संवाददाता, पटना
राज्य में पीले बालू की बंदोबस्ती और उससे खनन तो रहा है, लेकिन सफेद बालू घाटों की नीलामी में लोग रुचि नहीं दिखा रहे हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि सफेद बालू की बंदोबस्ती की दर पीला बालू के लगभग बराबर है. साधारण मिट्टी की तुलना में सफेद बालू की स्वामित्व की दर अधिक है. साथ ही सफेद बालू घाटों की बंदोबस्ती लेते समय सुरक्षित जमा राशि भी अपेक्षाकृत अधिक है. वहीं ,सफेद बालू का इस्तेमाल साधारण मिट्टी के विकल्प के रूप में गड्ढों को भरने में किया जाता है, जबकि पीले बालू का इस्तेमाल निर्माण कार्यों में किया जाता है. ऐसे में बाजार में पीला बालू महंगा है, जबकि सफेद बालू सस्ता है.
सूत्रों का कहना है कि राज्य में इस समय 19 जिलों में करीब सात सौ बालू घाट हैं. इनमें से करीब 457 पीला बालू के घाट हैं. ऐसे में करीब सवा दो सौ से ढाई सौ घाट सफेद बालू के हैं. फिलहाल सभी जिलों में 392 बालू घाटों की नीलामी हो चुकी है. साथ ही इनमें से 259 बालू घाटों की पर्यावरणीय स्वीकृति मिल चुकी है. फिलहाल 182 बालू घाटों से खनन और बालू की बिक्री शुरू हो चुकी है. बहुत जल्द सिया से स्वीकृति प्राप्त सभी 259 बालू घाटों से भी खनन शुरू हो जायेगा.
सूत्रों के अनुसार सफेद बालू मुख्य रूप से गंगा और कोसी नदी के पेट में बहुतायत से मौजूद है. इसकी मांग पीला बालू से अपेक्षाकृत कम होने के कारण लोग सफेद बालू से संबंधित घाटों की नीलामी में लोग कम रुचि दिखा रहे हैं. इसलिए ऐसे बालू घाटों की नीलामी की प्रक्रिया धीमी है. हालांकि, इस संबंध में राज्य सरकार की तरफ से सभी जिला के डीएम को जिला स्तर पर एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है. यह समिति सफेद बालू के अनिलामित घाटों की जांच करेगी. इस दौरान नदी की धारा के बीच, दियारा क्षेत्र में या नीलामी के अयोग्य बालू घाटों की पहचान कर उन घाटों को जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट से हटाया जायेगा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है