शशिभूषण कुंवर, पटना स्वास्थ्य विभाग बिहार फार्मास्युटिकल प्रोमोशन पॉलिसी 2025 की तैयारी में जुट गया है. इस नीति के तैयार होने के बाद राज्य सिर्फ दवाओं का उपभोग करनेवाला राज्य नहीं, बल्कि दवा-उपकरणों का उत्पादन करनेवाले राज्य की श्रेणी में आ जायेगा. नीति के अमल में आने से दवा मामले में आत्मनिर्भर बनाने की नयी कहानी आरंभ हो जायेगी. वर्षों से जिन दवाओं और मेडिकल उपकरणों के लिए बिहार को दिल्ली, गुजरात या महाराष्ट्र की ओर देखना पड़ता था, अब वो अपनी ही जमीन पर तैयार होंगे. जानकारों का कहना है कि इस नीति के अमल में आने के बाद फार्मा उद्योग को सरकार से विशेष मदद मिलेगी, जिसमें जमीन, बिजली, लाइसेंस, टैक्स में रियायत. बदले में राज्य को मिलेगा नया औद्योगिक चेहरा और युवाओं के लिए हजारों नौकरियां पैदा होंगी , जिसमें इंजीनियर, केमिस्ट, लैब टेक्नीशियन, रिसर्च स्कॉलर सबको नये अवसर का लाभ मिलेगा. दशकों पहले बिहार के मुजफ्फरपुर के बेला क्षेत्र में आडीपीएल की बड़ी दवा कंपनी होती थी, जहां से बड़े पैमाने पर दवाओं का उत्पाद कर निर्यात किया जाता था. जानकारों का कहना है कि जब दवाएं यहीं बनेंगी, तो उन पर आनेवाली लागत घटेगी और इसका सीधा फायदा आम लोगों को मिलेगा. ग्रामीण इलाकों तक भी सस्ती और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं पहुंचेंगी. नयी नीति रिसर्च और डेवलपमेंट को भी प्राथमिकता देगी. विश्वविद्यालयों, निजी कंपनियों और स्टार्टअप को सहयोग देकर बिहार को फार्मा रिसर्च का केंद्र बनाने का सपना देखेंगे. नीति का उद्देश्य राज्य में निजी निवेश को आकर्षित करना है. फार्मा उद्योग से जुड़े उद्यमियों और निवेशकों को कई प्रोत्साहन योजनाएं, टैक्स छूट और आधारभूत संरचना सुविधाएं मिलेगा. फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान का कार्य पहले से ही राज्य में चल रहा है. राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (एनआइपीइआर हाजीपुर एक प्रमुख शैक्षणिक संस्था है.
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