वोटर अधिकार यात्रा का समापन सोमवार को पटना में हुआ. महागठबंधन के नेताओं ने पटना में पैदल मार्च किया और जनसभा में भाषण दिए. इस तरह 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा 16 दिनों तक चली और बिहार के अलग-अलग जिलों में राहुल गांधी-तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के नेता और कार्यकर्ता पहुंचे. यह यात्रा खासकर कांग्रेस के लिए बेहद अहम रही. बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस यात्रा से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश हाई दिख रहा है. वहीं एक संदेश देने का प्रयास भी कांग्रेस ने किया है.
बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में कांग्रेस
वोटर अधिकार यात्रा में यूं तो राहुल गांधी के अलावे तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और वामदलों के नेता भी शामिल रहे. लेकिन कांग्रेसियों के लिए यह यात्रा कुछ अधिक खास रही. कांग्रेस ने वोटर लिस्ट मुद्दे को ढंग से भुनाया और राहुल गांधी लोगों के बीच गए. एनडीए सरकार को घेरने के अलावे बिहार में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करने के उद्देश्य से भी कांग्रेस ने इस यात्रा में पूरी ताकत झोंकी.
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कांग्रेस के लिए यात्रा के क्या हो सकते हैं मायने?
प्रभात खबर के पॉलिटिकल एडिटर मिथिलेश कुमार बताते हैं कि कांग्रेस के लिए इस यात्रा के कई मायने हैं. कांग्रेस नब्बे के पहले वाले उस दौर को फिर से वापस लाना चाहेगी, जब उनका दबदबा बिहार की राजनीति में रहा. 1985 के बाद के चुनावों में कांग्रेस का ग्राफ गिरता गया. अब जब उसे राजद का पिछलग्गु तक कह दिया जाता है, ऐसे में इस यात्रा से कांग्रेस ने अपना शक्ति प्रदर्शन भी किया है.
नब्बे से पहले का दौर और मिथिला की राजनीति
कांग्रेस की यह यात्रा अधिकतर उन क्षेत्रों से गुजरी है जहां नब्बे से पहले उनकी पकड़ मजबूत रही. खासकर मिथिला क्षेत्र में कांग्रेस उस दौर में बेहद मजबूत रही है. दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर की तीस विधानसभा सीटों में विपक्ष को नाम मात्र की सीटें मिल पाती थी. 1985 के विधानसभा चुनाव में जहां मधुबनी जिले की सभी 11 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे. 1990 के चुनाव में कांग्रेस करीब आधी सीटों पर सिमट गयी थी. 2020 के चुनाव में कांग्रेस का खाता तक यहां नहीं खुल सका. वोटर अधिकार यात्रा जब मिथिला क्षेत्र से गुजरी तो राहुल के साथ प्रियंका भी इसमें शामिल हुईं. कभी 1950 के दशक में पंडित जवाहर लाल नेहरू इस इलाके में आये थे.
कांग्रेस की नजर सीट शेयरिंग पर भी होगी
सीट शेयरिंग को लेकर भी राजद और कांग्रेस में खटर-पटर दिखती रही है. सीट बंटवारे का फॉर्मूला जो तय हो, लेकिन कांग्रेस कुछ उन विधानसभा सीटों को भी अपने खाते में लेना जरूर चाहेगी, जो एक दौर में उनका गढ़ होता था. वोटर अधिकार यात्रा में उमड़ी भीड़ एकतरह से शक्ति प्रदर्शन भी है. वहीं पार्टी ने महागठबंधन में यह भी संदेश देने का प्रयास किया गया कि कांग्रेस को हल्के में नहीं लिया जाए.
बिहार में 16 दिनों की यात्रा
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 17 अगस्त को सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत हुई थी. 20 से अधिक जिलों से गुजरते हुए करीब 1300 किलोमीटर तक का सफर इस यात्रा ने तय किया. 1 सितंबर को पटना में इस यात्रा का समापन हुआ.

