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बाढ़ से राज्य में 3265 वर्ग किमी में धान की खेती खतरे में

बिहार में बाढ़ की संभावना प्रबल हो रही है. इसमें जान-माल के साथ खेती बिल्कुल प्रभावित हो जाती है. बाढ़ की स्थिति में भी खेती की क्या संभावनाएं हो सकती हैं, इसके लिए आइसीएआर की ओर से शोध किया गया है.

– राज्य में 27 हजार वर्ग किमी में बाढ़, बिहार में प्रमुख फसल धान को सबसे अधिक नुकसान

– 2461 वर्ग किलोमीटर एरिया में 14 से 53 फीसदी तक धान की खेती को क्षति

मनोज कुमार, पटना

बिहार में बाढ़ की संभावना प्रबल हो रही है. इसमें जान-माल के साथ खेती बिल्कुल प्रभावित हो जाती है. बाढ़ की स्थिति में भी खेती की क्या संभावनाएं हो सकती हैं, इसके लिए आइसीएआर की ओर से शोध किया गया है. कहां नुकसान हो सकता है, इसे भी रेखांकित किया गया है. राज्य में कुल 26 हजार 73 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में बाढ़ आती है. बाढ़ के दौरान बिहार की मुख्य फसल धान को सबसे अधिक नुकसान है. राज्यभर में लगभग 3265 वर्ग किलोमीटर में धान की खेती को सीधे नुकसान है. इसमें भी 2461 वर्ग किलोमीटर एरिया में 14 से 53 फीसदी तक धान की खेती को क्षति है. बाढ़ का 75 फीसदी इलाका उत्तरी बिहार में है. दरभंगा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण और खगड़िया सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्र हैं.

पांच वर्गों में बांटे गये बाढ़ प्रभावित एरिया

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र पांच वर्गों में बांटे गये हैं. 525 स्कवायर किलोमीटर में बाढ़ की गति अति तीव्र, 804 में तीव्र, 2461 में मध्यम तीव्र, 5738 में निम्न तीव्र तथा 16544 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में अति निम्न तीव्रता की बाढ़ आती है. अति तीव्र और तीव्र गति वाले एरिया में बाढ़ की गहराई 1.50 मीटर से अधिक होती है. इस कारण इन क्षेत्रों में धान की खेती की संभावना न के बराबर है. 2461 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र मध्यम गति के बाढ़ जोन में है. इस इलाके में 14 से 53 फीसदी धान की खेती को नुकसान है.

22282 वर्ग किमी में बाढ़ में भी खेती को नुकसान नहीं

निम्न तीव्रता के 5738 तथा अति निम्न के 16544 वर्ग किलोमीटर वाले बाढ़ क्षेत्र में चिंताजनक स्थिति नहीं है. इन दोनों एरिया में धान की खेती को नुकसान नहीं होता है. तीव्र और अति तीव्र वाले बाढ़ प्रभावित एरिया में बागवानी फसल लगायी जा सकती है. मध्यम तीव्र वाले बाढ़ प्रभावित एरिया में मछली पालन हो सकता है.

बाढ़ प्रबंधन में मिलेगी सहायता: निदेशक

आइसीएआर के निदेशक डॉ अनुप दास ने बताया कि यह अध्ययन बिहार में बाढ़ प्रबंधन के कार्य में सहायता प्रदान करेगा. आपदा के दौरान आजीविका की खेती करने की योजना बनायी जा सकेगी.

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Prabhat Khabar News Desk
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