पटना : क्या आपको मालूम है कि राजधानी में पहली बार 395 साल पहले क्रिसमस मिलन समारोह मनाया गया था. ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि पहली बार 1621 में क्रिसमस मिलन समारोह का आयोजन किया गया था. उसी समय से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार प्रदेश में प्रारंभ हुआ.
लेकिन, मात्र एक वर्ष में ही मिशन के लोगों ने पटना में काम करना बंद कर दिया. हालांकि, ईसाई धर्म के प्रचारकों का पटना में आना-जाना लगा रहा. जब हमने पटना में ईसाई धर्म के इतिहास के जानकारों से बात की, तो उन्होंने बताया कि स्थायी रूप से मिशन के लोगों ने 1713 में पटना को केंद्र बनाया. उस वर्ष पटना सिटी में पादरी की हवेली में छोटे से गिरजाघर का निर्माण किया गया. उस समय फादर फेलिक्स देखभाल कर रहे थे.
1734 में फादर जोआकीम को पटना केंद्र का प्रभारी बनाया गया.
बेतिया में बना था राज्य का दूसरा चर्च, 1853 में बना बांकीपुर चर्च : 1739 में फादर जोसेफ एक कुशल चिकित्सक के रूप में पटना पहुंचे. उनकी चर्चा धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में पहुंच गयी. उस समय बेतिया में राजा ध्रुव नारायण सिंह का राज था. उन्होंने अपने किसी परिजन के इलाज के लिए फादर को आमंत्रित किया और वे ठीक हो गये. उन्होंने मरीज के ठीक होने पर राज्य में ईसाई धर्म के प्रचार की इजाजत दे दी.
पादरी की हवेली में वर्तमान में जो गिरजाघर खड़ा है, उसका निर्माण 1773 में की गयी थी. पटना के बाद बेतिया में प्रदेश का दूसरा चर्च बनाया गया था. वहां पर 1745 में चर्च का निर्माण कराया गया. इसका श्रेय फादर जोसेफ मेरी को जाता है. उस समय चर्च महल का निर्माण राजमहल के बगल में ही किया गया था. राजधानी में बांकीपुर चर्च की स्थापना 1853 में की गयी थी. यह एक कान्वेंट चर्च था. लेकिन, 1928 में इस चर्च को सभी के लिए सार्वजनिक कर दिया गया.
कुर्जी में है सबसे बड़ा चर्च : कुर्जी में 1858 में चर्च बनाया गया था. पहली बार संत माइकल हाइस्कूल के परिसर में चर्च का निर्माण कराया गया. लेकिन, आसपास के इलाके में ईसाईयों की आबादी बढ़ने के कारण चर्च छोटा पड़ने लगा, तो स्कूल के बाहरी परिसर में बड़ा चर्च का निर्माण किया गया. 10 सितंबर, 1919 को संत पिता बेनेदिक्त ने पटना को धर्म प्रांत घोषित किया था. इस धर्म प्रांत के संचालन का भार येसु समाज को सौंपा गया.

