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Bihar News: व्हीलचेयर से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक,मुजफ्फरपुर की ज्योति सिंहा बनीं पर्पल एंबेसडर 2025

Bihar News: जब पैरों ने साथ छोड़ दिया, तो उन्होंने सपनों को पंख दे दिए—मुजफ्फरपुर की ज्योति सिंहा अब व्हीलचेयर से भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच तक ले जा रही हैं.

Bihar News: मुजफ्फरपुर की गलियों से उठी एक ऐसी आवाज़, जिसने दुनिया को दिखा दिया कि शरीर की सीमाएं आत्मा के उड़ान को रोक नहीं सकतीं. मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी लाइलाज बीमारी से जूझते हुए भी ज्योति सिंहा ने शिक्षा और कला में अपनी एक अलग पहचान बनाई—और अब वे भारत की ‘पर्पल एंबेसडर 2025’ बनकर गोवा में अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिरंगा लहराने जा रही हैं.

कमजोरी नहीं, ताकत की पहचान बनाना चुना

आमतौर पर व्हीलचेयर पर बैठे किसी व्यक्ति को देखकर लोग उसके प्रति सहानुभूति जताते हैं. मन में सवाल उठता है—उसके जीवन में कितनी मुश्किलें होंगी? लेकिन ज्योति सिंहा ने यह तय कर लिया था कि वे दुनिया के सामने अपनी पहचान कमजोरी से नहीं, बल्कि ताकत से बनाएंगी.

वे मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं—एक ऐसी बीमारी जिसमें मांसपेशियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं. इसके बावजूद उन्होंने शिक्षा, कला और सामाजिक योगदान के क्षेत्र में ऐसे मुकाम हासिल किए, जो पूरी तरह से मिसाल हैं.

पर्पल एंबेसडर 2025 का सम्मान

दिव्यांगजन अधिकारिता विभाग ने ज्योति सिंहा को भारत की 21 पर्पल एंबेसडर में शामिल किया है. इस चयन का मतलब है कि वे देश का प्रतिनिधित्व करते हुए 9 से 21 अक्टूबर 2025 के बीच गोवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पर्पल फेस्ट में शामिल होंगी.

यह कार्यक्रम केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि विविधता, सशक्तिकरण और समावेशिता का प्रतीक है—जहां संगीत, नृत्य, कला और संस्कृति के जरिये दुनिया को यह संदेश दिया जाता है कि प्रतिभा और जज्बा किसी भी शारीरिक सीमा से बड़ा होता है.

ज्योति ने इस सम्मान पर कहा—

“मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं इस खुशी को कैसे बयां करूं. मेरे माता-पिता, गुरुजन और भाई—यही मेरी असली ताकत हैं. अगर उन्होंने मेरा साथ न दिया होता, तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती. यह सम्मान मैं अपने पूरे गांव और समाज को समर्पित करती हूं.”

बचपन से जंग की शुरुआत

ज्योति का जीवन आसान नहीं था. 2002 में, जब वे सिर्फ एक बच्ची थीं, तभी उनके शरीर में कमजोरी के लक्षण दिखने लगे. जांच के बाद पता चला कि वे मस्कुलर डिस्ट्रोफी से पीड़ित हैं.

यह एक लाइलाज बीमारी है, जो धीरे-धीरे शरीर के निचले हिस्से को निष्क्रिय कर देती है. 2005 में उनके जुड़वां भाई भी इसी बीमारी की चपेट में आ गए। समय के साथ ज्योति की कमर से नीचे का हिस्सा पूरी तरह से काम करना बंद कर गया और वे दूसरों पर निर्भर हो गईं.

परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी. फिर भी ज्योति ने पढ़ाई छोड़ने का विकल्प कभी नहीं चुना. उन्होंने मैट्रिक अच्छे अंकों से पास किया और शिक्षा में आगे बढ़ती रहीं. 2016 में इंटरमीडिएट परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास करने के बाद उन्होंने स्नातक और एमए की पढ़ाई प्रथम श्रेणी से पूरी की. वर्तमान में वे हिंदी विषय में पीएचडी कर रही हैं. यह सब उन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर, लेकिन सिर ऊंचा रखकर किया.

एक किताब से बदली जिंदगी

साल 2014 में ज्योति के हाथ मिथिला पेंटिंग पर आधारित कृष्ण कुमार कश्यप की एक किताब लगी. यह उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था. उन्होंने खुद से पेंटिंग सीखना शुरू किया, लेकिन जल्द ही महसूस हुआ कि मार्गदर्शन के बिना वे अपनी कला को पूरी तरह निखार नहीं पाएंगी.

जब उन्होंने कृष्ण कुमार कश्यप से संपर्क किया, तो वे न केवल उनसे मिलने आए, बल्कि हर हफ्ते दरभंगा से चंगेल गांव आकर उन्हें मधुबनी पेंटिंग सिखाने लगे. लगातार अभ्यास और मेहनत के बाद ज्योति ने मधुबनी पेंटिंग में महारत हासिल की. उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का प्रदर्शन किया और कई पुरस्कार अपने नाम किए. उनकी पेंटिंग्स सिर्फ रंग और डिजाइन का मेल नहीं, बल्कि जीवन के संघर्ष और उम्मीद की कहानी कहती हैं.

सिर्फ खुद के लिए नहीं, समाज के लिए भी

ज्योति ने अपनी कला को केवल व्यक्तिगत उपलब्धि तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने अपने गांव के गरीब मजदूर परिवारों के 25-30 बच्चों को निःशुल्क मधुबनी पेंटिंग सिखाना शुरू किया. उनका उद्देश्य है कि ये बच्चे हुनरमंद बनकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारें और गरीबी की जंजीरें तोड़ें.

“जब आप खुद दर्द से गुजरते हैं, तो दूसरों का दर्द भी बेहतर समझते हैं.” —ज्योति सिंहा

आज ज्योति सिंहा उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो किसी कारणवश खुद को असमर्थ मान लेते हैं. उन्होंने साबित किया है कि शारीरिक कमजोरी, अगर इरादे मजबूत हों, तो सफलता की राह में रुकावट नहीं बन सकती.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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