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Bihar News: साइकिल क्रांति से बदली बेटियों की किस्मत,लड़कियां अब खुद ले रहीं पढ़ाई, कैरियर और शादी के फैसले

Bihar News: साल 2007 में शुरू हुई एक सरकारी योजना बिहार की लाखों लड़कियों की जिंदगी में ऐसी हवा लेकर आई, जिसने न सिर्फ उनके स्कूल जाने का रास्ता आसान किया, बल्कि जिंदगी से उम्मीदें भी बदल दीं.

Bihar News: मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना ने बिहार की बेटियों के भविष्य को जिस तेजी से मोड़ा है, उसके आंकड़े अब साफ़ बताते हैं कि बदलाव सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं रहा. साइकिल मिलने से लड़कियों की पढ़ाई बढ़ी, लेकिन पढ़ाई ने उनके सपनों की उड़ान को कई गुना तेज कर दिया. वे अब न सिर्फ पसंद की नौकरी चुन रही हैं, बल्कि अपनी शादी के फैसले भी खुद ले रही हैं. सामाजिक सोच पर भी इसका असर साफ दिखाई दे रहा है.

97 लाख से ज्यादा लड़कियों तक पहुंची साइकिल, बढ़ीं उम्मीदें

वर्ष 2007 से 2024 तक बिहार सरकार ने कुल 97,94,455 छात्राओं को साइकिल उपलब्ध कराई. इससे लड़कियों की स्कूल पहुंच बढ़ी और पढ़ाई में उनका प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ. इसका सबसे बड़ा असर 2025 की मैट्रिक परीक्षा में दिखा, जहां 818122 लड़कियां परीक्षा में शामिल हुईं, जो लड़कों से 41376 ज्यादा थीं.

सर्वे बताते हैं कि जिन लड़कियों के पास साइकिल थी, उनके खेतों में मजदूरी या घरेलू काम में उलझने की संभावना कम रही, क्योंकि वे ज्यादा समय पढ़ाई में दे रही थीं. शिक्षा ने उनके सपनों का दायरा बढ़ाया है, वे अब सिर्फ पास होने या इंटर तक पढ़ने का लक्ष्य नहीं रखतीं, बल्कि नौकरी, करियर और आत्मनिर्भरता को लेकर गंभीर हो चुकी हैं.

शादियों में देरी और सोच में बदलाव—सर्वे में सामने आया बड़ा ट्रेंड

IGC के सर्वे के अनुसार, साइकिल पाने वाली लड़कियां कम उम्र में शादी करने से बच रही हैं. पढ़ाई के कारण 16–18 वर्ष के बीच उनकी शादी की संभावना कम हुई है. कम उम्र की शादी से जुड़े स्वास्थ्य और सामाजिक जोखिमों के बीच यह बदलाव काफी अहम है.

सर्वे में यह भी सामने आया कि साइकिल पाने वाली लड़की के 10वीं पास करने की संभावना 27.5% ज्यादा है. यह न सिर्फ शिक्षा के स्तर पर सुधार दिखाता है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण और परिवारिक माहौल में भी सकारात्मक परिवर्तन की ओर संकेत करता है.

अब लड़कियों की नई मांग-साइकिल तो मिली,अब नौकरी चाहिए

विशेषज्ञ मानते हैं कि साइकिल योजना ने लड़कियों को स्कूल पहुंचा दिया है, लेकिन अब अगला कदम जरूरी है. बेटियां पढ़ रही हैं, सपने देख रही हैं और बेहतर जीवन चाहती हैं, इसलिए अब राज्य को ऐसी नीतियों की जरूरत है जो रोजगार के अवसर बढ़ा सकें.

सरकार ने उन्हें मजबूत बनाया है—अब उन्हें आजाद होने और आर्थिक रूप से सशक्त होने के रास्ते देने की जरूरत है. शिक्षा से बढ़ी उम्मीदों को नौकरी नीति और कौशल आधारित कार्यक्रमों की जरूरत है.

सक्सेस स्टोरी- मोनालिसा और संतोष की कहानी

लखीसराय की मोनालिसा, जिसने कक्षा 9 में साइकिल योजना के तहत राशि पाई थीं, आज एक प्राइवेट संस्थान में काम कर रही हैं. वे खुले तौर पर कहती हैं, “मैं अपनी नौकरी, करियर और शादी के फैसले खुद ले सकती हूं.”

संतोष, जिन्हें स्कूल जाने में साइकिल ने बड़ी मदद दी, बताते हैं,“स्कूल घर से दूर था. साइकिल से पढ़ाई आसान हो गई. आज मैं एक अच्छी जगह नौकरी कर रहा हूं. अगर साइकिल नहीं मिलती, शायद मैं इतनी पढ़ाई न कर पाता.”

बिहार में लड़कियों की शिक्षा का नया अध्याय

साइकिल योजना ने साबित कर दिया है कि सही समय पर किया गया सही निवेश सामाजिक ढांचे को भीतर से बदल सकता है. आंकड़े बताते हैं कि यह योजना सिर्फ एक परिवहन सुविधा नहीं थी, बल्कि बिहार की बेटियों के सपनों को पंख देने वाली ऐतिहासिक पहल बन चुकी है.

अब जरूरत इस बदलाव को आगे बढ़ाने की है, ताकि पढ़ाई के बाद वे सुरक्षित, सम्मानजनक और अच्छी नौकरियों तक पहुंच सकें.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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