से किताबों और कलम से गहरा जुड़ाव रखने वाली लेखिका ‘नीलिमा सिंह’ न सिर्फ साहित्य की साधिका हैं, बल्कि आज महिलाओं की रचनात्मकता को पहचान भी दिला रही हैं. हिंदी साहित्य में पीएचडी करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली यह महिला आज ‘आयाम: साहित्य का स्त्री स्वर’ संस्था की अध्यक्ष हैं. जिसकी स्थापना पद्मश्री उषा किरण खान ने महिलाओं की साहित्यिक अभिव्यक्ति को मंच देने के उद्देश्य से की थी. वे कहती हैं, उषा दीदी की लेखनी से इंटर की पढ़ाई के दौरान मेरा जुड़ाव हुआ, जिन्होंने लेखन की दिशा में मुझे प्रेरित किया. जब उनसे मेरी मुलाकात हुई, तो यह प्रेरणा समर्पण में बदल गयी. वर्षों तक उनके साथ काम करते हुए मैने साहित्य, सरोकार व संवेदनाओं को नजदीक से महसूस किया.
Q. साहित्य से आपका जुड़ाव कैसे हुआ. इसके प्रति रुचि कब से जगी, इसके बारे में बताएं?
Ans – बचपन से ही घर में पढ़ने का माहौल था. दस साल की उम्र से पत्रिकाओं के प्रति आकर्षण था और वहीं से साहित्यिक रुझान पनपने लगा. बाद में डायरी लिखना शुरू किया और खुद के शब्दों को पहचान दी. इंटर में पढ़ाई के दौरान ही पद्मश्री उषा किरण दीदी की लेखनी से जुड़ी. उनकी रचनाएं पढ़ते-पढ़ते खुद को लेखन के करीब पाया. हिंदी में पीएचडी की और शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गयी. बाद में जब उषा दीदी से मुलाकात हुई और उनके साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. अब तक मेरी आठ पुस्तकें- कहानी और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं. फिलहाल, मैं पटना के कॉमर्स कॉलेज से सेवानिवृत्त हो चुकी हूं.
Q. ‘आयाम: साहित्य का स्त्री स्वर’ से आपका जुड़ना कैसे हुआ?
Ans – आयाम की स्थापना उषा दीदी ने महिलाओं की साहित्यिक पहचान को मंच देने के उद्देश्य से की थी. मेरी उनसे पहली मुलाकात कॉलेज में इंटरनल परीक्षा के दौरान हुई थी. जिनकी रचनाएं पढ़कर मैंने साहित्य की दिशा पकड़ी थी, उनसे मिलना एक अविस्मरणीय अनुभव था. धीरे-धीरे उनके साथ संस्था के काम में जुड़ गयी. उनका सपना था कि साहित्य सिर्फ पुरुषों का मंच न रहे, बल्कि महिलाएं भी आत्मविश्वास के साथ लिखें, बोलें और साझा करें. आज हम सब मिलकर उसी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं. आज उनकी कमी हर पल खलती है. उनकी सहनशीलता व सादगी के हम सभी कायल थे. वे हर समस्या का समाधान आसानी से कर देती थीं. उषा किरण ख़ान बनना आसान नहीं, वे अद्वितीय थीं.
Q. अब जब आप आयाम की अध्यक्ष हैं, उषा दीदी के बिना संगठन को कैसे संभाल रही हैं?
Ans – वैसे मैं बता दूं की उषा दीदी की जगह कोई नहीं ले सकता. लेकिन उनके दिये मूल्यों और दिशा-निर्देशों को लेकर हम सभी कार्य कर रहे हैं. निर्णय लेते समय अक्सर लगता है कि दीदी होतीं तो क्या करतीं- और उसी सोच से ही निर्णय लिए जाते हैं. सभी सदस्य बहुत सहयोग कर रहे हैं. हमारा उद्देश्य है कि महिलाओं को साहित्य में एक मजबूत, स्वतंत्र और रचनात्मक मंच मिले. दीदी का सपना था कि महिलाएं सिर्फ पाठक नहीं, लेखिका और विचारशील प्रवक्ता भी बनें. हम और हमारी पूरी टीम उसी दिशा में कार्यरत हैं. विश्वास है, हम सब मिलकर उनकी सोच को साकार करेंगे.