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बिहार का इतिहास समृद्ध रहा है, जरूरत है रिसर्च की : हरजोत

बिहार संग्रहालय और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के पुरातत्व निदेशालय की ओर से दक्षिण एशियाई पुरातत्व समिति (सोसा) के आठवें अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन का उद्घाटन ज्ञान भवन में हुआ. मौके पर चार किताबों का भी विमोचन किया गया.

पटना. बिहार संग्रहालय और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के पुरातत्व निदेशालय की ओर से दक्षिण एशियाई पुरातत्व समिति (सोसा) के आठवें अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन का उद्घाटन ज्ञान भवन में हुआ. मौके पर चार किताबों का भी विमोचन किया गया. इस अवसर पर बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि इस आयोजन का हिस्सा बनकर हमें खुशी हुई है. हमारे संग्रहालय का स्टाइल स्टोरी टेलिंग है. यही वजह है कि अन्य संग्रहालयों के मुकाबले यहां पर बिना गाइड के हर सेक्शन को विजिट कर इसके महत्व को समझ सकते हैं. इस मौके पर बिहार के आर्कियोलॉजी पर एक खास सत्र का भी आयोजन किया जायेगा. वहीं कार्यक्रम के आखिरी दिन पूरी टीम के लिए राजगीर की यात्रा का आयोजन किया जायेगा, जिसकी अध्यक्षता नालंदा यूनिवर्सिटी के वीसी करेंगे. कला संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर बम्हरा ने बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से पुरातत्व और अन्य क्षेत्रों के बीच अंतर को पाटने के महत्व को व्यक्त किया. उन्होंने इस पर दुख व्यक्त किया कि जब से उन्होंने इस विभाग को संभाला, तब से अब तक राज्य या देश के किसी भी विवि या कॉलेज ने रिसर्च के लिए प्रयास नहींं किया है. हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ जर्मनी की ओर से इस तरह का प्रस्ताव आया है. नयी शिक्षा नीति का जिक्र किया जिससे पुरातत्व की पढ़ाई करने वाले को दृष्टिकोण मिलेगा. साइट्स का संरक्षण जरूरी है. रिसर्च में बेहतर करने के लिए सरकारी संस्थानों और विवि के बीच के गैप को कम करना होगा. प्राइमरी रिसर्च को लेकर सोचने की जरूरत है कि आज के समय जो भी रिसर्च है, वह सभी सेकेंड्री है. रिसर्च पर कार्य करें. प्रदर्शनी के साथ-साथ विभिन्न लेक्चर सीरीज का हुआ आयोजन बिहार म्यूजियम में स्पेशल एग्जीबिशन के तहत राखीगढ़ी में हुए कार्यों की फोटो प्रदर्शनी लगायी गयी थी. इस प्रदर्शनी में हड़प्पा, जो हरियाणा के हिसार जिले में मौजूद है, उस पर प्रदर्शनी लगायी गयी. इन तस्वीरों में किस तरह से खुदाई हुई, खुदाई के दौरान वस्तुएं, आभूषण, बर्तन मिले इसे तस्वीरों के माध्यम से दर्शाया गया. साथ ही खुदाई के बाद किस तरह से इन्हें संरक्षित किया गया, उसके बारे में भी जानकारी दी गयी. महासम्मेलन में विभिन्न विषयों पर युवा शोधार्थियों द्वारा 15 पोस्टरों की प्रस्तुति दी गयी. महासम्मेलन में कुल पांच सेशन का आयोजन हुआ, जिसमें बिहार पर एक खास सेशन का आयोजन किया गया. कुल 8 शोधकर्ताओं ने विभिन्न विषयों पर अपनी बात रखी. धन्यवाद ज्ञापन अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने किया. वक्ताओं ने रखी अपनी बातें नालंदा यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो अभय कुमार सिंह ने कहा कि यहां मौजूद देश के अलग-अलग हिस्सों से भाग लेने के लिए आये आप स्कॉलर्स और रिसर्चर का आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में सबसे अहम योगदान रहा है. खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से हमें पता चला कि हमारा इतिहास कितना समृद्ध है. सोसा के महानिदेशक प्रो वसंत शिंदे ने सोसा की 2005 में हुए स्थापना और इसके महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि बिहार का योगदान आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में हमेशा से अहम रहा है. अगला महासम्मेलन साउथ कोरिया या फिर अन्य देश में आयोजित किया जायेगा. प्रो आलोक त्रिपाठी अपर महानिदेशक, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कहा कि भारत में पुरातत्व कई सदी पुराना है. आज जो शोधार्थी और हमलोग जो कार्य कर रहे हैं, उसमें परसेप्शन का अंतर है. शोध करते समय हमारा दृष्टिकोण एनालिसिस, इंटरप्रेटेशन के लिए बेहद जरूरी है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर हर राज्य में उत्खनन का कार्य होगा, जिससे हम इतिहास को जान सकेंगे. जनता तक सही जानकारी पहुंचे, इसके लिए मासिक पत्रिका प्रकाशित हो. डॉ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अपर महानिदेशक संजय कुमार मंजुल ने कहा कि आज के बिहार में जितना पोटेंशियल है उतना काम नहीं हो पाया है, इसे स्वीकार करने की जरूरत है.

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