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बिहार में अंतिम संस्कार के लिए भी खरीदना पड़ रहा पानी, यही हाल रहा तो 30 साल बाद पानी को तरसेंगे हम

शिवालिक की पहाड़ियों से निकल चंपारण के 60 फीसदी हिस्से को हरा भरा और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाली कई नदियां मई आते-आते सूख गयी हैं. पिछले सौ साल में यह पहला मौका है जब बारह मास कल-कल बहने वाली ये नदियां मई में सूख गयीं.

बिहार में पिछले साल के मुकाबले इस गर्मी में 24 जिलों का भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है. वहीं, बक्सर, सारण, गोपालगंज और सहरसा में स्थिति थोड़ी सुधरी है. पीएचइडी की रिपोर्ट के मुताबिक 19 पंचायतों में भूजल स्तर की स्थिति गंभीर है. ये पंचायतें कैमूर, जहानाबाद, भागलपुर, मुंगेर, रोहतास, नालंदा और नवादा जिले की हैं. इस कारण इन इलाकों में अधिकारियों की निगरानी बढ़ायी गयी है, ताकि दिक्कत होने पर लोगों तक पानी पहुंचाया जा सके. इस साल अभी से ही राज्य के नौ जिलों में 86 जगहों पर टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तेजी से भू-जल का ही दोहन हो रहा है, उसके कारण आने वाले दो-तीन दशकों में स्थिति इतनी भयावह हो सकती है, जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.

इस्लामपुर की सकरी पंचायत में 70 फुट नीचे गया पानी

इस्लामपुर प्रखंड की सकरी पंचायत में जलस्तर 70 फुट से नीचे चला गया है. इस पंचायत के एक सौ से अधिक चापाकल फेल हो चुके हैं. 30 घरों की आबादी वाले मखदूमपर पइन गांव के लोग दूसरी पंचायत से पानी ला रहे हैं. खेती किसानी के लिए की ग यी समरसेबल बोरिंग द्वारा पानी खींचे जाने से भूगर्भीय जलस्तर की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. वर्तमान समय में जिले की एक सौ पंचायतों में पानी 40 फुट से नीचे मिल रहा है.

अंतिम संस्कार के लिए खरीदना पड़ रहा पानी

शिवालिक की पहाड़ियों से निकल चंपारण के 60 फीसदी हिस्से को हरा भरा और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाली कई नदियां मई आते-आते सूख गयी हैं. पिछले सौ साल में यह पहला मौका है जब बारह मास कल-कल बहने वाली ये नदियां मई में सूख गयीं. आज इन नदियों में बर्बादी के रेत उड़ रहे हैं. यहां हड़बोड़ा, पंडई, मनियारी, बलोर, करताहा और ओरिया समेत दर्जनभर पहाड़ी नदियां हैं. इन नदियों के बारे में ये धारणा रही हैं कि ये कभी सूखती नहीं. नदियों के किनारे अंतिम संस्कार किये जाते थे. लोग नदियों के पानी से मुंडन कराते थे. अब चापाकल से पानी भर कर लाना पड़ रहा है या फिर जार वाला पानी खरीदना पड़ रहा है. यहीं नहीं जिन शवों को नदी के किनारे जलाया जाता रहा है, वह अब बीच नदी के पेट में जलाये जा रहे हैं.

बारहमासी नदियां मौसमी नदियां बनती जा रही

टीपी वर्मा कॉलेज के भूगोल विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अपर्णा झा ने बताया कि भीषण गर्मी के बीच बढ़ती हुई जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण नदियां और कुएं सूख रहे हैं. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण बारहमासी नदियां मौसमी नदियां बनती जा रही हैं.

बढ़ती आबादी, भूजल पर बढ़ती निर्भरता ने पैदा किया जल संकट

पटना विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अतुल आदित्य पांडेय ने बताया कि निश्चित रूप से भू-जल संकट बढ़ रहा है. खेती में भू जल पर बढ़ रही निर्भरता ने भू-जल संकट को और गहरा दिया है. विकास की तमाम बड़ी परियोजनाओं में भी भू-जल का ही दोहन हो रहा है. आने वाले समय में भू जल सुधार की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो आने दो-तीन दशकों में स्थिति बुरी से बुरी हो सकती है. इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. लोगों और सरकार को चाहिए कि भूजल दोहन को नियंत्रित करने की प्रभावी पहल हो. सतही जल रोक कर उसकी उपयोगिता बढ़ाएं.

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नवादा में आठ फुट और पटना में दो फुट नीचे गये पानी

  • नवादा 8”1″

  • जमुई 7”4″

  • अरवल 6”

  • नालंदा 6”7″

  • भागलपुर 5”7″

  • औरंगाबाद 5”6″

  • शेखपुरा 5”4″

  • गया 5”3″

  • मधुबनी 5″

  • मुजफ्फरपुर 4”1″

  • समस्तीपुर 3”8″

  • मुंगेर 3”6″

  • वैशाली 2”10″

  • बेगूसराय 2”5″

  • पटना 2”4″

  • भोजपुर 2”2″

  • रोहतास 2”

  • कैमूर 2”

  • बांका 1”10″

  • लखीसराय 1”10″

  • जहानाबाद 1”10″

  • दरभंगा 1”

  • सीवान 1”

  • सीतामढ़ी 2″

  • नोट : 2022 की तुलना में इस साल 30 अप्रैल तक जल स्तर में कमी के आंकड़े पीएचइडी की रिपोर्ट के अनुसार. जल स्तर में कमी फुट इंच में

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