Bihar Election 2025: पहले चरण की 121 सीटों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि शुक्रवार को समाप्त हो चुकी है, लेकिन टिकट बंटवारे से उठी नाराजगी शांत नहीं हुई है. भाजपा से लेकर जदयू, राजद और कांग्रेस — हर दल में असंतुष्ट नेताओं की लंबी कतार खड़ी हो गई है. कई दिग्गज नेताओं ने निर्दलीय मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है, तो कुछ ने सीधे-सीधे पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. अपनी ही पार्टी से नाराज नेताओं की यह फौज चुनावी समीकरणों को नया मोड़ देने लगी है.
भाजपा में टिकट कटने से मचा घमासान
एनडीए में भाजपा ने इस बार कई विधायकों के टिकट काटे हैं, जिससे बगावत खुलकर सामने आ गई है. पार्टी ने 17 विधायकों को दोबारा मौका नहीं दिया, जिसके बाद कई नेताओं ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सबसे ज्यादा विरोध औराई के विधायक व पूर्व मंत्री राम सूरत राय की ओर से देखने को मिला. अलीनगर से विधायक मिश्रीलाल यादव ने तो टिकट कटते ही पार्टी छोड़ दी. वहां से भाजपा ने मैथिली ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है.
भागलपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे और प्रशांत विक्रम ने निर्दलीय लड़ने की घोषणा कर दी है. छपरा की पूर्व मेयर राखी गुप्ता ने भी बगावती रुख अख्तियार कर लिया है. गोपालगंज की विधायक कुसुम देवी, महाराजगंज के भाजपा एमएलसी सच्चिदानंद राय, बरौली के विधायक रामप्रवेश राय और पारू के विधायक अशोक सिंह ने भी पार्टी लाइन से हटकर मैदान में उतरने का संकेत दिया है. इन बागियों की चुनौती भाजपा के लिए पहले चरण में बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है.
जदयू में पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने ठोकी ताल
एनडीए की सहयोगी जदयू को 101 सीटें मिली हैं. उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही पार्टी के भीतर असंतोष फूट पड़ा. कई वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, लेकिन सूची में नाम न होने से बगावती तेवर तेज हो गए हैं.
पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह और शैलेश कुमार, विधायक गोपाल मंडल व सुदर्शन कुमार, पूर्व विधायक खुर्शीद आलम और वरिष्ठ नेत्री आसमा परवीन ने पार्टी से नाता तोड़कर निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया है. आसमा परवीन ने महुआ से नामांकन भी कर दिया है. जय कुमार सिंह की सीट दिनारा रोलोमो कोटे में चली गई है, वहीं बाकी नेताओं के टिकट सीधे काट दिए गए.
गोपाल मंडल ने कहा है कि अगर वे निर्दलीय जीतते हैं तो जदयू का ही समर्थन करेंगे—जो यह दर्शाता है कि बगावत पूरी तरह टूट में नहीं बदली है, लेकिन सियासी समीकरणों को प्रभावित करने की क्षमता जरूर रखती है.
राजद में भी असंतोष की आग
महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद में भी टिकट वितरण को लेकर बगावत खुलकर सामने आई है. सीतामढ़ी में पूर्व मंत्री रंजू गीता की नाराजगी चरम पर है और वह निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार हैं. बड़हरा सीट से टिकट नहीं मिलने पर पूर्व विधायक सरोज यादव ने पार्टी नेतृत्व पर तीखा हमला बोला है. लालगंज में टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस और राजद के बीच टकराव की स्थिति बन गई है.
मधेपुरा में समाजवादी नेता शरद यादव के पुत्र शांतनु यादव को टिकट नहीं मिलने से सियासत और गरमा गई है. शांतनु ने सोशल मीडिया पर खुलकर लिखा कि उनके खिलाफ राजनीतिक षड्यंत्र हुआ है. उनकी बहन सुभाषिनी यादव ने तेजस्वी यादव को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि “जो अपने खून के नहीं हुए, वो दूसरों के क्या होंगे.” इस बयान से साफ है कि पारिवारिक नाराजगी अब सार्वजनिक सियासी लड़ाई में बदल चुकी है.
कांग्रेस में भी बगावत, पुराने नेताओं को किनारे
कांग्रेस में टिकट वितरण आखिरी समय तक अधर में रहा. पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने से कुछ घंटे पहले पार्टी ने 48 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसमें तीन विधायकों के टिकट काटे गए. दरभंगा के जाले से राजद नेता ऋषि मिश्रा को टिकट दिया गया है, जबकि कई पुराने नेता टिकट की आस लगाए बैठे रह गए. बांकीपुर सीट पर भी आखिरी समय में उम्मीदवार बदले जाने से नाराजगी फूट पड़ी है.
पहले चरण में नामांकन खत्म होते ही बागियों की इस ‘नई फौज’ ने बिहार के राजनीतिक समीकरणों को झकझोर दिया है. भाजपा और जदयू जहां एनडीए में अंदरूनी बगावत झेल रहे हैं, वहीं महागठबंधन में भी राजद और कांग्रेस में खींचतान तेज हो गई है. कई सीटों पर बागियों की मौजूदगी सीधी लड़ाई को त्रिकोणीय बना सकती है.

