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Bihar Election: न दिखता न बोलता है, फिर भी बढ़ रहा है बिहार में इसका जनाधार, नाम सुनते ही छूट रहे नेताओं के पसीने

Bihar Election: 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव सिर्फ दलों और उम्मदवारों के बीच नहीं, बल्कि मतदाताओं और पूरे राजनीतिक तंत्र के बीच भी एक बड़ा संदेश बन कर आया था. इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि मतदाताओं का एक बड़ा तबका खुलकर बोला-‘इनमें से कोई नही.’ नोटा का बटन दबाकर मतदाताओं ने यह साफ कर दिया था कि अगर उन्हें सही उम्मदवार नहीं दिखता है, तो वे वोट तो देंगे, लेकिन किसी को नहीं…28 सीटों पर जीत-हार का अंतर नोटा पर पड़ वोट से भी कम था. इसका सीधा मतलब यह है कि अगर नोटा पर वोट न पड़ होते, तो कई सीटों के नतीजे पलट सकते थे.

Bihar Election: राजदेव पांडेय, पटना. नोटा की सबसे बड़ी चोट उन्ही सीटों पर लगी, जहां दिग्गज उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. कल्याणपुर, परिहार, त्रिवेणीगंज, रानीगंज, प्राणपुर, महिषी, दरभंगा ग्रामीण, सकरा, कुरहनी, भोरे, बरहरिया, अमरपुर, मुंगेर, बरबीघा, हिलसा, डेहरी और चकाई. इन सीटों पर नोटा ने सीधे-सीधे चुनावी गणित बिगाड़ दिया. हिलसा में हार-जीत का अंतर मात्र 12 वोट का था, जबकि नोटा को 1022 वोट मिले थे.

नोटा को मिले थे सात लाख से ज्यादा वोट

पिछले चुनाव का पूरा आंकड़ा देखे, तो नोटा को सभी 243 सीटो पर कुल मिलाकर सात लाख से ज्यादा वोट मिले थे. कई जगहों पर यह आंकड़ा इतना बड़ा था कि उम्मीदवारों के चेहरो का रंग उड़ गया. सबसे बड़ा झटका भोरे और मटिहानी मे लगा, जहां नोटा को कमशः 8010 और 6733 वोट मिले. ये आंकड़े अपने आप में बताते है कि मतदाता कितने नाराज थे.

युवाओं ने सबसे ज्यादा पसंद किया

युवाओं और पहली बार वोट डालने वालों ने नोटा को गुस्सा दिखाने का सबसे आसान तरीका माना. यह वोट बैक अब राजनीतिक दलों के लिए सिर दर्द बन चुका है. यही वजह है कि इस बार हर पार्टी और प्रत्याशी की नजर इस बात पर होगी कि नाराज मतदाता को कैसे अपने पाले में लाया जाए, वर्ना 2025 में भी नोटा कई नेताओं का खेल बिगाड़ सकता हैं.

नोटा की ताकत को कुछ इस प्रकार समझे

देश में पिछले दो विधानसभा चुनावों में नोटा की स्थिति कुछ इस पकार रही है. वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा पर 947279 वोट पड़ थे. यह कुल वोट का 2.48 फीसदी है. नोटा ने कई जगहों पर स्वतंत्र प्रत्याशियों को अच्छा खासा आइना दिखाया है. उदाहरण के लिए 15 विधानसभा क्षेत्रों में नोटा तीसरे स्थान पर रहा. इनमें बेतिया, मधुबन, सीतामढ़ी, बिस्फी, राजनगर,रानीगंज, बनमंखी, कोरहा, जाले,भोरे, दरौली, बख्तियारपुर, पटना साहिब, गया टाउन और हिसुआ शामिल है. इससे समझा जा सकता है कि नोटा ने चुनाव लड़ रहे तमाम मान्यता प्राप्त दलों को हाशिये पर छोड़ दिया था.

ये विधानसभा क्षेत्र है

रामनगर, लौरिया, हरसिद्धि, कल्याणपुर (16), पिपरा, मोतिहारी, ढाका, बथनहा, रुन्नी सैदपुर, त्रिवेणीगंज, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर, मनिहारी, सिंघेशर, दरभंगा ग्रामीण, केवटी, सकरा, बैकंठपुर, कोचाइकोट, हथुआ, दरौधा, गरखा, परसा, राजापाकर, राघोपुर, मनहार, कल्याणपुर (31), सरायरंजन, रोसेरा, मटिहानी, बिहपुर, कहलगांव,अमरपुर, धुरैया, कटोरिया, मुंगेर, मोकामा, बांकीपुर, कुम्हरार, दानापुर, संदेश, बरहरा, अगियांव, रामगढ़, मोहनियां, घोसी, इमामगंज और गोविंदपुर.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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