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कोरोना से उबरे लोगों में जान जाने का खतरा कम, जानें किन मरीजों को हो रहा अधिक नुकसान

जो लोग एक बार कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं या टीका ले चुके हैं, उन्हें दोबारा वायरस की चपेट में आने पर भी जान जाने का खतरा कम है. ऐसे लोगों के शरीर में बनी एंटीबॉडी उनकी रक्षा करती है. हालांकि यह एंटीबाडी कितने दिनों तक बरकार रहेगी, इसको लेकर डॉक्टर अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं. विशेषज्ञ इतना जरूर कहते हैं कि दूसरी लहर में वायरस की चपेट में आने वाले लोगों ने प्राकृतिक टीका हासिल कर लिया है. ऐसे में अगर वह टीका लगवा लेंगे, तो उनका कवच और अधिक मजबूत हो जायेगा. इसको लेकर डॉक्टर सभी लोगों को टीका लगवाने की अपील कर रहे हैं.

आनंद तिवारी, पटना : जो लोग एक बार कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं या टीका ले चुके हैं, उन्हें दोबारा वायरस की चपेट में आने पर भी जान जाने का खतरा कम है. ऐसे लोगों के शरीर में बनी एंटीबॉडी उनकी रक्षा करती है. हालांकि यह एंटीबाडी कितने दिनों तक बरकार रहेगी, इसको लेकर डॉक्टर अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं. विशेषज्ञ इतना जरूर कहते हैं कि दूसरी लहर में वायरस की चपेट में आने वाले लोगों ने प्राकृतिक टीका हासिल कर लिया है. ऐसे में अगर वह टीका लगवा लेंगे, तो उनका कवच और अधिक मजबूत हो जायेगा. इसको लेकर डॉक्टर सभी लोगों को टीका लगवाने की अपील कर रहे हैं.

कोरोना से मरने वाले 80 प्रतिशत मरीज पहली बार संक्रमित :

शहर के पीएमसीएच, एनएमसीएच, आइजीआइएमएस और पटना एम्स आदि अस्पतालों में कोरोना से मरने वाले व संक्रमित लोगों के डाटा का रोजाना विश्लेषण किया जा रहा है. इसमें चारों मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टरों ने पाया है कि कोविड से दम तोडने वालों में ऐसे 80 प्रतिशत मरीज मिले हैं, जो पहली बार संक्रमित हुए थे और उन्होंने टीकाकरण नहीं कराया था. जबकि 20 प्रतिशत मरने वाले लोग पहले अन्य बीमारियों से ग्रसित थे. हालांकि इनमें से कुछ लोगों ने टीके का दोनों डोज लगवाया था. इससे एक बात साफ होती है कि जिन लोगों ने टीकाकरएण कराया है अथवा पहले से वायरस की चपेट में आ चुके हैं, उन पर म्यूटेशन के बाद भी वायरस का असर कम हुआ है. यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. हालांकि इस पर विस्तार से शोध के लिए अलग-अलग प्रोजेक्ट तैयार किये जायेंगे.

एक बार स्ट्रेन बन जाने के बाद खतरा बेहद कम :

पटना एम्स के कोविड वार्ड के नोडल पदाधिकारी डॉ संजीव कुमार ने बताया कि एक बार शरीर में एंटीबॉडी बन जाने पर वायरस के नये स्ट्रेन का असर कम देखने को मिल रहा है. जो लोग टीकाकरण करा लिए हैं या एक बार वायरस की चपेट में आ चुके हैं उनके संक्रमित होने पर ज्यादा तकलीफ नहीं हो रही है. इसलिए हम लोग सभी लोगों को टीकाकरण लगाने की बार-बार अपील कर रहे हैं. टीकाकरण कितने साल तक काम करेगा इसका भी अध्ययन देश स्तर पर वैज्ञानिकों की ओर से किया जा रहा है.

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एंटीबॉडी होने पर राहत

पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ आइएस ठाकुर ने बताया कि रैंडम जांच में यह देखा गया है कि जो लोग पहले वायरस की चपेट में आये थे, वे नये स्ट्रेन से संक्रमित हुए पर अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा. वहीं, जिन लोगों के अंदर वैक्सीन लगवाने से पहले एंटीबॉडी मौजूद थी, उनके अंदर वैक्सीन लगवाने के बाद एंटीबॉडी बनने में तेजी आयी है. जबकि वैक्सीन लगवाने से पहले जिनके बॉडी में एंटीबॉडीज नहीं थी, उनके शरीर में पहली डोज लगने के 14वें दिन से एंटीबॉडी बननी शुरू हो गयी.

बाहर निकलें तो डबल मास्क पहनें

आइजीआइएमएस के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने कहा कि अभी तक किसी भी वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने 100 फीसदी एफिकेसी का डाटा नहीं दिया है. इसलिए दोनों वैक्सीन लगवाने के बाद भी माइल्ड कोविड-19 या बिना लक्षण वाले कोरोना होने की आशंका रहती है. एंटीबॉडी भी अलग-अलग लोगों के शरीर में अलग-अलग समय पर विकसित होने की जानकारी मिल रही है. ऐसे में टीका लगवाने के बाद भी मास्क का जरूर प्रयोग करना चाहिए. अगर घर से बाहर निकल रहे हैं, तो बेहतर होगा डबल मास्क पहन कर जाएं.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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